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हिंदी साहित्य का इतिहास नामकरण और काल विभाजन की समस्या

  हिंदी साहित्य का इतिहास नामकरण और काल विभाजन की समस्या काल विभाजन और नामकरण करना हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समस्या रही है । हिंदी साहित्य के अनेक इतिहासकारों ने काल विभाजन और नामकरण की समस्या पर प्रकाश डाला है। वैसे तो कालखंड की धारा अखंड निरंतर बहती हुई नदी की धारा के समान चलती रहती है। इसकी अविच्छिन्न धारा सर्वदा गतिमान रहती है। केवल बोध , सुविधा के लिए उसे कतिपय भागों में उपविभागों में , खंडों तथा उपखंडों में  विभाजन भूत , वर्तमान , एवं भविष्य के रूप में सीमा निर्धारण आदि कर लिया जाता है। किसी विषय को समझने के लिए उसे नाना तत्वों खंडो , तथा वर्गों में विभक्त कर लेना सैद्धान्तिक और व्यवहारिक दोनों दृष्टियों से संगत है । अध्ययन की यह वैज्ञानिक सुव्यवस्था काल विभाजन का मुख्य लक्ष्य है।   काल विभाजन के आधार :-   ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार :- 1) आदिकाल, मध्यकाल, संक्रांति काल और आधुनिक काल   २ ) शासक और उनके शासनकाल के अनुसार ...

छायावादी कविता की विशेषताएँ एवं कवि परिचय

छायावाद (1920 से 1935 ई.) पृष्ठभूमि छायावाद का नामकरण  हिंदी काव्य की प्रमुख प्रवृतियों में छायावाद नाम की काव्य धारा है। बीसवीं शताब्दी के द्वितीय दशक में मुकुटधर पांडेय ने हिंदी में छायावाद नामक एक निबंध लिखा। यह निबंध 'श्री शारदा' नामक पत्रिका में 1920 में प्रकाशित हुआ उन्होंने उसमें छायावाद को अंग्रेजी के मिस्टिसिज्म के अर्थ में प्रयुक्त किया था। ऐसा ही एक लेख श्री सुशील कुमार ने 'सरस्वती' (1921) नामक पत्रिका में लिखा था। इन लेखकों ने उस समय की काव्य प्रवृत्ति को छायावाद नाम उस पर व्यंग्य करने के लिए दिया था, पर यह नाम छायावादी कवियों को बाद में व्यंग्य न लगकर बड़ा पसंद आया और उन्होंने इस नाम का स्वागत किया । तब से व्यंग के रूप में व्यक्त छायावाद का नाम इस तरह के काव्य प्रवृत्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा । आचार्य रामचंद्र शुक्ल छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पाण्डेय को मानते हैं । छायावाद की परिभाषा जयशंकर प्रसाद ने "अपने भीतर से पानी की तरह अंतर स्पर्श करके भाव समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति को छायावाद का नाम दिया है ।" प्रसाद की इस परिभाषा में भीत...

हिंदी कहानी का विकास-क्रम

हिंदी कहानी का विकास-क्रम   हिंदी कहानी के सूत्र वैदिक साहित्य में मिलते हैं l संस्कृत. प्राकृत , पालि ,  और अपभ्रंश साहित्य में कहानी का स्वरूप मनोरंजन या उपदेश ही रहा है l मुसलमानों के संपर्क से कथा में प्रेम की मुख्य भूमिका लायी गयी । ‘लैला मजनू ’ , सीरि-फरहाद जैसी मुसलमानों की प्रेम कथाएँ हैं l हमारे यहाँ भी ‘तोता - मैना ’ , छबीली- भटियारिन ’ , ‘सारंगा- सदाव्रत’, जैसी कहानियों का चलन देखने को मिलता हैं l हिंदी की सबसे पहली कहानी कौनसी हैं? इसे लेकर बहुत मतभेद देखने को मिलते हैं l   हिंदी कहानी की विकास यात्रा   प्रेमचंद पूर्वकाल १९००   से १९२७   हिंदी की पहली कहानी किशोरी लाल गोस्वामी की ‘ इंदुमती ’ १९००   आ. रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय'  सन १९०३ बंग महिला की कहानी   ‘दुलाई वाली ’ सन १९०७ इन तीन कहानियों को आ. रामचंद्र शुक्ल ने मौलिक कहानी स्वीकार किया हैं  l इनके बाद जयशंकर प्रसाद की ‘ ग्राम ’ सन १९११ ‘इन्दू’ १९०९   माधव प्रसाद मिश्र की ‘ मन की चंचलता ’ १९०० लाला भगवानदीन की ‘ प्लेग क...

द्विवेदी युगीन प्रमुख कवि परिचय एवं द्विवेदी युगीन कविता की विशेषताएँ

महावीर प्रसाद द्विवेदी युग / पूर्व छायावाद युग (१९०० से १९२०)       भारतेन्दु युग के काव्य विकास का दूसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी युग में आरम्भ हुआ | भारतेन्दु युग में राजभक्ति, देशभक्ति और समाज-सुधार की कविता होती थी | कविता के लिए ब्रजभाषा का प्रयोग होता था | गद्य में खड़ीबोली का प्रयोग होता था | द्विवेदी युग में आकर राजभक्ति समाप्त हो गई | महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ब्रजभाषा ही काव्य की भाषा न रहे बल्कि खड़ीबोली में गद्य और पद्य के प्रयोग पर भी बाल दिया | महावीर प्रसाद द्विवेदी ने स्वयं खड़ी बोली में कविता लिखी | उनके अनुकरण पर श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा शंकर, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ आदि ने ब्रज भाषा छोड़कर खड़ी बोली में काव्य रचना प्रारंभ की | इस युग में एक अदभुत प्रयास के फलस्वरूप जो कविता आयी उसमें   भावुकता के स्थान पर इतिवृतात्मकता की प्रधानता रही | महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके युग के प्रमुख कवि का संक्षिप्त परिचय :-       १)       महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म (१८६४ – १९३८)  ...