हिंदी कहानी का विकास-क्रम
हिंदी कहानी का विकास-क्रम
हिंदी कहानी के सूत्र वैदिक साहित्य में मिलते हैं l संस्कृत. प्राकृत, पालि, और अपभ्रंश साहित्य में कहानी का स्वरूप मनोरंजन या उपदेश ही रहा है l मुसलमानों के संपर्क से कथा में प्रेम की मुख्य भूमिका लायी गयी । ‘लैला मजनू’, सीरि-फरहाद जैसी मुसलमानों की प्रेम कथाएँ हैं l हमारे यहाँ भी ‘तोता - मैना’, छबीली- भटियारिन’, ‘सारंगा- सदाव्रत’, जैसी कहानियों का चलन देखने को मिलता हैं l हिंदी की सबसे पहली कहानी कौनसी हैं? इसे लेकर बहुत मतभेद देखने को मिलते हैं l
हिंदी कहानी की विकास यात्रा
प्रेमचंद पूर्वकाल १९०० से १९२७
हिंदी की पहली कहानी किशोरी लाल गोस्वामी की ‘इंदुमती’ १९००
आ. रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय' सन १९०३
बंग महिला की कहानी ‘दुलाई वाली’ सन १९०७
इन तीन कहानियों को आ. रामचंद्र शुक्ल ने मौलिक कहानी स्वीकार किया हैं l इनके बाद
जयशंकर प्रसाद की ‘ग्राम’ सन १९११ ‘इन्दू’ १९०९
माधव प्रसाद मिश्र की ‘मन की चंचलता’ १९००
लाला भगवानदीन की ‘प्लेग की चुड़ैल’ १९०२
जयशंकर प्रसाद का पहला कहानी संग्रह ‘छाया’ १९१२
राधिका रमन सिंह की ‘कानों में कंगना’ १९१३
प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ १९१६
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की ‘उसने कहा था’ १९१५ ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई l इसके बाद ‘सुखमय जीवन’ ‘बुद्धू का कांटा’ इन्होंने ये तीन कहानियां लिखी और अमर हो गए हैं l आगे चलकर अनेक कहानीकार जुड़ गये l जिनमें ज्वालादत्त शर्मा, विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गंगाप्रसाद श्रीवास्तव, वृन्दावनलाल वर्मा आदि l
प्रेमचंद युग 1916 से 1936
आधुनिक हिंदी कहानी का आविर्भाव द्विवेदी युग में हुआ स्वच्छंदतावादी युग के प्रमुख कहानीकार प्रेमचंद है । प्रेमचंद का समय 1880 से 1936 रहा है। इनका पहला कहानी संग्रह हिंदी में ‘सप्ताह सरोज’ नाम से सन1915 ई. प्रकाशित हुआ । इसके बाद ‘नवनिधि’, ‘प्रेम पच्चीसी’, ‘प्रेम पूर्णिमा’, ‘प्रेम तीर्थ’, ‘प्रेम कुंज’, ‘प्रेम चतुर्थी’, ‘पंच प्रसून’, ‘सप्त सुमन’, ‘कफन’, मानसरोवर (भाग 5) आदि अनेक संकलन प्रकाशित हुए हैं l इनकी प्रमुख कहानियां ‘बलिदान’, ‘आत्माराम’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘सवा सेर गेहूं’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘अलगोझया’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, आदि उनकी प्रसिद्ध कहानियां है l इन्होंने 300 से भी अधिक कहानियां लिखी है l हिंदी के पहले कथाकार प्रेमचंद है l इन्होंने कथा प्रधान और चरित्र प्रधान दोनों वर्गों में कहानियां लिखी हैं l आरंभिक कहानियों में उन्होंने घटना प्रधान कहानियां लिखी हैं जिनमें ‘प्रतिकार’, ‘माता का ह्रदय’, ‘सत्याग्रह’, ‘नरक का मार्ग’ आदि l चरित्र प्रधान कहानियों में ‘पंच परमेश्वर’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘पूस की रात’, आदि l प्रेमचंद की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने हिंदी कहानी को जीवन के परिवेश और स्थानीयता से परिपूर्ण किया है l
इस युग के दूसरे महत्वपूर्ण कहानीकार जयशंकर प्रसाद है l इनका समय (१८८९- १९३७) इनकी प्रमुख कहानियों में ‘ग्राम’ १९११ ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’, ‘इंद्रजाल’, ‘पुरस्कार’ आदि l प्रसाद की कहानियों में स्थूल यथार्थ की अपेक्षा रोमांस भावुकता काव्य और कल्पना के दर्शन होते हैं l शिल्प की दृष्टि से उनके कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे किसी एक भावना, मानवीय पहलू या घटना पर आधारित होती है l
