'इनाम' कहानी का कथ्य

'इनाम' कहानी का कथ्य 
इनाम यह जैनेन्द्रकुमार की महत्वपूर्ण कहानी है । जैनेन्द्रकुमार एक मनोवैज्ञानिक कहानीकार है और इस कहानी में बाल मनोविज्ञान का चित्रण हुआ है । कहानी का आरंभ कस्बे के हाईस्कूल के अहाते में लड़कों की चहल-पहल, इधर-उधर धूम मचाते हुए बच्चे दिखाई देते हैं । क्योंकि उनका नतीजा आनेवाला है । आखिर नतीजा निकलता है और सभी लड़के नतीजा देखने लगते हैं । इन लड़कों में एक अलग-थलग खड़ा एक लड़का कठिनाई से दस बरस का होगा, धीमे से आगे बढ़ जाता है और बोर्ड के सामने खड़े होकर अपना नाम और मार्क्स देखकर वही जम जाता है, फिर धीमी चाल से वहाँ से निकलता है । 
इस लड़के का नाम धनंजय है और वह बहुत खुश है क्योंकि वह सातवें दर्जे में अव्वल आया है और आठवें में  चढ़ा है । इसी खुशी में वह घर आता है और अपनी माँ को वह सातवीं कक्षा में पास होने की बात कहता है । माँ उसकी बात सुनकर अनसुनी करती है । पर धनंजय सारी क्लास में अव्वल आने की बात करता है । लेकिन माँ में इतना उत्साह नहीं था । वह ऐसी ही रहा करती है । माँ को याद आता है कि वह सबेरे ही चला गया था और अब आया है नौ बजे माँ खाना देती है पर उसमें बच्चे के अव्वल आने की उसके चेहरे पर कोई खास खुशी नहीं । पिताजी दप्तर चले गए हैं । धनंजय खाते-खाते सोचने लगता है कि सातवें दर्जे में अव्वल आना और कुल दस वर्ष की अवस्था में फिर भी माँ में उत्साह नहीं पिताजी भी चले गए हैं । फिर माँ और खाने को पूछती है बालक धनंजय के मना करने पर उसे घर में ही बैठने को कहती है । धनजंय खाना खाकर बर्तन खुद उठाकर यथा स्थान रख देता है । यह देखकर माँ को लगता है कि बालक उसके उम्र से अधिक सायना हो गया है । इसलिए वह बालक पर खीझती है । अपने पर ही खीझती हुई काम में लग जाती है ।
काम के बीच से उसने सुना, धनंजय कह रहा है,"मैं जा रहा हूँ ।" सुनकर माँ की हठीली शांति में एकदम आग लग गयी । दहाड़कर बोली "नहीं।" 
पर बालक अनसुनी कर निकलने लगता है तो माँ उसे लपककर पकड़ती है और आज तेरी हड्डी-पसली तोड़कर रख दूँगी कहकर उसे कमरे में अंदर ले जाकर खाट पर पटक देती है । धनंजय माँ को समझाने की कोशिश करता है कि "अव्वल आने की सबको मिठाई देनी है । पिताजी ने कहा था ।"  इन बातों का माँ पर कोई असर नहीं हुआ । एकाएक उसे महसूस हुआ और अपने बेटे पर प्यार उमड़ आया वह सोचने लगती है कि उसे अपने बेटे पर गर्व महसूस होता है, अव्वल आया है । उसका अपना बेटा है । बाहर जाने को मना करते हुए निकलती है कि अचानक एक बिजली सी भीतर कौंध गयी, वह ठिठक जाती है । उसकी आँखें फैल जाती है और वह पूँछती है कि "सच बता वहीं जा रहा था?"
बालक को माँ की बात समझी नहीं, पर माँ को लगता है कि पिताजी ने कहा होगा वहाँ जाने को माँ कहती और पूँछती है कि "बोलता क्यों नहीं ? वहीं न मिठाई पहुँचाने जा रहा था?" बालक ढीठ भाव से कहता है, "हाँ, वहीं जा रहा था।"
यह सुनकर माँ सन्न रह गयी, फिर उसका अपने पर बस नहीं रहा । उसने धनंजय की काफी धुलाई की । ऐसी अवस्था में भी बच्चा रो नहीं रहा था । बालक खाट पर पड़ा रहा । माँ अपने आपको और अपने भाग्य को कोसती रही । उसे लगता है कि घर का काम करने के लिए वह है और मौज करने के लिए कोई दूसरी । और यह बच्चा भी माँ की नहीं सुनता । इसी बात को लेकर चिढ़ती है । कुछ देर बाद माँ बालक के पास जाती है और बालक को प्यार करते हुए बोलती है "आँख खोल बेटे, क्या इनाम लेगा माँ से, बता ?" दो रुपये, पाँच रुपये कहते हुए बच्चें को मना ही रही थी कि इतने में बालक के पिताजी आ जाते हैं । 
माँ तेजी से बाहर जाने लगती है । बालक झपटकर उठ बैठता है और क्लास में फर्स्ट आने की बात बता देता है । इस बात पर पिताजी भी पुँछते है कि इनाम में क्या लेगा । बालक पिताजी से पूछता है कि क्या आप इनाम देंगे ? पिताजी जैसे ही कबूलते है उतने में प्रमिला भी आ जाती है । प्रमिला भी बालक से पूँछती है कि बता और क्या इनाम लेगा । बालक प्रमिला से भी कबूतलता है कि "माँगूँगा तो दोगी?" इस तरह पिताजी और प्रमिला से इनाम देने की बात पक्की होने पर बालक धनजंय प्रमिला से मांगता है कि इस घर में तुम अब से कभी मत आना । फिर पिताजी से कहता है कि आप इनसे कभी न मिलिए । 
इस बात को सुनते ही अंदर से माँ आयी और बालक को गोद में उठाकर बोली "हाथ क्यों बंद किये हो? खोलकर आगे क्यों नहीं कर देते, दस का नोट मुट्ठी में नाहक मुड़ रहा होगा । और प्रमिला, बड़े दिनों में आयी हो बैठो, तुम भी चखो न यह खुशी की मिठाई ।"
 इस प्रकार बालक देखता है कि सब के मन का मैल धूल गया । बालक के मन में माँ के प्रति प्रेम और माँ की स्थिति को समझकर कितनी समझदारी से सफल बनाया यही कहानी की मूल संवेदन और कथ्य है ।

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