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मनोव्रत्ति कहानी का सारांश

                                   मनोव्रत्ति कहानी का सारांश ‘मनोव्रत्ति ’ प्रेमचंद की एक महत्वपूर्ण कहानी है l मनुष्य की मनोव्रत्ति या मानसिकता या सोच किस तरह हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से बना लेता है , यह इस कहानी के माध्यम से स्पष्ट होता है l कहानी में एक सुंदर युवती प्रातःकाल में गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी है l इस युवती को कुछ लोग देखते हैं और चले जाते हैं l इन लोगों में से कुछ लोग इस सोयी हुयी युवती पर टिप्पणियाँ करते हैं l इनमें से पहले बसंत और हाशिम उसी पार्क में ओलिम्पियन रेस की तैयारी कर रहे हैं l दोनों इस युवती को देखकर रुक जाते हैं और आपस में अपने-अपने खयाल दौड़ते हैं l बसंत कहता है कि ‘‘इसे और कहीं सोने की जगह नहीं मिली l’ ’ 1 हाशिम मानता है कि वह ‘‘कोई वेश्या है l’ ’ 2 इसी तरह के तर्क-वितर्क करते हुए वे सोचने लगते हैं कि वेश्या है या कुलवधू इस बात पर दोनों में बहस होती रहती ह...

रस का अर्थ परिभाषा एवं स्वरूप

  रस का अर्थ परिभाषा एवं स्वरूप रस का परंपरागत अर्थ रस शब्द का परंपरागत अर्थ और प्रयोग हमारे यहाँ अनादिकाल से होता रहा है l इस शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं l ऋग्वेद और वैदिक साहित्य में यह शब्द जल , सार , वीर्य, स्वाद , विष , मधुर , तिक्तादी, षड्स, सोमरस , सूरा , द्रव , तरल , सौदर्य, आनंद, सरसता, वाणी का रस, परमात्मा   आदि अनेक अर्थों में दिखाई देता हैं l शब्दकोश में भी इस शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं l जैसे – गंध, स्वाद , विष , राग , श्रृंगार आदि के अर्थ में रस का बोध होता है l   यहाँ अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार भी रस शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ तत्व के रूप में होता है l जैसे खाद्य- पदार्थों के क्षेत्र में रस मधुरतम तरल पदार्थ का प्रतिक है l संगीत के क्षेत्र में कानो द्वारा प्राप्त ‘आनंद ’ का नाम ‘रस’ है l मेडिकल के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट प्राणदायी औषधियाँ रस बन जाती हैं l अध्यात्म के क्षेत्र में स्वयं परमात्मा को ही ‘रस’ कहा गया है l ‘रसों वै सः’ अर्थात् रस ही परमात्मा है l इसी तरह साहित्य के क्षेत्र में भी साहित्य के आस्वादन से प्राप्त आनंदान...

निबंध का विकास-क्रम

    भारतेंदु युग १८५७ -१९०० भारतेंदु युग से पूर्व का काल भाषा के स्थिर हो जाने का का युग था । भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिंदी गद्य में नया निखार आया और उसकी कई विधाएं विकसित हुई । इससे पूर्व साहित्य के नाम पर हिंदी में केवल काव्य की संपदा मात्र थी । भारतेंदु युग में गद्य की विविध विधाओं कहानी , नाटक , उपन्यास , निबंध आदि में रचना होने लगी । साथ ही इतिहास , भूगोल , धर्म , पुराण, जीवनी , यात्रा , गणित , राजनीति जैसे बहुमुखी विषयों को लेकर भी लेखन होने लगा । भारतेंदु काव्य के क्षेत्र में भले ही परंपरा वादी रहे हो पर गद्य के क्षेत्र में वे नितांत आधुनिक थे । इसके अतिरिक्त उनका व्यक्तित्व इतना समर्थ था कि अनेक लेखक उनके चारों ओर एकत्रित हो गए थे । डॉ . बच्चन सिंह के शब्दों में " उपन्यास और कहानी लेखन के मूल में बंगला की प्रेरणा हो सकती है पर निबंध उस समय की उस वैयक्तिक स्वच्छंदता की देन है जो उस ऐतिहासिक परिवेश के कारण उत्पन्न हुई थी ।" निबंध का विकास -क्रम   हिंदी में निबंध का विकास भारतेंदु युग से ही हुआ है । इस काल के निबंध विषय वस्तु ...