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Showing posts from 2020

गलतियाँ

इन्सान से होती है इन्सान तुम भी हो इन्सान मैं भी हूँ दूध के धुले  तुम भी नहीं हो और मैं भी नहीं हूँ बड़े विद्वान तुम भी नहीं मैंने भी दावा नहीं किया कुछ गलत तुमसे भी होगा कभी मुझसे भी होगा  पर मेरी ही गलतियाँ जरूरी है उछालना?

व्रत भंग - जयशंकर प्रसाद

कहानी का आरंभ दो मित्र नंदन और कपिंजल के वार्तालाप से होता है । दोनों साथ पढ़े हैं । नंदन कलश का पुत्र है । कपिंजल एक निर्धन व्यक्ति है । दोनों की मित्रता में दूरी निर्माण होने में शायद नंदन का अमीर होना ही लगता है । कपिंजल का यह कहना कि "तुम मुझे दरिद्री युवक समझकर मेरे ऊपर कृपा रखते थे , किंतु उसमें कितना तीक्ष्ण अपमान था , उसका मुझे अब अनुभव हुआ।" इसी बात के कारण कपिंजल को लगता है कि नंदन पर अमीरी का दर्प छाया हुआ है । इसी दर्प के कारण दोनों की मित्रता टूट जाती है और कपिंजल दरिद्री का भी गर्व रखता है । कपिंजल कसम खाता है कि वह भूखा मर जाएगा लेकिन किसीके सामने हाथ नहीं फैलाएगा । आगे चलकर वह एक दिगम्बर पंथिय साधु बन जाता है  । इस घटना को कई वर्ष हो जाते हैं । इधर पाटलीपुत्र के धनकुबेर कलश का पुत्र कुमार नंदन उस घटना को भूल जाता है । ऐश्वर्य में जीवन बिताता है । उसे चतुराई से जीना नहीं आता था और न ही वह बहुत हुशार था ।  मगध के महाश्रेष्ठि धनंजय की पुत्री राधा से नंदन का विवाह निश्चित हो जाता है । मगध की महादेवी के कहने पर कि नंदन ज्ञानी, विद्वान नहीं है, फिर भी गुरुओं और बड़े ब...

इंस्टॉलमेंट - भगवतीचरण वर्मा

श्री भगवती चरण वर्मा का जन्म शरिफपुर (शफीपुर ) उन्नाव उत्तर प्रदेश में सन 1903 ईस्वी में हुआ । इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एलएलबी कर कुछ दिन काला गाउन पहन कर वकील का पेशा अपनाया । फक्कड़ स्वभाव का व्यक्तित्व एक दिन समाज के बदलते हुए विंबो में नए आदमी की तलाश करने लगा । साहित्य के माध्यम से उन्होंने प्रभावशाली कहानियां लिखना आरंभ किया । विचार साप्ताहिक कोलकाता से निकाला, मुंबई सिनेमा में गए और अंत में रेडियो में काम किया । वे जीवन भर फक्कड़ पण और मस्ती में रहे । नए-नए मानव चित्रों का अपने लेखनी से आकलन करते रहे हैं ।  उनकी कहानियों में मानव चरित्र का विश्लेषण बड़ी कुशलता से निभाया गया है । वह जीवन के सामाजिक परिवेश में जीवित घटनाओं का मार्मिक तथा व्यंग्यात्मक प्रस्तुतीकरण करते हैं । शीर्षक आकर्षक एवं लुभावने होते हैं । परिस्थितियों के साथ वातावरण का विकास जीवन की विकृतियों और विसंगतियों का मखौल उड़ा कर मानव को आगे बढ़ते रहने के लिए उकसाते रहे हैं । उनकी भाषा सरल तथा मुहावरेदार होती है ।   इंस्टॉलमेंट कहानी में हम वर्मा जी की लेखनी का कमाल और व्यक्तित्व की छाप पाते हैं । यह ...

खण्ड काव्य की परिभाषा एवं विशेषताएँ

खण्ड काव्य प्रबंध काव्य का एक भेद है । प्रबंध काव्य के मुख्य भेद चार बताये जाते हैं 1) महाकाव्य 2) खण्ड काव्य 3) काव्य रूपक 4) विचार काव्य आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने 'एकार्थ काव्य ' नाम से प्रबंध काव्य का भेद स्वीकार किया है । 'खण्ड काव्य'  के  हिस्सा, टुकड़ा, संयुक्त वस्तु का हिस्सा । इस तरह इसके अर्थ लगाए जा सकते हैं । यह काव्य महाकाव्य के बिल्कुल विपरीत होता है । महाकाव्य में व्यापकता और सर्वांगीणता होती है । खण्ड काव्य में जीवन के किसी एक भाग, एक घटना, एक भाव, एक विचार और एक कार्य पर प्रकाश डाला जाता है । खण्ड काव्य का क्षेत्र सीमित होता है । महाकाव्य में विभिन्न कथाओं का, प्रासंगिक कथाओं का वर्णन होता है, जबकि खण्ड काव्य में विस्तार नहीं होता और प्रासंगिक कथा का चित्रण नहीं होता है। महाकाव्य में आठ से अधिक सर्ग संख्या होती है और इसमें  छंदों का भी बंधन है पर खण्ड काव्य में इनकी अनिवार्यता नहीं है । यहाँ केवल एक ही रस की प्रधानता रहती है । यह भी अनिवार्य नहीं होती है । महाकाव्य एवं खण्ड काव्य के स्वरूप में कोई खास अंतर नहीं होता है । मूल अंतर उसके 'एकदेशानुस...

