साहित्य का अर्थ, परिभाषा

साहित्य 

भारतीय व्याकरण के आचार्यों के अनुसार साहित्य शब्द की उत्पत्ति या बनावट में 'सम' उपसर्ग 'धा' धातु जिसे 'हित' हो जाया करता है और 'यत' प्रत्यय - यह तीन शब्दांश विद्यमान है ।  इस प्रकार उनका सम्मिलित अर्थ बनता है, सम + हित + यत =  सहित  इस - 'सहित' का भाववाचक रूप ही साहित्य बनता है, या होता है । 'धा' धारण करने के अनुसार इस 'धा' से हित बनने वाला शब्द का अर्थ होता है धारण करना । इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिस शब्द में धारण करने साथ रहने और रखने का भाव वर्तमान रहा करता है, उसे साहित्य कहते हैं । 
संस्कृत में 'सहि तस्य भाव इति साहित्यम' कह कर भी साहित्य की  व्युत्पत्ति की जाती है । उसका अर्थ है साथ रहने या होने का भाव होना । हित और 'सहित' व्याख्या करने पर 'हित' के साथ होना ही साहित्य हैं । 
व्यापक अर्थों में साहित्य सत्य से सुंदर और शिव की साधना की ओर अग्रसर होता है । जबकि सीमित या ललित अर्थों में साहित्य कल्पना के सौंदर्य में जीवन के सत्य को सजा संवार कर शिव साधना की ओर प्रवृत्त होता है । यहां हम जिस साहित्य के उद्देश्य पर प्रकाश डाल रहे हैं । वह यह दूसरे प्रकार का ललित साहित्य ही है ।
कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर के अनुसार 'साहित्य' शब्द से "साहित्य में मिलने का भाव पाया जाता है । वह केवल भाव- भाव का भाषा- भाषा का ग्रंथ- ग्रंथ का ही मिलन नहीं अपितु मानव के साथ मानव का, अतीत के साथ वर्तमान का, दूर के साथ निकट का, अत्यंत अंतरंग मिलन भी है । जो साहित्य को छोड़कर अन्यत्र कहीं संभव नहीं ।" इस कथन से स्पष्ट है कि साहित्य का प्रयोजन सभी दृष्टि से मानव जीवन के 'हित' साधना के लिए विभिन्न प्रकार की समन्वय साधना करना ही है । अतः जीवन और समाज का हित साधन करना ही साहित्य का मूल प्रयोजन या उद्देश्य स्वीकारा जा सकता है । इस संबंध में नाट्यशास्त्र के रचनाकार आचार्य भरत मुनि ने नाटक के प्रयोजन के माध्यम से साहित्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए जनहित साधना के प्रमुख उद्देश्य माना है । मुख्य उद्देश्य सामाजिक जीवन का हित साधन ही होता है ।
 

पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषा

 1) टॉलस्टॉय के अनुसार - साहित्य का उद्देश्य लोकमंगल का विधान करना ही मानते हैं ।
 2)  शिलर का कथन है - आनंद सभी कलाओं का लक्ष्य है क्योंकि मानव सुख से अधिक उदात्त और गंभीर अन्य कोई समस्या नहीं है ।"
 3) शेली के मतानुसार - "काव्य शाश्वत सत्य को अभिव्यक्त करने वाली जीवन की प्रतिभा है । यह आनंद मिश्रित ज्ञान से संपृक्त होती है ।।" 
 4) अरस्तु कहते हैं - "कला का विशिष्ट उद्देश्य आनंद प्राप्ति है पर वह आनंद नीति-सापेक्ष होना चाहिए ।"
 5)  ड्राइडन के अनुसार " To teach delight fully is the function of poetry"
 6) मैथ्यू अर्नाल्ड ने कहा है  "कला और साहित्य को जीवन की आलोचना ही कह दिया है ।"

