खण्ड काव्य की परिभाषा एवं विशेषताएँ
खण्ड काव्य प्रबंध काव्य का एक भेद है । प्रबंध काव्य के मुख्य भेद चार बताये जाते हैं 1) महाकाव्य 2) खण्ड काव्य 3) काव्य रूपक 4) विचार काव्य आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने 'एकार्थ काव्य ' नाम से प्रबंध काव्य का भेद स्वीकार किया है । 'खण्ड काव्य' के हिस्सा, टुकड़ा, संयुक्त वस्तु का हिस्सा । इस तरह इसके अर्थ लगाए जा सकते हैं । यह काव्य महाकाव्य के बिल्कुल विपरीत होता है । महाकाव्य में व्यापकता और सर्वांगीणता होती है । खण्ड काव्य में जीवन के किसी एक भाग, एक घटना, एक भाव, एक विचार और एक कार्य पर प्रकाश डाला जाता है । खण्ड काव्य का क्षेत्र सीमित होता है । महाकाव्य में विभिन्न कथाओं का, प्रासंगिक कथाओं का वर्णन होता है, जबकि खण्ड काव्य में विस्तार नहीं होता और प्रासंगिक कथा का चित्रण नहीं होता है। महाकाव्य में आठ से अधिक सर्ग संख्या होती है और इसमें छंदों का भी बंधन है पर खण्ड काव्य में इनकी अनिवार्यता नहीं है । यहाँ केवल एक ही रस की प्रधानता रहती है । यह भी अनिवार्य नहीं होती है । महाकाव्य एवं खण्ड काव्य के स्वरूप में कोई खास अंतर नहीं होता है । मूल अंतर उसके 'एकदेशानुसारिता' (एक देश का अनुसरण करनेवाली रचना) में होता है । महाकाव्य में जिन तत्वों को व्यापक आयाम दिया जाता है खण्ड काव्य में उसका सीमित चित्रण होता है ।
खंडकाव्य को लेकर संस्कृत के आचार्यों की अधिक परिभाषाएं नहीं मिलती है । यत्र तत्र रूप में कुछ परिभाषाएं प्राप्त होती हैं । आचार्य विश्वनाथ ने अपनी रचना 'साहित्य दर्पण' में खंडकाव्य को इस रूप में परिभाषित किया है ।
"भाषाविभाषा नियमात्काव्य सर्ग समुज्जि तम ।
एकार्थप्रवणै; पधै: सन्धिसामाग्रय वर्जितम
खंडकाव्य भवेतकाव्य स्ययैकदेशानुसारि च ।।"
अर्थात एक ही सर्ग से युक्त एक अर्थ का व्यंजक संधि आदि नियमों की समग्रता से विरहित एक दिशा अनुसार खंडकाव्य होता है । इस काव्य में वस्तु संगठन तो आवश्यक है पर सर्ग संगठन नहीं । एक ही वस्तु भाव, चरित्र विचार एवं कार्य आदि का इसमें वर्णन रहता है ।
आधुनिक हिंदी के विद्वानों की परिभाषा :-
आधुनिक कालीन हिंदी के अनेक विद्वानों ने खंडकाव्य को परिभाषित करने की कोशिश की है ।
1) डॉ भागीरथ मिश्रा ने अपनी पुस्तक 'हिंदी काव्य शास्त्र का इतिहास' में खंड काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है "खंडकाव्य वह प्रबंध काव्य है जिसमें किसी भी पुरुष के जीवन का कोई ऐसे ही वर्णित होता है पूरी जीवन गाथा नहीं इसमें महाकाव्य के सभी अंग न रहकर एकाध अंग ही रहते हैं ।"
2) आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक 'वाङ्गमय विमर्श' में खंड काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है - "महाकाव्य के ढंग पर इस काव्य की रचना होती है पर जिसमें पूर्ण जीवन न ग्रहण करके खंड जीवन ही ग्रहण किया जाता है, उसे खंडकाव्य कहते हैं ।"