शरणदाता - कहानी का आशय - अज्ञेय

  सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन'अज्ञेय' जी का जन्म सन 1911 इसवी में कसिया गोरखपुर में हुआ था । यह करतारपुर पंजाब के मूल निवासी है । पिता डॉ. हीरानंद शास्त्री पुरातत्व विभाग में उच्च अधिकारी थे । अज्ञेय ने पिता के साथ पूरा भारत भ्रमण किया है ।आपका क्रांतिकारी आंदोलन से संबंध रहा है और समाजवादी विचारधारा अपनाई है । कवि, कथाकार आलोचक, चित्रकार और प्लास्टर की मूर्ति निर्माण करने में सफल शिल्पी है। अपनी विशिष्ट प्रतिभा के अनुकूल विद्रोह और क्रांति आप की विचारधारा के मूल है। नए लेखकों को आपकी प्रांजल भाषा अनूठे सजीव वातावरण और सशक्त पात्रों ने प्रभावित किया है ।  'पगोड़ा वृक्ष, विपथगा', कोटरी के बात,' 'रोज', 'अमर बल्लारी', कड़िया, 'चौधरी की वापस आदि लेखक की अमर कहानियां है।  'शरणदाता मानव के संघर्ष की अनूठी कहानी है । भारतीय लोकतंत्र बनने के बाद पंजाब के हरे भरे प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे हुए । हजारों ग्रहग्रस्त उखड़कर शरणार्थी बन गए । सदियों पुरानी मानवता स्नेह ममता की डोर टूट गई और पैशाचीक वृत्ति में मानव सब आपसी नाते रिश्ते भूल गया, लेकिन एक ममताम...

पत्नी - जैनेन्द्रकुमार

  श्री जैनेंद्र कुमार का जन्म कोडियागंज अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में सन 1905 ईसवी में हुआ था । प्रारंभिक शिक्षा जैन गुरुकुल ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर में हुई । बचपन में ही दिल्ली चले गए और वही स्थाई निवास बन गए ।1921 ईस्वी में असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर गांधीजी की पुकार पर आपने कॉलेज छोड़ दिया और एक सत्याग्रही के रूप में जेल यात्रा की  सन 1921 ईस्वी में विशाल भारत में आपकी 'खेल' कहानी प्रकाशित हुई । तदुपरांत आपकी रचना 'त्याग भूमि' में छपी । साधारण जन के मन के भावों को आपने अपनी रचनाओं में बड़ी कुशलता के साथ गहराई तक छुआ है । प्रेमचंद जहां जन चेतना के प्रतीक थे वहां जैनेंद्र ने एक समांतर शहरालू वातावरण में ऊबे मानव के सुख-दुख को व्यक्त किया है । इनकी रचनाओं के मूल में व्यक्ति उसकी एकांकी समस्या प्रेम का वैयक्तिक मूल्यांकन ही नहीं है, वे विवाह को सामाजिक आधार मान बैठे हैं । शहर के व्यथित मानव को वे अपने दार्शनिक विवेक से मुक्त करना चाहते हैं पर असफल रहे है । गांधीवादी विचारधारा के चिंतक का भार ओढ़कर भी वे अपने ही चिंतन में इतने भटक गए कि अपने प्रवाह में कई लेखकों को बहाकर ...

आकाशदीप - जयशंकर प्रसाद

 श्री जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1890 ईस्वी में काशी के एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार में हुआ था । उनकी शिक्षा अंग्रेजी फारसी और संस्कृत के विद्वानों द्वारा घर पर ही हुई । वे बचपन से ही अध्ययन शील थे और 14 वर्ष की अल्पायु में दुकान पर बहीखाता के रद्दी पन्नों पर कविताएं लिखा करते थे । उनकी प्रतिभा सर्वदा उन्मुख की थी । 47 वर्ष के जीवन काल में कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध, इतिहास, पुरातत्व आदि सभी क्षेत्रों में पूर्ण अधिकार के साथ मौलिक रचनाओं की सृष्टि की ।हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार, कथाकार और छायावाद के उन्नायक रचनाकार माने जाते हैं ।  प्रसाद जी ने भाव प्रधान सुंदर कहानियां लिखी है । जिनमें भारतीय आदर्श के प्रति आस्था मिलती है । उस युग के कई लेखक प्रसाद शैली के अनुगामी हुए ।हिंदुस्तानी भाषा आंदोलन के कारण उनकी प्रभाव में संस्कृतनिष्ठ शैली कुछ समय के लिए लोप सी हो गई थी । नई कहानी के कुछ लेखकों ने उनकी भाषा को अपनाकर हमारी भाषा को प्रभावशाली बनाया है  उनकी कहानी का ढांचा भले ही काल्पनिक आधार पर हो वह मानव के हृदय की यथार्थ भावनाओं और द्वंद को मुखरित करता है । कथोपकथन कवित...

