हिंदी साहित्य का इतिहास नामकरण और काल विभाजन की समस्या

 

हिंदी साहित्य का इतिहास नामकरण और काल विभाजन की समस्या

काल विभाजन और नामकरण करना हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समस्या रही है हिंदी साहित्य के अनेक इतिहासकारों ने काल विभाजन और नामकरण की समस्या पर प्रकाश डाला है। वैसे तो कालखंड की धारा अखंड निरंतर बहती हुई नदी की धारा के समान चलती रहती है। इसकी अविच्छिन्न धारा सर्वदा गतिमान रहती है। केवल बोध, सुविधा के लिए उसे कतिपय भागों में उपविभागों में, खंडों तथा उपखंडों में  विभाजन भूत, वर्तमान, एवं भविष्य के रूप में सीमा निर्धारण आदि कर लिया जाता है। किसी विषय को समझने के लिए उसे नाना तत्वों खंडो, तथा वर्गों में विभक्त कर लेना सैद्धान्तिक और व्यवहारिक दोनों दृष्टियों से संगत है अध्ययन की यह वैज्ञानिक सुव्यवस्था काल विभाजन का मुख्य लक्ष्य है।

 काल विभाजन के आधार :-

 ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार :-

1) आदिकाल, मध्यकाल, संक्रांति काल और आधुनिक काल

 ) शासक और उनके शासनकाल के अनुसार :-

1) एलिजाबेथ युग 2) विक्टोरिया युग 3)  मराठा काल

3)  लोकनायक और उसके प्रभाव काल के आधार पर :-

1) चैतन्य काल 2) गांधी युग

4) साहित्य नेता और उसके प्रभाव परिधी के आधार पर :-

1) रविंद्र युग  2) भारतेंदु युग

5) राष्ट्रीय सामाजिक अथवा सांस्कृतिक घटना या आंदोलन के आधार पर :-

1) भक्तिकाल 2)  पुनर्जागरण काल 3) सुधार काल 4) युद्धोत्तर काल ( प्रथम महायुद्ध के बाद का काल) 5) स्वातंत्र्योत्तर काल

6) साहित्यिक प्रवृति के नाम पर :- 1) रोमानी युग 2)  रीतिकाल 3) छायावाद युग 4)

1) आदिकाल

सातवीं सदी के मध्य से 14वी सदी के मध्य तक 650 से 1350

2) भक्तिकाल :- 14वे छती के मध्य से सत्रहवीं शती का मध्य 1350 से 1650

3) रीतिकाल :- 17वीं सदी के मध्य से 19वी सदी के मध्य तक 1650 से 1850

4) आधुनिक काल :- उन्नीसवीं सदी के मध्य से अब तक अर्थात 1850 से अब तक

 5) आधुनिक काल का विभाजन चार प्रकार से किया जाता है :-

 1) पुनर्जागरण काल / भारतेंदु काल 1857 से उन्नीस सौ तक  

2) जागरण सुधार काल/ द्विवेदी काल 1960 -1918

3) छायावाद काल 1918 से 1948

  4) छायावादोत्तर काल/ प्रगतिवाद /प्रयोगवाद 1938 से 1953

5) नवलेखन काल 1953 से अब तक

1) गार्सा द तासी का काल विभाजन एवं नामकरण

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों में सबसे पहला प्रयास गार्सा -- तासी नामक फ्रांसीसी विद्वान का माना जाता है इन्होंने सन् 1839 में 'इस्तवर- - ला लिट्रेटयूर  ऐंदुई ऐं ऐन्दुस्तानी' के नाम से फ्रेंच भाषा मे हिंदी साहित्य इतिहास लिखा है। इसका अर्थ है 'हिन्दू और हिंदुस्तानी साहित्य का इतिहास' इस पुस्तक में कोई काल क्रम, नहीं है।

2) शिवसिंह सेंगर का काल विभाजन एवं नामकरण

इनके बाद शिव सिंह सेंगर ने 1883 में  "शिव सिंह सरोज" नाम का इतिहास ग्रन्थ लिखा हैं l यह पहले भारतीय हिंदी इतिहास लेखक माना जाता है इन्होंने पहला कवि अंगद और अंतिम कवि हेमंत पंत को माना है। इस इतिहास ग्रन्थ में भी कोई कालक्रम नहीं है

3) जॉर्ज ग्रियर्सन का काल विभाजन एवं नामकरण

काल विभाजन की दृष्टि से हिंदी का सर्वप्रथम इतिहास सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने लिखा है इनके इतिहास ग्रंथ का नाम " मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ (मोर्डन) नार्दन हिंदुस्तान" नाम से सन् 1886 में लिखा है।

 सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने " मोर्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ नार्दन हिंदुस्तान" नाम से सन् 1889 में  इतिहास ग्रंथ लिखकर उन्होंने सर्वप्रथम हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया है उनका काल विभाजन निम्नानुसार प्रस्तुत किया जाता है l

1. चारण काल (700-1300)