3) श्री बलदेव उपाध्याय ने अपनी पुस्तक 'संस्कृत आलोचना' में खंडकाव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है : - वह काव्य जो मात्रा में महाकाव्य से छोटा परंतु गुणों में उससे कदापि शून्य न हो, खंडकाव्य कहलाता है - महाकाव्य विषय प्रधान होता है परंतु खंडकाव्य मुख्यतः विषयी प्रधान होता है । जिसमें लेखक कथानक के स्थूल ढाँचे में अपने वैयक्तिक विचारों का प्रसंगानुसार वर्णन करता है ।"
4) डॉ. धीरेंद्र वर्मा ने खंड काव्य की परिभाषा अपने पुस्तक 'हिंदी साहित्य कोष' में इस प्रकार दी है - "खंडकाव्य के कवि का दृष्टिकोण उतना व्यक्ति-निरपेक्ष और वस्तुपरक नहीं रहता जितना महाकाव्य के लिए अपेक्षित होता है ।"
5) राजेंद्र द्विवेदी ने अपनी पुस्तक 'साहित्य शास्त्र का पारिभाषिक शब्दकोश' में खंडकाव्य के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए लिखा है :- "महाकाव्य के एक अंश का अनुसरण करने वाला काव्य महाकाव्य के लिए आवश्यक वस्तुओं में से जिसमें सब का समावेश ना हो और भी अपेक्षित या छोटे जीवन क्षेत्र का प्रबंध चित्र उपस्थित करें वह खंडकाव्य है।"
6) डॉ. ओम प्रकाश शर्मा शास्त्री ने अपनी 'काव्यालोचन' नामक पुस्तक में खंडकाव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है - "खंडकाव्य में विशिष्ट स्थान से संबंध ऐसी रसवती घटना का वर्णन होता है जिसमें पाठक गिरिकंदरावर्तनी जलधारा की -सी स्नान -पान तृप्ति प्राप्त करता है ।"
संस्कृत के ग्रंथ 'काव्यानुशासन' और 'काव्यादर्श' के आधार पर डॉ. भगीरथ मिश्र ने खण्ड काव्य के दो भेद किये हैं । एकार्थ खण्ड काव्य -जिसमें एक प्रकार के छंद में किसी घटना का दृश्य का वर्णन किया जाता है । दूसरा अनेकार्थक खण्ड काव्य जिसमें अनेक प्रकार के छंद, भाव, के साथ जीवन के किसी एक अंश का अंकन किया जाता है ।
खण्ड काव्य की विशेषताएँ
1) जीवन के किसी एक पहलू का चित्रण
खंडकाव्य की कथा जीवन के किसी एक पहलू, एक परिस्थिति अथवा एक घटना या प्रसंग से ही संबंध रखती है । इसमें कथा विस्तार भी नहीं रहता है और ना ही प्रासंगिक कथाओं का वर्णन रहता है । कुछ खंडकाव्य में तो प्रासंगिक कथाएं बिल्कुल ही नहीं होती है । मुख्य कथा में भी बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता है । कथा इतिहास से अथवा कल्पना प्रधान भी हो सकती है ।
2) पात्रों की संक्षिप्तता कथा
इसमें महाकाव्य जैसे पात्र नहीं होते हैं । खंडकाव्य में पात्र कम होते हैं तथा उनका चारित्रिक विकास पूरी तरह प्रकट नहीं किया जा सकता है फिर भी उनके चरित्रों की सजीव रेखाएं संक्षिप्त रूप में प्रकट हो जाती है । नायक यहाँ भी उच्चकुलीन होता है । जैसे 'सुदामा चरित्र' का नायक उच्च वंश का ब्राम्हण है 'पंचवटी' का नायक लक्ष्मण श्रेष्ठ क्षत्रिय वंश का है । सजीवता, स्वाभाविकता, मनोवैज्ञानिक संगति आदि चरित्र चित्रण के गुण विद्यमान रहते हैं ।
3) खंडकाव्य के संवाद
संवाद, संक्षिप्त, रोचक, चुस्त, स्वाभाविक होने चाहिए । पात्र प्रसंग और परिस्थिति के अनुकूल होने से ही सफल होते हैं । जैसे 'पंचवटी' खंडकाव्य की रोचकता एवं नाटकीयता ही उसकी सफलता का कारण है ।
4) देश काल एवं वातावरण
देश काल एवं वातावरण के निर्वाह की गुंजाइश खंडकाव्य में नहीं रहती है । इसी तरह इस भाव विस्तार भी खंडकाव्य में कम हो पाता है ।
5) एक मुख्य रस