मुझे आजादी चाहिए

आजादी चााहिए? अनादि काल की  गुलामी से आर्यों-अनार्यों से  धार्मिकता से जातिवाद से उच्च नीचता से  काले गोरे से  प्रांतवाद से भाषावाद से नस्लवाद से  निर्गुण-सगुन से अमीर-ग़रीब से आजादी मिलेगी ब्राम्हणवाद का गला घुटने से ।

कल्पना

 तू है बड़ी कमाल स्वर्ग पैदा किया नर्क पैदा किया सगुण, निर्गुण  आत्मा-परमात्मा तेरा-मेरा पाप-पुण्य धर्म-अधर्म जाति-पाँति सही-गलत सच-झूठ जन्म-पुनर्जन्म हिन्दू-मुस्लिम मंदिर-मस्जिद राम-रहीम भगवान -शैतान शैतानों की शैतान तुम हो खुरापाती दिमाग़ षड्यंत्रकारी दिमाग़ स्वार्थान्ध दिमाग़ के निर्माण की उपज हो भोली नहीं तुम तुम्हारे लिए बहुत बुरी दिल से गाली निकलती है नाश करती हो तुम पर क्या दोष तुम्हारा ?  गलत लोगोंने  ग़लत तरीक़े से  उपयोग किया तुम्हारा जिसका षड्यंत्रकारी दिमाग़ है जिसने भरमाया समाज को जहर घोला दिलों में  मनुष्य-मनुष्य के ।

लॉक डाऊन के पहले के दिन

यू ही अपनों का रोज का  रोज सुबह गुड मॉर्निंग नमस्कार कहकर होता प्रारंम्भ सभी अपने ऑफिस पहुँचते रूटीन काम कर  थके हारे शाम को घर पहुँचते फिर घर में बात तक नहीं करते दिन भर मशीन की तरह काम शरीर को ठीक आराम नहीं कई बीमारियों का अड्डा बना दावा दारू करते रहे  स्वास्थ्य सारा गवाते रहे बेहाल सी बनी थी जिंदगी बेरंग था सब कुछ  अब कुछ रंगीन नजारा होगा ।

मित्र

मित्र छुपी नहीं तुमसे मेरी निजी बात नहीं जानते क्या? तुम मुझे अभी तक छुपा है कोई राज? मित्र क्यों? तुम्हारे मन ने चाही बुराई मेरी क्यों? मेरी उन्नति से नफ़रत हुई मन में तुम्हारे क्यों? बुराई आयी  तुमसे नहीं थी ऐसी उम्मीद तुम ऐसे तो नहीं थे? मित्र मित्र से इतनी इच्छा बुरा न चाहो  गर छूने लगे आसमान न बन सके सीढ़ी कोई बात नहीं काँटे तो मत बोना क्यों कि मित्र हो इतनी तो मित्रता निभाना ।

सिद्ध साहित्य की विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

सिद्ध साहित्य प्रस्तावना :- प्रथम सिद्ध कवि और हिंदी के प्रथम कवि सरहप्पा का आविर्भाव काल 817 वि . माना जाता हैं। इसी आधार पर सिद्धों का समय 827 वि . से 1257 ईसवी तक निर्धारित किया गया है। गौतम बुद्ध के मृत्यु के पश्चात बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। हीनयान और महायान । बाद में महायान के भी कई भाग हो गए जिन में वज्रयान और सहजयान मुख्य है। धीरे - धीरे वज्रयान और सहजयान में मंत्र चमत्कार और वाममार्ग समां गया। इस प्रकार कालान्तर में मंत्रो द्वारा सिद्धि का चमत्कार प्रस्तुत करनेवाले साधक सिद्ध कहलाए। सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्त्व का प्रचार करने के लिए जो साहित्य जन भाषा में लिखा हैं वह सिद्ध साहित्य के नाम से प्रचलित हुआ है। राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है। जिनमें सरहप्पा से यह साहित्य आरम्भ होता है। इसलिए इन्हें हिंदी का प्रथम कवि माना जाता है। सिद्ध साहित्य के कवियों की परंपरा सातवी शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक मानी जाती है। बौद्ध धर्म विकृत ...