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प्रलय की रात्रि – सुदर्शन कहानी का सारांश

  प्रलय की रात्रि – सुदर्शन कहानी का सारांश ‘प्रलय की रात्रि ’ सुदर्शन की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है l इस कहानी में लेखक के दप्तर में जूनियर क्लर्क साधुराम है l उसका मासिक वेतन केवल पच्चीस रुपये हैं l साधुराम पूरी ईमानदारी से दिन भर अपना काम करता है l लेखक किसी कार्यवश बाहर जाते हैं तो अन्य लोग अपना काम छोड़कर बातें करने लगते, परन्तु साधुराम इसे अधर्म समझता था l वह उस समय भी अपना काम करता रहता था l साधुराम इतना भलाभालामानस था कि उसने कभी चपरासी को भी “तू” कहकर बात नहीं की l कई बार चपरासियों के काम भी स्वयं ही करता था l यह बातें लेखक को अच्छी नहीं लगती थी l इस व्यवहार पर कई बार लेखक साधुराम को डाँटते भी हैं पर साधुराम चुपचाप सुनता रहता l ऐसे उसमें अनेक गुण थे जो एक इमानदार कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति में होते हैं l वेतन थोड़ा था फिर भी उसके कपडे दूसरे व्यक्तियों से साफ होते थे l हमेशा खुश रहता था l दप्तर के कई लोग अपना काम भी साधुराम को करने के लिए कहते थे l उनका काम भी आपना काम समझकर परिश्रम और मनोवेग से करता है l इन सब गुणों के कारण साधुराम ने लेखक के दिल में जगह बनायी...

गुरुदेव को अंग-कबीर की साखियाँ

    गुरुदेव को अंग 1. सद्गुरु के सद कै क रुँ, दिल अप णी का साछ ।     कलयुग हम स्यूं लड़ि पड्या मुंह कम मे रा बा छ ।। शाब्दिक अर्थ :   इस साखी के माध्यम से कबीर यह कहना चाहते हैं कि सद्गुरु मेरे रक्षा स्थान है । मेरे रक्षक है और मैं अपने आपको सद्गुरु पर न्योछावर करता हूं । क्योंकि मैंने सद्गुरु को अपने सच्चे दिल से अपना गुरु माना है । इसीलिए अगर सारी दुनिया भी मेरा विरोध करें तो भी मैं डरने वाला नहीं हूं । मेरे रक्षक सद्गुरु हैं तो मैं किसीसे डरने वाला नहीं हूं । सद्गुरु मेरे साथ है तो मुझे किसी से डरने की क्या जरूरत है । भावार्थ : जब कोई मनुष्य अपने सद्गुरु को सच्चे दिल से मानता हो और उसने अपने आप को उन पर न्योछावर कर दिया हो ऐसे शिष्य के पीछे सद्गुरु खड़े होते हैं । उनके रक्षण करता गुरु होते हैं । इसीलिए जिसका रक्षक गुरु होता है उसे कौन मार सकता है ? ऐसे शिष्य का सारा जमाना भी दुश्मन बन गया तो भी शिष्य डरने वाला नहीं है । जिस आदमी को किसी पर पूरा भरोसा होता है वह किसी को नहीं डरता क्योंकि उसकी रक्षा करने वाला पक्का होता है । ऐसे शिष्य समाज स...