इस युग के तीसरे प्रमुख कहानीकार सुदर्शन १८६६ इनकी प्रमुख कहानियां ‘सुदर्शन सुधा’, ‘सुदर्शन सुमन’, ‘तीर्थ यात्रा’, ‘पुष्पलता’ ‘परिवर्तन’ ‘सुप्रभात’, आदि संग्रह में संकलित है l सुदर्शन मूलतः यथार्थवादी कहानीकार है l
चौथे कहानीकार विशंभर नाथ शर्मा 'कौशिक' इनका समय १८६१ -१९४६ इनकी कहानियों में ‘कल्प मंदिर’, ‘मणि माला’, ‘चित्रशाला’, ‘कल्लोल’ आदि संकलन में प्रकाशित हैं l ‘कौशिक’ जी की कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कथा को सजाने संवारने में कुशल दिखाई देते हैं l राधा कृष्ण दास की कहानियां ‘अनाख्या’, ‘सुधांशु’, ‘आंखों की कथा’, आदि l इनकी कहानियों में मानव के हृदय का मार्मिक वर्णन मिलता है l इनकी अधिकांश कहानियां भावुक है l
इनके बाद प्रमुख कहानीकारों में जैनेंद्र कुमार है l जैनेंद्र कुमार प्रेमचंद के समकालीन रहे हैं l इनकी विशेषता हिंदी के घटना प्रधान कथा साहित्य को पात्र प्रधान बनाने का श्रेय जैनेंद्र को जाता है l हिंदी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कथाकार जैनेंद्र है l नारी के अंतर्मन को व्याख्ययित करने की दृष्टि से उनकी कई कहानियां बेजोड़ हैं l जैनेंद्र की पहली कहानी ‘हत्या’ 1927 में प्रकाशित हुई थी l उनके कहानी संग्रह में ‘वातायन’, ‘नीलम देश की राजकन्या’, ‘दो चिड़ियां’’ ‘स्पर्धा’, ‘पाजेब’’ ‘एक रात’, ‘फांसी’ आदि l इन्होंने समाज की अपेक्षा व्यक्ति के संघर्ष को केंद्र बनाया है l सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’ की कहानियों में उनका पहला कहानी संग्रह ‘विपथगा’ का १९३१ में प्रकाशन हुआ था l तब से ‘परंपरा’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’ आदि संग्रह प्रकाशित हुए हैं l इनका बहुमुखी व्यक्तित्व रहा है l एक प्रमुख विचारक रहे हैं l इनकी कहानियों में भावुकता का तत्व कम और बौद्धिकता का अधिक है l इनकी प्रमुख कहानियों में ‘रोज’, ‘हरसिंगार’, ‘दुख’ और ‘तितलियां’ आदि l इनकी कहानियों में प्रेम और संघर्ष दिखाई देता है l वे कहानी को जीवन की अधूरी कहानी मानते हैं और उसी के अनुरूप वे कहानी को एक बिंदु पर लाकर अधूरा छोड़ देते हैं l नाटकीयता, चित्रात्मकता, व्यंग्य आदि उनकी कहानियों की विशेषता है l
प्रेमचंदोत्तर युग 1936 के बाद
इस युग का आरंभ ही जैनेंद्रकुमार आदि की कहानियों से हुआ और उसका विकास कालांतर में नई कहानी के रूप में हुआ l वस्तुतः इस काल की कहानी कई दिशाओं में बंट जाती है l जैसे
मनोवैज्ञानिक कहानी : जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचंद्र जोशी भगवती प्रसाद वाजपेई आदि रहे हैं l
प्रगतिवादी कहानी : इसमें यशपाल, मन्मथ नाथ गुप्त, रांगेय राघव भैरव प्रसाद गुप्त, रमा प्रसाद ढिंडियाल 'पहाड़ी', नागार्जुन, अमृतराय, उपेंद्रनाथ 'अश्क', विद्यालंकार, भगवती चरण वर्मा आदि । लेखक रहे हैं l विष्णु प्रभाकर का ‘धरती अभी घूमती है’ संकलन में कई कहानियाँ संकलित हैं l इन्होंने सामाजिक जीवन को लेकर कहानियाँ लिखी हैं l
नई कहानी 1950
नई कहानी 1950 के पश्चात की कहानी नई कहानी मानी जाती है l अपनी कथावस्तु को महानगरों, नगरों, कस्बों और गांवों से ग्रहण किया है l ग्रामीण आंचलिक में मार्कण्डेय ने गांव में जन्मे वर्ग संघर्ष को रूपायित किया है l फणीश्वर नाथ रेणु ने गांव की धूल माटी के साथ पूरा आंचल उभरा है l शिव प्रसाद सिंह ने रोमांटिक यथार्थ, युगीन संक्रमण पर प्रश्न चिन्ह लगाया हैं l राजेंद्र अवस्थी जैसे अनेक लेखकों ने ग्रामीण जीवन का चित्रण किया है l