2. 15 वी शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण काल

3. जायसी की प्रेम कविता

4. व्रज का कृष्ण संप्रदाय

5. मुगल दरबार

6. तुलसीदास

7. रीतिकाव्य

8. तुलसीदास के परवर्ती

9. 18 वी शताब्दी

10. कंपनी के शासन में हिंदुस्तान

11. महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान

इस प्रकार जॉर्ज ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया है l यह काल विभाजन पूर्ण रूप से निर्दोष न होकर भी इसका अपना महत्व है l इन के उपरांत अन्य बहुत सारे विद्वानों ने हिंदी का अथवा हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया है l उपर्युक्त कालक्रम में इस वर्गीकरण में एकरूपता नहीं रह पायी है l कहीं धर्म को मूल्य दिया गया है तो कहीं शासक को तो कहीं कवि को कहीं संप्रदाय को महत्त्व दिया गया है l यह काल-विभाजन न होकर साहित्य के इतिहास के भिन्न-भिन्न अध्यायों का नामकरण है l  डॉ. गणपति चंद्रगुप्त ने फिर भी इसकी प्रशंसा की है.

4) मिश्रबंधुओं का काल-विभाजन

मिश्र बंधुओं ने 'मिश्रबंधु विनोद' नाम का इतिहास ग्रंथ सन 1917 ईस्वी में लिखा l इन्होंने जॉर्ज ग्रियर्सन की अपेक्षा अधिक सुधार परिष्कार करके कालक्रम सिद्धांत को अपनाया है l उन्होंने 8 वर्गों में  कालक्रमानुसार साहित्य के इतिहास की सामग्री को रखा है.

1) एक आरंभिक काल :- 1) पूर्व आरंभिक काल 700 से 1343  वि.

                   2) उत्तर आरंभिक काल 1344 से  1444 वि.

2) माध्यमिक काल :-   3) पूर्व माध्यमिक 1445 से 1560   वि.

                    4)उत्तर माध्यमिक 1561 से 1680 3)वि.

3) अलंकृत काल :-     5) पूर्वलंकृत काल 1681 से 1790 वि.

                   6) उत्तरालंकृत काल 1791 से 1889 वि.

4) परिवर्तन काल :- 1890 से 1925  वि.

5) वर्तमान काल 1926 से आज तक

उपर्युक्त काल विभाजन न् 1893 में कृष्ण बिहारी मिश्र, शुकदेव बिहारी मिश्र और गणेश बिहारी मिश्र नामक तीनों भाइयो ने 'मिश्रबंधु विनोद' नामक ग्रंथ लिखा और उसमें काल का विभाजन करके उसका विवरण दिया है l इस इतिहास ग्रंथ में जो वर्गीकरण की कालक्रम पद्धति की सूचना दी गई है, उसकी अपनी उपयोगिता है l विद्वानों ने आगे के इतिहासों में सुधार किया हैं l  परंतु मिश्रबंधु विनोद का अपना मूल्य है l  विद्वानों ने साहित्य के इतिहास को केवल कवि वृत्त संग्रह नहीं माना है l वे उसे देश काल की परिस्थिति के आलोक में रखकर उसकी  मूल चेतना की परख करना चाहते हैं l

5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन एवम् नामकरण

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने न् 1929 मैं 'हिंदी साहित्य का इतिहास' नामक ग्रंथ प्रकाशित करके उसमें बहुत ही सोच पूर्ण काल का विभाजन प्रस्तुत किया है l काल का नामकरण भी उन परिस्थितियों और साहित्य के आधार पर किया है l इन्होंने हिंदी साहित्य का काल विभाजन निम्नानुसार प्रस्तुत किया है l

1) आदिकाल -वीरगाथा काल सं. 1050 से 1375 अर्थात् 993 से 1318 ई.

2)  पूर्व मध्यकाल -भक्तिकाल सं. 1375 से 1700 अर्थात् 1318 से 1643 ई.

3) उत्तर मध्यकाल- रीतिकाल सं. 1700 से 1900 अर्थात् 1643 से 1843 ई.

4) आधुनिक काल -गद्य काल सं. 1900 से 1984 तक अर्थात् 1843 से अब तक

उपर्युक्त काल विभाजन में अनेक विद्वानों ने आक्षेप  लिए हैं फिर भी उन्हीं का काल विभाजन ठीक लगता है l आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मिश्रबंधुओं के आरंभिक काल को वीरगाथा काल नाम दे दिया है इसी प्रकार अन्य कालों को भी उन्होंने अपना नाम दिया है l भक्ति काल और रीतिकाल के साथ-साथ आधुनिक काल सबसे ज्यादा महत्व रखता है l आधुनिक काल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी गद्य काल से अभिहित करते हैं l पर गद्य काल नामकरण करना तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि आज केवल गद्य की ही रचनाएं नहीं हो रही, बल्कि बहुत सारा साहित्य अन्य काव्य और बहुत सारी विधाओं में लिखा जा रहा है l इसी कारण शुक्लजी का यह गद्य काल नाम एकांगी लगता है, फिर भी उनका अपना महत्व है l

