मनोव्रत्ति कहानी का सारांश
मनोव्रत्ति
कहानी का सारांश
‘मनोव्रत्ति’ प्रेमचंद की
एक महत्वपूर्ण कहानी है l
मनुष्य की मनोव्रत्ति या मानसिकता या सोच किस तरह हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से बना
लेता है, यह इस
कहानी के माध्यम से स्पष्ट होता है l कहानी में एक सुंदर युवती प्रातःकाल में
गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी है l इस युवती को
कुछ लोग देखते हैं और चले जाते हैं l इन लोगों में से कुछ लोग इस सोयी हुयी युवती पर
टिप्पणियाँ करते हैं l इनमें
से पहले बसंत और हाशिम उसी पार्क में ओलिम्पियन रेस की तैयारी कर रहे हैं l दोनों इस
युवती को देखकर रुक जाते हैं और आपस में अपने-अपने खयाल दौड़ते हैं l बसंत कहता है कि
‘‘इसे और कहीं सोने की जगह नहीं मिली l’’1 हाशिम मानता है कि वह ‘‘कोई वेश्या
है l’’2
इसी तरह के तर्क-वितर्क करते हुए वे सोचने लगते हैं कि वेश्या है या कुलवधू इस बात
पर दोनों में बहस होती रहती है l बसंत उस युवती के सौंदर्य पर रीझ जाता है l दोनों उस
युवती को कुलवधू है या वेश्या इस बात पर बाजी भी लगाते हैं l यही अंतर दो
युवा की मनोवृति का दिखाई देने लगता है l
अगला दृश्य दो वृद्ध पुरुष का है l यह वृद्ध
धीरे-धीरे जमीन ताकते हुए चल रहे हैं l एक शरीर से मोटे है और दूसरे छरहरे मोटे महाशय
वकील हैं l छरहरे
महोदय डॉक्टर है l यह
दोनों उस सोयी हुई युवती को देखकर अपने उम्र के अनुसर टिप्पणी करने लगते हैं l वकील साहब
कहते हैं ‘‘देखा, यह
बीसवीं सदी की करामात’’3 डॉक्टर साहब कहते हैं –‘‘जी हाँ देखा
हिंदुस्तान दुनिया से अलग तो नहीं है l’’4 इन दोनों वृद्ध भी उस युवती को
देखकर इसी तरह का अंदाज लगाते हैं कि डॉक्टर साहब को लगता है कि वह युवती किसी भले
घर की होगी लेकिन वकील साहब को लगता है कि वह वेश्या होगी l इसी तरह की
सोच बनाते हुए वे अपनी जवानी चली जाने पर बहस करते हैं l साथ ही बूढों
के जोश की बातें भी करते रहे l ये दोनों भी इस युवती के सौदर्य पर मोहित हो गये
उसे पाने की अभिलाषा मन में रखकर वे दोनों मित्र निकल गये l
तीसरा दृश्य दो देवियों का हैं एक
वृद्धा है और दूसरी नवयौवना है l इन दोनों की नजर भी इस पार्क में सोयी हुई युवती
पर पड़ी l
वृद्धा ने कहा ‘‘बड़ी बेशर्म है l”5
नवयौवना ने तिरस्कार-भाव से उसकी ओर देखकर कहा- “ठाट तो भले घर की देवियों
के हैं l”6
नवयौवना भी इस युवती को देखकर वेश्या ही समझने लगती है l ये दोनों
महलायें भी इस तरह किसी युवती का पार्क में सोना उचित नहीं समझती l इसी से मर्द
कहते हैं “स्रियों को आजादी न मिलनी चाहिए”7 इसी तरह ये दोनों महिलाऐं
किसी स्री को किस तरह होना चाहिए इस बात पर बहस करने लगाती है l इस नवयौवना का
नाम मीनू है l मीनू को वृद्धा
कहती है कि “स्री अपने को छिपाकर पुरुष को जितना नचा सकती है, अपने को खोलकर
नहीं नचा सकती l”8
मीनू का मानना है कि स्री ही क्यों छिपाए ? पुरुष क्यों नहीं ? अंततः वृद्धा के
आदेशानुसार मीनू उस युवती को उसके पास जाकर उसे जगाती है और उसे इस पार्क में सोने
का कारण पुछती है, तब वह युवती बता देती है कि उसे “चक्कर आ जाया करता है l पार्क में हवा
से कुछ लाभ होगा यहाँ आते ही चक्कर आया कि मैं इस बेंच पर बैठ गयी, फिर मुझे कुछ
होश न रहा l अब भी
मैं खड़ी नहीं हो सकती l मालूम
होता है मैं गिर पडूँगी l बहुत
दवा की, पर
कोई फायद नहीं होता l आप
डॉक्टर श्यामनाथ को जानती होगी, वह मेरे ससुर है l”9 इसी तरह युवती अपना
परिचय देती है l बातो
ही बैटन में दोनों का परिचय हो जाता है l बसंतलाल युवती के पति हैं और मीनू का बसंतलाल से
यूनिवर्सिटी का परिचय है l इस
प्रकार मीनू युवती को को अपनी मोटर पर बेगमगंज, मि. जयरामदास के घर छोड़ देती है l
इस प्रकार इस कहानी के माध्यम से लेखक प्रेमचंद ने मनुष्य की
मनोवृत्ति किस प्रकार होती है इसे बताने की कोशिश की है l हम किसके
प्रति भी किसी भी तरह की सोच बना लेते हैं l जो हम अपनी आँखों से देखते हैं वह पूरा सच नहीं
होता l किसी
के प्रति कोई भी मन बना लेने के पहले हजार बार सोचने की आवश्यकता होती है l सचाई वही नहीं
होती जो हम देखते हैं l इन सब
से कुछ और भी हो सकता है पर मनुष्य अपने दायरे के बाहर भी नहीं सोचता है l इन्हीं कुछ
बातो को लेखक ने इस कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है l
1. कथा दर्पण – संपादक डॉ. अनिल सिंह
हिंदी अध्ययन मंडल मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई पृष्ठ 18
2. वहीँ पृष्ठ 18
4. वहीँ पृष्ठ 20
5. वहीँ पृष्ठ 22
6 वहीँ पृष्ठ 22
7. वहीँ पृष्ठ 22
8. वहीँ पृष्ठ 20
9. वहीँ पृष्ठ 23
डॉ. पी.व्ही. महालिंगे
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