हिंदी उपन्यास अर्थ, परिभाषा और विकास-क्रम

 

हिंदी उपन्यास का विकास-क्रम  

हिंदी साहित्य के विभिन्न विकासात्मक आधुनिक युग को गद्य के रूप में पहचाना जाता है हिंदी साहित्य के विकास में आधुनिक काल महत्वपूर्ण रहा है यह युग गद्य की प्रतिष्ठा के रूप में पहचाना जाता है इस युग में हिंदी साहित्य के अन्य विधाओं के साथ ही उपन्यास की भी रचना हुई आधुनिक युग में गद्य की नवीन विधाएं निर्माण हुई उनमें उपन्यास विधा पाठकों के दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है । इसके संबंध में विचार करने पर उपन्यास शब्द की उत्पत्ति देखना आवश्यक हो जाता है उपन्यास शब्द की उत्पत्ति  उप+न्यास = उपन्यास इस तरह से हुई है का अर्थ है 'समीप' (नजदीक) और 'न्यास' का अर्थ है 'वस्तु' इसे एकत्रित करने पर इसका अर्थ हुआ समीप  रखी हुई वस्तु अर्थात ऐसी वस्तु जो अपने निकट रखी गई हो अंग्रेजी में इसे नॉवेल शब्द है यह लैटिन भाषा से आया हुआ है उपन्यास के लिए प्रचलित रहा है इतना ही नहीं संस्कृत अंग्रेजी कोश में भी कथा, परीकथा, आख्यान आदि शब्द प्रोयोग हुए हैं । गुजराती में इसे 'नवलकथा' तो मराठी में ‘कादंबरी कहा जाता है

उपन्यास की परिभाषा

पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषा

1) न्यू इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार  "A fictitious prose tale or narrative of considerable length in which characters and actions professing to represent those of real life are portrayed in a plot." अर्थात उपन्यास एक लंबी काल्पनिक कथा या काल्पनिक प्रकथन है जिसके द्वारा एक कार्य कारण श्रंखला में अवध कथावस्तु में वास्तविक जीवन के प्रतिनिधि पात्रों एवं कार्यों का चित्रण हुआ करता है ।"

2)  फ्रांसिस बेकन के अनुसार "उपन्यास कल्पित इतिहास है ।"

3) फील्डिंग के अनुसार "उपन्यास एक मनोरंजनपूर्ण गद्य काव्य है ।"

4) बेकर के अनुसार "उपन्यास वह रचना है जिसमें किसी कल्पित गद्य कथा के द्वारा मानव जीवन की व्याख्या की गई है ।"

 5)क्लाज रीव के अनुसार "उपन्यास समकालीन युग के यथार्थ जीवन और उसकी रीति नीतियों का चित्रण है ।"

6) रिचर्ड बर्टन के अनुसार "उपन्यास समसामयिक समाज और उसके मंगलकारी तत्वों का वह व्यापक अध्ययन है जो प्रेम तत्व की संचालिका शक्ति से अनु प्रेरित रहा करता है क्योंकि प्रेम ही मानव मात्र को परस्पर सामाजिक बंधन में बांधने में समर्थ हुआ करता है ।" इस प्रकार अपने अपने ढंग से पाश्चात्य विद्वानों ने उपन्यास की परिभाषा दी है

भारतीय साहित्यकारों की परिभाषा

 उपन्यास की परिभाषा कई विद्वानों ने की है उनमें प्रमुख परिभाषा का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं सबसे पहले उपन्यास की परिभाषा करते समय उपन्यास के सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद ने अपनी परिभाषा इस प्रकार दी है

1) प्रेमचंद : "मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानता हूँ मानव चरित्र पर प्रकाश डालना, उसके मूल रहस्य पर प्रकाश डालना इसका मूल उद्देश्य है।

2)  डॉ सुरेंद्र : “उपन्यास नए युग की नई अभिव्यक्ति का नया रूप है l उपन्यास जीवन का गद्य है उसमें मानव जीवन का संपूर्ण चित्र यथार्थ के रूप के साथ परिपूर्ण है ।"

3) श्यामसुंदर दास के अनुसार "उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है ।"