6) डॉ. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन

डॉ. रामकुमार वर्मा ने सन 1938 में 'हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' नामक ग्रंथ प्रकाशित किया है और उसमें अपने ढंग से हिंदी साहित्य का काल विभाजन प्रस्तुत किया है l

 1) संधिकाल : 750 से 1000 वीरगाथा काल (चारण काल ) 1050 से 1375 तक

2)पूर्वमध्य काल : भक्तिकाल (संत काव्य) 1375से 1700

3) उत्तर मध्य काल : रीति काल ( प्रेम काव्य ) 1700  से 1900

4)आधुनिक काल 1900 से अब तक

 डॉ. रामकुमार वर्मा हिंदी साहित्य का काल विभाजन सं. 750 से मानते हैं क्योंकि वह हिंदी साहित्य का आरंभ 613 ईस्वी से मानते हैं और स्वयंभू को हिंदी का पहला कवि सिद्ध करते हैं l आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी आदिकाल को वीरगाथा काल नाम देते हैं और उस का आरंभ वह सं.1050 से मानते हैं l वीरगाथाकाल को वर्मा ने चारण काल कहां है l इसी प्रकार वर्मा ने भक्तिकाल को पूर्व मध्यकाल कहां है l और इसे वह संत काव्य और प्रेम काव्य नामों से अभिहित किया है और शुक्लजी ने निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति कहां है l निर्गुण भक्ति में भगवान और भक्त में अंतर नहीं है l इन्हें ही संत कवि कहा जाता है l संत कवि अपने आराध्य को पति के रूप में देखते हैं अर्थात यहां दांपत्य भाव है l प्रेममार्गी में प्रेम प्रमुख  है l प्रेम की कहानी है l डॉ. रामकुमार वर्मा ने जो आदिकाल समय 750 से माना है वह केवल उनके कवि मन का प्रभाव है l इसी कारण वे रामचंद्र शुक्ल के मत से सहमत न होकर 250 साल पीछे लेकर जाते हैं l काल विभाजन का आधार देते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल का नाम जिस समय ज्यादा रचनाएं लिखी गई हो उसे ध्यान में रखकर नामकरण किया है और 1050 में लगभग वीर रस की की रचनाएं सामने आई उस समय विशेष प्रवृत्ति मूलक रचनाएं ज्यादा है इसे आधार बनाकर उन्होंने इसे वीरगाथा काल नाम दिया है l आज नई खोजों के अनुसार यह भी नाम ठीक नहीं लगता पर रामकुमार वर्मा का दिया हुआ संधि काल नाम का उतना कोई प्रमाण नहीं है l बहुत से विद्वानों ने रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन और नामकरण को स्वीकार भी किया है और बहुत से लेखकों ने टीका भी की है

7) डॉ. कामलकुल श्रेष्ठ का काल विभाजन

 कमलकुश्रेष्ठ की सभी तिथियां राम चंद्र शुक्ला की है पर उन्होंने केवल नामकरण किया है वह निम्नानुसार है

 1) अंधकार काल

1) कलात्मक उत्कर्ष काल

 3) साहित्य शास्त्रीय काल

8) धीरेंद्र वर्मा का काल विभाजन

डॉ. धीरेंद्र वर्मा ने हिंदी के विकास की तीन श्रेणियां बताई है वह निम्नानुसार है l 

1) प्राचीन काल

2) मध्यकाल

3)आधुनिक काल  

9) हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन

इन्होंने हिंदी 'साहित्य की भूमिका' नामक ग्रंथ लिखकर उसमें अपने ढंग से का का विभाजन किया है  और उसका नामकरण भी किया है

1) आदिकाल -10 वीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी का मध्य

2) भक्ति काल- चौदहवीं शताब्दी के मध्य से 16वी शताब्दी का मध्य

 3) रीतिकाल 16वीं शताब्दी के मध्य से 19वी शताब्दी का मध्य

4)  आधुनिक काल 19वीं शताब्दी के मध्य से आज तक

अर्थात् इनका काल-विभाजन तिथियों के अनुसार निम्नानुसार रहा है l

1) आदिकाल 1050 से 1350

 2) भक्ति काल 1350 से 1550

 3) रीतिकाल 1550 से 1850

4) आधुनिक काल 1850 से आज तक

उपर्युक्त काल-विभाजन देखने के पश्चात लगभग रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन से मिलता हुआ नजर आता है l

10) डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय का काल विभाज

8) डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यापन करते थे इन्होंने 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य का इतिहास' नामक ग्रंथ लिखकर उसमें काल समय साहित्य निर्माण का स्थान और उसकी विशेषताएं प्रस्तुत की है

इस प्रकार संक्षेप में हिंदी साहित्य के काल विभाजन और नामकरण की समस्या पर प्रकाश डाला जा सकता है l 

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