नाथ साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ एवं कवि
नाथ साहित्य सिद्धों की वाममार्गी भोग प्रधान लोक साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदि काल में नाथ पंथियों की हठयोग साधना आरंभ हुई। राहुल संकृत्यायन जी ने नाथ पंथ को सिद्धों की परंपरा का विकसित रूप माना है। इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येंद्रनाथ तथा गोरखनाथ माने जाते हैं । बौद्धों की इस वज्रयान शाखा से ही संबंधित गोरखनाथ का नाथ पंथ है। वास्तव में गोरख पंथ सिद्ध युग और संत युग की कड़ी के रुप में है। डॉक्टर राम कुमार वर्मा ने नाथ पंथ के चर्मोत्कर्ष का समय 12 वीं शताब्दी से 14 वी शताब्दी तक माना है। उनका मत है कि नाथ पंथ से ही भक्ति कालीन संतमत का विकास हुआ ।जिस के प्रथम कवि कबीर थे। वैसे गोरखनाथ का समय 10 वीं 11 वीं शताब्दी के लगभग माना जाता है। सिद्धों में कुछ विभत्स और अश्लील परिपाटी चला रहे थे परंतु नाथ पंथियों ने इनसे अलग हठयोग द्वारा ईश्वर प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाया है। व्यावहारिक दृष्टि से उनके योग मार्ग में 'इंद्रिय निग्रह' पर विशेष बल दिया गया है | इंद्रियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण नारी है। अतः नारी से दूर रहने की भरसक शिक्षा दी गई है। संभव है कि गोरखनाथ ने बोद्ध विहारों में...