मनोव्रत्ति कहानी का सारांश
मनोव्रत्ति कहानी का सारांश ‘मनोव्रत्ति ’ प्रेमचंद की एक महत्वपूर्ण कहानी है l मनुष्य की मनोव्रत्ति या मानसिकता या सोच किस तरह हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से बना लेता है , यह इस कहानी के माध्यम से स्पष्ट होता है l कहानी में एक सुंदर युवती प्रातःकाल में गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी है l इस युवती को कुछ लोग देखते हैं और चले जाते हैं l इन लोगों में से कुछ लोग इस सोयी हुयी युवती पर टिप्पणियाँ करते हैं l इनमें से पहले बसंत और हाशिम उसी पार्क में ओलिम्पियन रेस की तैयारी कर रहे हैं l दोनों इस युवती को देखकर रुक जाते हैं और आपस में अपने-अपने खयाल दौड़ते हैं l बसंत कहता है कि ‘‘इसे और कहीं सोने की जगह नहीं मिली l’ ’ 1 हाशिम मानता है कि वह ‘‘कोई वेश्या है l’ ’ 2 इसी तरह के तर्क-वितर्क करते हुए वे सोचने लगते हैं कि वेश्या है या कुलवधू इस बात पर दोनों में बहस होती रहती ह...