4) जैनेंद्र कुमार के अनुसार "पीड़ा में ही परमात्मा बसता हैमेरे उपन्यास आत्म-पीड़न के ही साधन हैं । इसलिए मैंने उन में काम-वृत्ति की प्रधानता रखी है क्योंकि काम की यातनाओं में ही आत्म-पीड़न का तीव्रतम रूप है ।"

5) अज्ञेय के अनुसार "अपने उपन्यासों में मैं स्वयं हूं और उन में किया गया विश्लेषण मेरे अपने ही व्यक्ति विकास का विश्लेषणात्मक सिंहावलोकन है ।"

6) जयशंकर प्रसाद के अनुसार "मुझे कविता और नाटक की अपेक्षा उपन्यास में यथार्थ का अंकन सरल प्रतीत होता है ।"

7) बाबू गुलाब राय के अनुसार "उपन्यास कार्य -कारण श्रंखला में बंधा हुआ वह गद्य कथानक है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक विस्तार तथा पेचीदगी के साथ वास्तविक जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से संबंधित वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं द्वारा मानव जीवन के सत्य का रसात्मक रूप से उद्घाटन किया जाता है ।" इस प्रकार हिंदी के अनेक विद्वानों ने अपने अपने ढंग से उपन्यास की परिभाषा दी है

उपन्यास की विकास यात्रा

 हिंदी उपन्यास साहित्य का आविर्भाव 19वीं शताब्दी में हुआ दूसरे शब्दों में भारतेंदु उत्तरार्ध में हिंदी उपन्यास की शुरुआत हुई हिंदी का सर्व प्रथम मौलिक उपन्यास श्रद्धा राम फुलौरी का 'भाग्यवती' नामक पहला उपन्यास लिखा परंतु इस के संदर्भ में विद्वानों में मतभेद है और वे मानते हैं कि हिंदी का पहला उपन्यास लाला श्रीनिवास दास कृत ‘परीक्षा गुरु’ को मानते हैं l इन दोनों उपन्यासों में समाज सुधार का द्योतक  मिलता है l  इसके बाद ही प्रारंभिक गद्य का रूप उभरता है l  लेकिन कुछ विद्वान इंशाअल्लाह खा कृत रानी केतकी की कहानी को भी हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं l वस्तुतः भारतेंदु युग नवजागरण का युग कहा जाता रहा है l  वैचारिकता के साथ-साथ जन जागरण भी होता रहा है l सामाजिक जन जागरण हुआ हैं और भारतेंदु कालीन सामाजिक उपन्यासकारों ने उस समय निर्माण हुए समस्याओं को अपने रचनाओं में विवेचित किया l अतः इस युग के प्रणेता स्वयं भारतेंदु रहे हैं पूर्ण प्रकाश और चंद्रप्रभा इन्होंने इसमें समाज की कुरीतियों को लेकर नई विचारधारा दी है l  बालकृष्ण भट्ट ने दो उपन्यास लिखे एक नूतन ब्रह्मचारी और दूसरा ’सौ अजान एक सुजान इसके अतिरिक्त जगमोहन सिंह ने श्यामा स्वप्न यह काल्पनिक उपन्यास लिखा है l  इनके बाद देवकीनंदन खत्री को अपने हिंदी साहित्य में रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी का पहला उपन्यास कार माना है l इनके उपन्यास अय्यारी हैं l  उन्होंने अनेक उपन्यास लिखें, उसमें नरेंद्र मोहिनी’, कुसुम कुमारी’, वीरेंद्र वीर’, काजल की कोठरी’, चंद्रकांता’, चंद्रकांता संतति’ आदि  उपन्यास लिखे हैं l इसी युग में डॉ. राधाकृष्ण दास ने भी ’निसाहय हिंदू नामक का उपन्यास लिखा l इसमें दो भिन्न  धर्म को  पवित्र करने के लिए एकता को प्रश्रय दिया गया है l इन  उपन्यासकारों के अतिरिक्त चाचा का खून’, राधा रानी’, विधवा विपत्ति विश्वेश्वर का चंद्रिका अंबिकादत्त व्यास का जया जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी का वसंत मालती और ( शिवनारायण) शिवनाथ शर्मा का गद्दार का खून या रूपवती आदि l इस  प्रकार भारतेंदुकालीन उपन्यास का विकास देख सकते हैं l

