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कथा संचयन और मानक एकांकी के प्रोजेक्ट विषय

  ‘कथा संचयन’ एवं मानक एकांकी के प्रोजेक्ट के विषय sem 1 Optional HINDI ‘कथा संचयन’ संपादक हिंदी अध्ययन मंडल मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई वर्ष 2020-21 से शुरू 1) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित पुरुष पात्र 2) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित स्री पात्र 3) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों का सारांश 4) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित गाँव 5) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित नगर 6) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित समस्या 7) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित समाज 8) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों का आशय 9)   ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित प्रकृति 10) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित प्रमुख पात्र 11) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित पुरुष जीवन 12) ‘कथा संचयन’ संग्रह की कहानियों में चित्रित स्री चरित्र 13) ‘उसने कहा था’ कहानी में चित्रित स्री लेखक का व्यक्तित्व एवं कृतित्व 14) ‘चित्र का शीर्षक’ कहानी कथ्य प्रसाद का व्यक्तित्व एवं कृतित्व 15) ‘दिल्ली में एक मौत’ ...

'इनाम' कहानी का कथ्य

'इनाम' कहानी का कथ्य  इनाम यह जैनेन्द्रकुमार की महत्वपूर्ण कहानी है । जैनेन्द्रकुमार एक मनोवैज्ञानिक कहानीकार है और इस कहानी में बाल मनोविज्ञान का चित्रण हुआ है । कहानी का आरंभ कस्बे के हाईस्कूल के अहाते में लड़कों की चहल-पहल, इधर-उधर धूम मचाते हुए बच्चे दिखाई देते हैं । क्योंकि उनका नतीजा आनेवाला है । आखिर नतीजा निकलता है और सभी लड़के नतीजा देखने लगते हैं । इन लड़कों में एक अलग-थलग खड़ा एक लड़का कठिनाई से दस बरस का होगा, धीमे से आगे बढ़ जाता है और बोर्ड के सामने खड़े होकर अपना नाम और मार्क्स देखकर वही जम जाता है, फिर धीमी चाल से वहाँ से निकलता है ।  इस लड़के का नाम धनंजय है और वह बहुत खुश है क्योंकि वह सातवें दर्जे में अव्वल आया है और आठवें में  चढ़ा है । इसी खुशी में वह घर आता है और अपनी माँ को वह सातवीं कक्षा में पास होने की बात कहता है । माँ उसकी बात सुनकर अनसुनी करती है । पर धनंजय सारी क्लास में अव्वल आने की बात करता है । लेकिन माँ में इतना उत्साह नहीं था । वह ऐसी ही रहा करती है । माँ को याद आता है कि वह सबेरे ही चला गया था और अब आया है नौ बजे माँ खाना देती है पर उसमें बच्चे ...

कथा दर्पण कहानी संग्रह के प्रोजेक्ट के विषय

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साहित्य का अर्थ, परिभाषा

साहित्य  भारतीय व्याकरण के आचार्यों के अनुसार साहित्य शब्द की उत्पत्ति या बनावट में 'सम' उपसर्ग 'धा' धातु जिसे 'हित' हो जाया करता है और 'यत' प्रत्यय - यह तीन शब्दांश विद्यमान है ।  इस प्रकार उनका सम्मिलित अर्थ बनता है, सम + हित + यत =  सहित  इस - 'सहित' का भाववाचक रूप ही साहित्य बनता है, या होता है । 'धा' धारण करने के अनुसार इस 'धा' से हित बनने वाला शब्द का अर्थ होता है धारण करना । इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिस शब्द में धारण करने साथ रहने और रखने का भाव वर्तमान रहा करता है, उसे साहित्य कहते हैं ।  संस्कृत में 'सहि तस्य भाव इति साहित्यम' कह कर भी साहित्य की  व्युत्पत्ति की जाती है । उसका अर्थ है साथ रहने या होने का भाव होना । हित और 'सहित' व्याख्या करने पर 'हित' के साथ होना ही साहित्य हैं ।  व्यापक अर्थों में साहित्य सत्य से सुंदर और शिव की साधना की ओर अग्रसर होता है । जबकि सीमित या ललित अर्थों में साहित्य कल्पना के सौंदर्य में जीवन के सत्य को सजा संवार कर शिव साधना की ओर प्रवृत्त होता है । यहां हम जिस साहित्...

प्रलय की रात्रि – सुदर्शन कहानी का सारांश

  प्रलय की रात्रि – सुदर्शन कहानी का सारांश ‘प्रलय की रात्रि ’ सुदर्शन की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है l इस कहानी में लेखक के दप्तर में जूनियर क्लर्क साधुराम है l उसका मासिक वेतन केवल पच्चीस रुपये हैं l साधुराम पूरी ईमानदारी से दिन भर अपना काम करता है l लेखक किसी कार्यवश बाहर जाते हैं तो अन्य लोग अपना काम छोड़कर बातें करने लगते, परन्तु साधुराम इसे अधर्म समझता था l वह उस समय भी अपना काम करता रहता था l साधुराम इतना भलाभालामानस था कि उसने कभी चपरासी को भी “तू” कहकर बात नहीं की l कई बार चपरासियों के काम भी स्वयं ही करता था l यह बातें लेखक को अच्छी नहीं लगती थी l इस व्यवहार पर कई बार लेखक साधुराम को डाँटते भी हैं पर साधुराम चुपचाप सुनता रहता l ऐसे उसमें अनेक गुण थे जो एक इमानदार कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति में होते हैं l वेतन थोड़ा था फिर भी उसके कपडे दूसरे व्यक्तियों से साफ होते थे l हमेशा खुश रहता था l दप्तर के कई लोग अपना काम भी साधुराम को करने के लिए कहते थे l उनका काम भी आपना काम समझकर परिश्रम और मनोवेग से करता है l इन सब गुणों के कारण साधुराम ने लेखक के दिल में जगह बनायी...

गुरुदेव को अंग-कबीर की साखियाँ

    गुरुदेव को अंग 1. सद्गुरु के सद कै क रुँ, दिल अप णी का साछ ।     कलयुग हम स्यूं लड़ि पड्या मुंह कम मे रा बा छ ।। शाब्दिक अर्थ :   इस साखी के माध्यम से कबीर यह कहना चाहते हैं कि सद्गुरु मेरे रक्षा स्थान है । मेरे रक्षक है और मैं अपने आपको सद्गुरु पर न्योछावर करता हूं । क्योंकि मैंने सद्गुरु को अपने सच्चे दिल से अपना गुरु माना है । इसीलिए अगर सारी दुनिया भी मेरा विरोध करें तो भी मैं डरने वाला नहीं हूं । मेरे रक्षक सद्गुरु हैं तो मैं किसीसे डरने वाला नहीं हूं । सद्गुरु मेरे साथ है तो मुझे किसी से डरने की क्या जरूरत है । भावार्थ : जब कोई मनुष्य अपने सद्गुरु को सच्चे दिल से मानता हो और उसने अपने आप को उन पर न्योछावर कर दिया हो ऐसे शिष्य के पीछे सद्गुरु खड़े होते हैं । उनके रक्षण करता गुरु होते हैं । इसीलिए जिसका रक्षक गुरु होता है उसे कौन मार सकता है ? ऐसे शिष्य का सारा जमाना भी दुश्मन बन गया तो भी शिष्य डरने वाला नहीं है । जिस आदमी को किसी पर पूरा भरोसा होता है वह किसी को नहीं डरता क्योंकि उसकी रक्षा करने वाला पक्का होता है । ऐसे शिष्य समाज स...