महानगरीय जीवन पर कहानी लिखने वालों में मोहन राकेश की ‘जानवर और जानवर’, ‘एक और जिंदगी’, उषा प्रियवंदा की ‘वापसी’, कमलेश्वर की ‘राजा निरबंसिया’ और ‘मांस का दरिया’ निर्मल वर्मा की कहानियोँ में विदेशी जीवन के चित्र मिलते हैं l राजेंद्र यादव की ‘जहां लक्ष्मी कैद है’, ‘अभिमन्यु की आत्महत्या’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘किनारे से किनारे तक’ आदि संकलन प्रसिद्ध है l इन्होंने महानगरीय जीवन की त्रासदी को उभारा है l
देश की स्वतंत्रता जन्य सामाजिक स्थिति की कहानियां
मुख्य कहानीकार भीष्म साहनी है l मन्मथ नाथ गुप्त, विष्णु प्रभाकर, चंद्रगुप्त विद्यालंकार, भगवत शरण उपाध्याय आदि हैं l
आंचलिक कहानीकार
आंचलिक कहानीकारों में मुख्य कहानीकार फणीश्वर नाथ रेणु है l इनके साथ देवेंद्र सत्यार्थी, नागार्जुन, शैलेश मटियानी, रांगेय राघव, अमृतलाल नागर, रामदरश मिश्र, लक्ष्मी नारायण लाल आदि l
नई कहानी
मुख्य कहानीकार मोहन राकेश है l राजेंद्र यादव आदि अनेक कहानीकार हुए हैं l
नई कहानी के विविध स्वर
1) बदलते हुए सामाजिक जीवन की पहचान : यह प्रकृति जैनेंद्र की ‘जान्हवी’ और अज्ञेय की ‘रोज’ कहानी में है और आगे किस्सागोई में मिलती है
2) जीवन की जटिलता की पकड़ : नई कहानी में नित्य आदर्श और नैतिकता नहीं है l नई कहानीकार यथार्थ जीवन के मूल्यों की खोज करता है l
3) मनोविश्लेषणात्मकता : मोहन राकेश की ‘मलबे का मालिक’ कमलेश्वर की ‘राजा निरबंसिया’ राजेंद्र यादव की ‘जहां लक्ष्मी कैद है’ जैनेंद्र की ‘पाजेब’ मनोविश्लेषणवाद की कहानियां है l
4) कृत्रिम जीवन मूल्यों पर दृष्टि : रेणु, लक्ष्मी नारायण लाल, अवस्थी, ने गांव की और मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर ने नगरीय जीवन को यथार्थ रूप दिया है l महिला कहानीकारों ने जैसे मन्नू भंडारी, उषा प्रियंवदा, विजय चौहान ने नगरी जीवन के जीवन को उभारा है l लक्ष्मी नारायण लाल ने गांव के उपेक्षित वर्ग की संवेदना को उभारा है l रामदरश मिश्र ने ‘एक औरत एक जिंदगी’ में गांव के विधवा का चित्रण किया है l
5) साठोत्तरी कहानी में आक्रोश और स्वप्न
इन कहानियों में आक्रोश के स्वर अधिक है l इन कहानियों का सेक्स रूमानी है l कहीं जुगुप्सा में विकृत नग्न यौवन संबंध भी आए हैं l नवीन मानसिकता को उजागर करने वाले कहानीकार है ज्ञानरंजन, महीप सिंह, इब्राहिम शरीफ, महीपसिंह की कहानियों में यौन संबंधों का यथार्थ प्रमुख है l जैसे ‘काला बाप गोरा बाप’ कहानी है l कुछ समाजवादी लेखक भी है जिनमें दूधनाथ सिंह, मधुकर सिंह, गिरिराज किशोर, रमेश उपाध्याय आदि l
6) रूप बंध की नवीनता : नई कहानी में नए प्रयोग विविध है l कहानीकार का उद्देश्य घटना के माध्यम से संवेदनात्मक त्रासदी को इंगित करना रहता है l कथा क्षीण रहती है l केवल वातावरण रहता है l
अकहानी का स्वर : ऐसी भी कहानी लिखी जा रही है जिनमें कथा विन्यास और चरित्र योजना नहीं है l रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, कुंवर नारायण की कहानियां ऐसी ही है l
नई कहानी की प्रमुख प्रवृत्तियां
1) स्त्री-पुरुष के प्रेम संबंधी मूल्य बदल गए हैं l
2) पुराने शोषण राजा जमींदारों के स्थान पर मंत्री और नेता आए हैं
3) ग्राम अंचल के यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई हैl
4) उलझी हुई उन स्थितियों को उजागर किया गया है l