निष्कर्ष रूप में भारतेंदु युग को इस प्रकार समझा जा सकता है l

हिंदी का पहला उपन्यास लाला श्रीनिवास दस कृत ‘परीक्षा गुरु’ इसकी रचना सन १८८२ में हुई थी l

भारतेंदु कालीन प्रमुख उपन्यासकार  

लाला श्रीनिवास दस, किशोरीलाल गोस्वामी, बालकृष्ण भट्ट, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्ण दस, देवकीनंदन खत्री गोपालराम गहमरी, लज्जाराम शर्मा आदि l विषयवस्तु की दृष्टि से उपन्यासों को इन वर्गों में रखा जा सकता हैं l  1) सामाजिक 2) तिलिस्मी- एय्यारी 3) जासूसी 4) रोमानी

1) सामाजिक उपन्यासों में श्रद्धाराम फुल्लौरी का ‘भाग्यवती लाला श्रीनिवास दास का 'परीक्षा गुरु’ राधाकृष्ण दास का ‘निस्साहाय हिन्दू उल्लेखनीय हैं l इनके अतिरिक लज्जाराम शर्मा, किशोरीलाल गोस्वामी, बालकृष्ण भट्ट आदि ने भी सामाजिक उपन्यास लिखे हैं l

2) तिलिस्मी-ऐय्यारी उपन्यासों में देवकीनंदन खत्री के उपन्यास उल्लेखनीय हैं l जिनमें ‘चंद्रकाता ‘चंद्रकांता संतति’ प्रमुख हैं l

3)जासूसी उपन्यास

 गोपालराम गहमरी के  ‘अद्भुत लाश’, ‘गुप्तचर’  किशोरीलाल गोस्वामी के ‘ त्रिवेणी बिहारबंधू’ ह्रदयहरिणी’, कुटीरवासिनी’, ‘मालती माधव' आदि l

4) रोमानी उपन्यास -  कुटीरवासिनी’, ‘मालती माधव आदि l

रोमानी उपन्यास लिखनेवालों में ठाकुर जगमोहन प्रसिद्ध है l

द्विवेदी युगीन उपन्यास

 हिंदी उपन्यास की दृष्टि से प्रथम युग भारतेंदु युग के बाद जो युग आता है वह महावीर प्रसाद द्विवेदी युग है l इस काल में भारतेंदु युगीन परिस्थिति के प्रवृत्तियों पर प्रकाशित हुई हैं l यहां कल्पना को अधिक तान देने की अपेक्षा यथार्थ तत्वों को तान दिया है l द्विवेदी युगीन उपन्यास में सामाजिकता आती है l भारतेंदु के युग में जासूसी थी, वह इस युग में भी कुछ हद तक चलती रही l इन दिनों भी लिखें गये l द्विवेदी युग में जासूसी, एय्यारी उपन्यास की रचना के साथ-साथ कुछ पत्र पत्रिकाएं निकाली और विदेशी भाषाओं को अनुदित कर छपवाया l द्विवेदी युग के सर्वप्रथम उपन्यासकार है गोपाल राम गहमरी इन्होंने चतुर चंचल’, भानुमति’, नए बाबू’, आदि उपन्यास भी लिखे और यह बहुत चर्चित भी रहे हैं l इसी के साथ घटना घटा तो खूनी कौन है’, देवरानी जेठानी की कहानी’, अंधे की आंख’, गुमनाम चिट्ठी’, रहस्य विप्लव’, जासूस की बुद्धि आदि इनके उपन्यास हैं l गहमरी के उपन्यासों की यह विशेषता है कि उनमें रोचकता है और तिलस्मियता मिलती है l उनके उपन्यास सुधार पर आदर्शवादी है l गहमरी के उपन्यास सामाजिक है l समाज और परिवार के विभिन्न समस्याओं को अंकित किया गया है l  गहमर की दृष्टि यथार्थवादी रही है l यथार्थवाद के आधार पर सामाजिक समस्या का अपने उपन्यासों में चित्रण किया है l इनकी भाषा ग्रामीण भाषा से मेल खाती है मुहावरेदार है l सर्व सामान्य पाठक को समझने योग्य है l द्विवेदी युगीन काल में उपन्यास लिखने वालों में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने ठेठ हिंदी का ठाट’, ‘अध खिला फूल यह दो उपन्यास  सामाजिक कथावस्तु के आधार पर है l इसमें आदर्शवाद का प्रतिनिधित्व होता है l आदर्श पर और समस्या प्रधान उपन्यास है l इन्होंने  मानव दुर्बलता की ओर संकेत दिया है l इनमें रचना कौशल अपेक्षाकृत परिष्कृत मिलता है l अन्य उपन्यासकारों में मेहता लज्जाराम शर्मा धूमिल कपटी मित्र लोकप्रिय लाल गंगा प्रसाद गुप्त का लक्ष्मी देवी इसके अतिरिक्त देवराज लिखित करील सास गोस्वामी किशोरीलाल का प्रेममयी छपला’, या तिलस्मी शीष महल’ आदि विशेष है l