  आधुनिक हिंदी के विद्वानों का मत

    गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है 
    कीरति भनिति की भूति भलि सोई ।
    सुरसरि सम सब कर हित होई ।।"
    1) आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी कहते है - "लेखक का उद्देश्य सदा यही रहा है कि लाखों से पाठकों का मनोरंजन भी हो और साथ ही उनके ज्ञान की सीमा बढ़ती रहे ।" 
    2) मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार "
    केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए । 
    उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए ।" 
    3) जयशंकर प्रसाद के अनुसार - "संसार में काव्य से दो तरह के लाभ पहुंचते हैं -मनोरंजन और शिक्षा ।"
    4) सुमित्रानंदन पंत ने माना है - एक विकसित कलाकार के व्यक्तित्व में स्वांनत: और बहुजन में आपस में वही संबंध रहता है जो गुण और राशि में और एक के बिना दूसरा अधूरा है ।" 
    5) महादेवी वर्मा के अनुसार साहित्य का उद्देश्य समाज के अनुशासन के बाहर स्वच्छंद मानव स्वभाव में उसकी मुक्ति को अक्षुण्ण रखने रखते हुए समाज के लिए अनुकूलता उत्पन्न करना है ।"
साहित्य की परिभाषा
1)  कुंतक के अनुसार "शब्द एवं अर्थ का वह औचित्यपूर्ण  सम्मिलन साहित्य, जिसमें रमणीयता,  मनोहरता, आनंद -भाव और रागात्मक तत्व विद्यमान हो ।"
2) आ. विश्वनाथ ने कहा है - "वाक्यं रसात्मक काव्यम"
3)  पंडितराज जगन्नाथ रमणीयार्थ प्रतिपादक वाक्य काव्यम"
4)  इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका के अनुसार "साहित्य अपने में एक व्यापक शब्द है, जो वास्तविक परिभाषा के अभाव में सर्वश्रेष्ठ विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है और वह अभिव्यक्ति लिपिबद्ध होती है ।"
5)  मैथ्यू अर्नाल्ड के अनुसार "साहित्य को जीवन की व्याख्या हैं ।"लिटरेचर इज द मिरर ऑफ सोसाइटी"
6)  हडसन कहते हैं- "भाषा के माध्यम से जीवन की अनुभूतियों को चित्रित करने को ही साहित्य हैं ।" 
7) महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार - "ज्ञान राशि के संचित कोष को साहित्य मानते हैं ।"
8) प्रेमचंद के मत से "जीवन की आलोचना को साहित्य मानते हैं ।"
9)  आचार्य शुक्ल साहित्य सुप्त भावों को जगाने वाला और चमत्कार पूर्ण अनुरंजना की शक्ति का उत्स (स्रोत) है ।" मानते हैं । 
10) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है "साहित्य केवल बुद्धि विलास नहीं है । वह जीवन की वास्तविकता की उपेक्षा करके जीवित नहीं रह सकता ।
साहित्य का प्रयोजन 
 भरतमुनि के बाद संस्कृत के अन्य आचार्यों ने भी साहित्य के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है । 
1) आचार्य भामह धर्म अर्थ काम मोक्ष कला में (विलक्षणता) साहित्य कीर्ति, कवि के लिए यश प्राप्ति और सभी के लिए आनंद की उपलब्धि काव्य का उद्देश्य मानते हैं ।
2) आ. दंडी और आ. वामन यश और आनंद की प्राप्ति को काव्य का उद्देश मानते हैं ।
3)  आचार्य आनंद वर्धन स्वाभाविक आनंद की प्राप्ति को काव्य का उद्देश्य मानते हैं 
4) अभिनव गुप्त कीर्ति प्राप्ति को महत्व देते हैं उपदेश देना भी साहित्य का प्रयोजन माना जाता है ।
5) आचार्य मम्मट ने आगे चलकर इन सभी की समन्वित व्याख्या दी-
 "काव्ययशसेsर्थकृतये व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये ।
सद्य:परिनिवृतये कांतासम्मित उपदेशयुजे ।" इनके अनुसार काव्य या साहित्य का प्रयोजन यश, अर्थ की प्राप्ति के साथ साथ व्यवहार कुशल बनना, जीवन के (मंगलमय तत्वों की रक्षा करना और कांता (प्रियतमा) के समान उपदेश की योजना करना है ।

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