प्रायः एक मुख्य रस होता है । खण्ड काव्य में ऐसा कोई नियम भी नही है । इसमें किसी एक रस का परिपाक प्रधान रूप से होता है । अन्य रस गौण रूप में रहते हैं । । इसमें किसी उद्दात्त भाव का चरम उत्कर्ष दिखाकर पाठकों को मंत्र मुग्ध किया जा सकता है । जैसे सुदामा चरित्र में रस न दिखाकर मैत्री भाव का चरम उत्कर्ष दिखाया गया है । यहाँ रस की आवश्यकता नहीं है ।
6) खण्ड काव्य का उद्देश्य
खण्ड काव्य का उद्देश्य महान होता है । खण्ड काव्य का में उपदेश होता है और महाकाव्य में संदेश । उपदेश काल सापेक्ष होता है और संदेश सनातन और मानवता व्यापी होता है ।
7) खण्ड काव्य की भाषा
भाषा सरल स्वाभाविक एवं बोधगम्य में होनी चाहिए संगीत माधुर्य और भावनाकुल विधान भी खंडकाव्य का प्रमुख विशेषता है ।
8) छंद प्रयोग
खंडकाव्य में छंद के लिए कोई अलग नियम नहीं है ।उसमें भावानुकुल छंद योजना को ही महत्व दिया जाता है । जैसे 'सुदामा चरित्र' में एक ही पृष्ठ पर दोहा, कवित्त, सवैया आदि कई छंद है । वास्तव में खंडकाव्य में महाकाव्य की अपेक्षा अभिनेता की मात्रा अधिक होती है इसी कारण कवि को पात्र परिस्थिति और भाव के परिवर्तन के साथ छंद भी परिवर्तित करना पड़ता है ।
9) विषयगत विविधता
लोक रूचि के अनुसार खंडकाव्य के विषय भी बदलते रहते हैं । यही कारण है कि कभी उसमें लोकरंजन की प्रवृत्ति की प्रधानता रहती, है तो कभी वह केवल साहित्य मर्मज्ञ के ही उपभोग की वस्तु बनकर रह जाती है ।
विषयगत विविधता की दृष्टि से विद्वानों ने खंडकाव्य के कई भेद-विभेद किए हैं । इन भेदों विभेदों में व्यक्ति प्रधान, प्रेम प्रधान, भक्ति प्रधान आदि खंडकाव्य प्रमुख है । व्यक्तित्व प्रधान खंडकाव्य में कवि का अपना व्यक्तित्व मुखरित हो उठता है । इसमें कभी सचेत होकर अपने काव्य को अधिकाधिक मनोरम और कलापूर्ण बनाने का प्रयत्न करता है । ऐसी रचनाओं में प्रेम, करुणा, हर्ष, शोक, ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष आदि भावों की सहज व्यंजना ही प्रदान रहती हैं । प्रेम प्रधान खंडकाव्य व्यक्ति प्रधान खंडकाव्य का ही एक भेद है । इसमें लोक प्रचलित दंत कथाओं को ही आधार बनाया जाता है । इस तरह के खंडकाव्य में सूफी प्रेम भावना और ऐतिहासिक पात्रों के प्रेम प्रसंगों को प्रधानता ही दी गई है । भक्ति प्रधान खण्ड काव्य में विषय और चरित्र अलौकिक होते हुए भी काव्य रूप की दृष्टि से इनमें कोई मौलिकता नहीं मिलती है । तुलसीदास कृत 'रामलला नहछू', पार्वती मंगल', नंददास का 'भंवर गीत' नरोत्तम दास का 'सुदामा चरित्र' उत्कृष्ट भक्ति प्रदान खंडकाव्य है । कुछ कवियों ने काल्पनिक कथावस्तु को लेकर खंड काव्य की रचना की है । रामनरेश त्रिपाठी रचित 'पथिक', 'मिलन', तथा 'स्वप्न' इसी तरह के खंडकाव्य हैं। नवीन ढंग के खंडकाव्य में देशी-विदेशी शैली को अपनाकर कवियों ने कई सफल खंडकाव्य लिखे हैं । इन कवियों में रामकुमार वर्मा, सुमित्रानंदन पंत और जयशंकर प्रसाद जी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । आधुनिक युग में खंडकाव्य की विधा लगभग समाप्ति की ओर बढ़ती हुई दिखाई देती है । क्योंकि आधुनिक युग का कवि मुक्तक काव्य की ओर ज्यादा आकर्षित हुआ है ।
Comments
Post a Comment