खेलती इश्किया

पत्थर को पूजता रहा
भगवान समझकर ।
प्यार किया था तुमसे
 इंसान समझकर ।
दीवानगी की हद हुई
उसके मना के बाद भी
बात समझ मे नहीं आयी ।
बुरा वक्त, बुरी संगत
बुरे लोग से जीवन में
दुख निर्मण होता है ।
दिल पे न ले दीवाने
इश्क में जलते परवाने
कई फूल खिलते बगियाँ में
माली बनकर
रखवाली कर फूलों की
उसके प्यार में न पड़
ओ गुलाब की कली
तू गेंंदा फूल
वो खिलता कमल
तू बुझता सूर्यफुल है
चूहे बिल्ली का खेल
खेलती ये इश्किया


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