5) कृत्रिम जीवन मूल्यों के मुक्ति का एहसास हुआ है l
6) देहात के जीवन की बाहरी जटिलता और शिक्षित की भीतरी मानसिकता को उजागर किया गया है l
7) कथानक का रास हुआ है l
8) इन कहानियों में शोषित वर्ग की जागरूकता को पनपते हुए पाया गया है l
9) नई कहानी जीवन का भोगा हुआ यथार्थ अंकित करती है l
10) अजनबीपन का बोध नई कहानी में बड़ी व्यंजना के साथ चित्रित हुआ है l
साठोत्तरी कहानी
इस कहानी में स्वतंत्रता पूर्व जो सपने सजाए हुए थे वह अब निरर्थक सिद्ध हुए l इसके फलस्वरूप यथार्थ का नग्न एहसास हुआ l जिससे आक्रोश के स्वर अधिक मुखरित हुए l नामवर सिंह ने ‘बकलम खुद’ में इस स्थिति का वर्णन किया है l इस कहानी के कहानीकार ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, कामतानाथ, रविंद्र भल्ला, ममता कालिया, मन्नू भंडारी, सुधा अरोड़ा, इब्राहिम शरीफ, महेंद्र भल्ला, गिरिराज किशोर, महीप सिंह, नरेंद्र कोहली, जितेंद्र भाटिया, गोविंद मिश्र, मृदुला गर्ग, मालती जोशी, निरुपमा सोबती, काशीनाथ सिंह, प्रयाग शुक्ल, से. रा. यात्री, शानी, सूर्यवाला आदि कहानीकार महत्वपूर्ण है l
साठोत्तरी कहानी के बाद के कहानी आंदोलन :
अकहानी
यह कहानी आंदोलन एंटी स्टोरी आंदोलन से प्रभावित है l अकहानी से मतलब है कि उन्होंने वे सारी विशेषताएं छोड़ दी है जो अब तक कहानी में थी l यह कहानी पिछली कहानियों की विशेषता से मुक्त है l इस अकहानी को बढ़ाने वाले कहानीकार है दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन, रवींद्र कालिया, महेंद्र भल्ला, गंगा प्रसाद विमल, रमेश बक्षी, मनहर चौहान, शानी, परेश, मधुकर, सुरेंद्र वर्मा आदि l
सचेतन कहानी 1964
इस कहानी के प्रवर्तक महीप सिंह है l इनके संपादन में एक सचेतन पत्रिका निकली और इस तरह के अन्य कहानीकार शामिल हुए l महीप सिंह ने कहा है “जीवन को उसकी सारी विसंगतियों में जी कर झेलने की दृष्टि ही सचेतन दृष्टि है l” इस कहानी आंदोलन के प्रमुख अन्य कहानीकार है श्याम परमार, मनहर चौहान, हिमांशु जोशी, मधुकर सिंह, वेद राही, रामदरश मिश्र, नरेंद्र कोहली, आनंद प्रकाश जैन आदि है l
अचेतन कहानी
इस अचेतन कहानी के प्रवर्तक गिरिराज किशोर तथा काशीनाथ सिंह आदि माने गए हैं l यह सचेतन कहानी की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आयी है l
सातवें दशक की कहानी
यह कहानीकार अपने जीवन बोध की स्थिति को स्वीकार करके कुंठा घुटन त्रास आदि से अपने को मुक्त महसूस करते हैं l इस प्रवृत्ति के कहानीकार है रमेश उपाध्याय, पानू खोलिया, मधुकर सिंह, मनहर चौहान, सतीश जमाली, आदि हैं l
आठवें दशक की कहानी अथवा समांतर कहानी
इस कहानी के प्रवर्तक कमलेश्वर है l ‘सारिका’ के विशेषांक समांतर विशेषांक सन 1972 में प्रकाशित करके समांतर कहानी आंदोलन का आरंभ किया l इस तरह की कहानियां लिखने वाले यह कहानीकार प्रसिद्ध है । जिनमें मधुकर सिंह, आलम शाह खान, इब्राहिम शरीफ, रमेश बत्रा, ईश्वर चंद्र, मंजुल भगत, सतीश जमाली, हिमांशु जोशी, मृदुला गर्ग, आदि l कमलेश्वर के 'सारिका' के संपादक पद छोड़ते ही आठवें दशक की कहानी का अंत हुआ । १९७८ तक इन्होंने दस समांतर अंक निकाले थे l
सक्रीय कहानी (नवें दशक की कहानियाँ)
इसका आरम्भ ‘मंच’ पत्रिका से सन १९७८ में हुआ l इसके संपादक राकेश वत्स रहे हैं l इसमें वीरेन्द्र मेदीरत्ता, सुरेन्द्र मनन, चित्रा मुदगल, रमेश बत्रा की कहानियाँ थी l “सक्रीय कहानी का सीधा और स्पष्ट मतलब है – आदमी की चेतना उर्जा और जीवन्तता की कहानी l”
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