द्विवेदी युग में भी  1) सामाजिक 2) तिलिस्मी- एय्यारी 3) जासूसी 4) ऐतिहासिक उपन्यास लिखें गये हैं l

1) सामाजिक उपन्यासों में किशोरीलाल गोसवामी का लीलावतीवा आदर्श सतीचपला वा नव्य समाजमाधवी माधव वा मदनमोहिनी अंगूठी का नगीना’ अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने ठेठ हिंदी का ठाट’, ‘अध खिला फूल यह दो उपन्यास  सामाजिक कथावस्तु के आधार पर है l इसमें आदर्शवाद का प्रतिनिधित्व होता है l

2) तिलिस्मी- एय्यारी -  उपन्यासों में देवकीनंदन खत्री के काजर की कोठारी, अनूठी बेगम, गुप्त गोदान, भूतनाथ, हरिकृष्ण जौहर के ‘मयंक मोहिनी, ‘कमल कुमारी, ‘भयानक खून, ‘निराला नकाबपोश’ आदि l दुर्गापसाद खत्री ने अपने पिता देवकीनंदन खत्री के ‘भूतनाथ के शेष भागों की पूर्ति की l

3) जासूसी उपन्यासों में गोपालराम गहमरी इन्होंने चतुर चंचल’, भानुमति’, नए बाबू’, देवरानी जेठानी की कहानी’, अंधे की आंख’, गुमनाम चिट्ठी’, रहस्य विप्लव’, जासूस की बुद्धि आदि इनके उपन्यास हैं l इनके साथ किशोरीलाल गोस्वामी, रामलाल वर्मा ने भी इस दिशा में प्रयोग किये हैं l

4) एतिहासिक उपन्यासों में किशोरीलाल गोस्वामी का तारा वा क्षात्र कुल कमलिनी, सुलताना रजिया बेगम, रंगमहल में हलाल मल्लिका देवी वा बंग सरोजिनी गंगाप्रसाद गुप्त का ‘नूरजहाँ आदि l

इसी युग में प्रेमचंद भी उपन्यास लिख रहे थे अर्थात् प्रेमचंद के उपन्यासों का आरंभ द्विवेदी युग में ही होता है l इस युग में लिखें गये उनके उपन्यासों में प्रेमाश्रम, रूठी रानी सेवासदन, आदि l

प्रेमचंद युगीन उपन्यास

तृतीय चरण विकास काल में प्रेमचंद युग है l प्रेमचंद उपन्यास क्षेत्र में अभिभूत हुए और उसका कायाकल्प बदल गया l प्रेमचंद उपन्यासकार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है l प्रेमचंद युग के उपन्यास में पहली बार आदर्श को छोड़कर यथार्थ को देखा है l यहाँ भारतीय जीवन का सच्चा चित्र देखने को मिलता है l इन के उपन्यासों में भारतीय जीवन की समस्या चित्रित की गई है l  उपन्यास के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकता का समावेश किया गया है l इन दिनों यूरोप में मनोवैज्ञानिक खोज कर रहे थे l यह प्रेमचंद के उपन्यासों में देखि जा सकती हैं l प्रेमचंद के लगभग एक दर्जन उपन्यास है l उनमें बहुचर्चित सेवासदन’, प्रतिज्ञा’, निर्मला’, कायाकल्प’, गबन’, कर्मभूमि’, और गोदानl  प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में मानव मन की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं को चित्रित किया है l उन्होंने विभिन्न सामाजिक समस्याओं को चित्रित किया है  और कुरीतियों पर करारा व्यंग्य किया है l प्रेमचंद ने राजनीतिक और सामाजिक उपन्यास लिखे हैं l

प्रेमचंद युगीन उपन्यासकारों में जयशंकर प्रसाद है l वे  बहुविध प्रतिभा के धनी रहे हैं l इनकी दो रचनाएं हैं कंकाल’’ और तितलीl इन्होंने अपने उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं और विकृतियों का विवेचन किया है l इन उपन्यासों में आदर्श का सूक्ष्म विश्लेषण है l प्रेमचंद युग में उपन्यास लिखने वालों में विशंभरनाथ शर्मा कौशिक का मां भिखारिणी’ इसके बाद पांडे बेचन शर्मा उग्र का चंद हसीनों के खतूत’  और शराबी यह दो उपन्यास है l रूप नारायण पांडे का उपन्यास तारा’ है l भगवती प्रसाद वाजपेई ने लगभग आधा दर्जन उपन्यास लिखे जिनमें त्यागमयी’, ‘पतिता की साधना’, उससे न कहना’, विश्वास का बल आदि चर्चित रचनाएं रही है l इसके बाद सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का अप्सरा और अलका नामक उपन्यास लिखें हैं l सियारामशरण गुप्त ने ‘गोद’, अंतिम आकांक्षा’, नारी यह उपन्यास लिखें हैं l ऐतिहासिक दृष्टि से प्रेमचंद के कारण हिंदी उपन्यास को नया मोड़ मिला और भारतीय जीवन का समग्रता से अंकन अपने उपन्यासों में किया l भारतीय समाज के विभिन्न पहलू का विश्लेषण किया गया l जिस के कारण समाज में नवजागरण निर्माण हुआ l साथ ही मनोविज्ञान का आधार भी प्राप्त हुआ l प्रेमचंद युगीन उपन्यास को भी हम कुछ वर्गों में विभाजित कर सकते हैं l

1) राजनीतिक उपन्यास : प्रेमचंद के राजनीतिक उपन्यास में कर्मभूमि

2) सामाजिक उपन्यासों में गबन, निर्मला, विश्वभरनाथ शर्मा कौशिक का मां भिखारिणी’

3) ऐतिहासिक उपन्यास : प्रसाद का 'तितली', वृन्दावन लाल वर्मा का मृगनयनी चतुरसेन शास्त्री का वैशाली की नगर वधू, रक्त की प्यास, सोमनाथ, अपराजिता आदि उल्लेखनीय हैं l

प्रेमचंदोत्तर युग

प्रेमचंदोत्तर उपन्यास की आधारशिला भी प्रेमचंद युग में ही पड़ती है l इसी युग में जैनेन्द्रकुमार एक नवीनता लेकर आते हैं l प्रेमचंद जहाँ सामाजिकता पर विशेष बल देते हैं वहीँ जैनेन्द्रकुमार व्यक्ति की सत्ता को उभारने का प्रयास करते हैं l इस युग में विषय का विस्तार हुआ है l सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक इसके साथ आंचलिक मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास लिखे गए हैं l उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में मनोविश्लेषण पद्धति अधिक विकसित हुई है l इलाचंद्र जोशी के उपन्यासों में मानसिक चिंताओं का चित्रण मिलता है l भगवती चरण वर्मा ने प्रेम का बीभत्स चित्रण किया है l जैनेंद्रकुमार ने नैतिकता को प्रधानता दी है और अज्ञेय ने उपन्यास के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किए हैं l विषय की विविधता की दृष्टि से इस युग में लिखे गये कुछ प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं l

1) सामाजिक उपन्यास : भगवतीचरण वर्मा का चित्रलेखापतनतीन वर्ष, टेड़े मेडे रास्ते 'भूले बिसरे चित्र, 'सीधी सच्ची बाते, अमृतलाल नगर का 'बूंद और समुद्र' उपेन्द्रनाथ 'अश्क' का गिरती दीवारे', 'गर्म राख,' 'बड़ी-बड़ी ऑंखें', उदयशंकर भट्ट का 'सागर लहरे और मनुष्य, 'डॉ. शेफाली, शेष-अशेष, लोक-परलोक

2) मनोविश्लेशानात्मक उपन्यास : जैनेन्द्रकुमार के परख, 'त्यागपत्र, कल्याणी, सुखदा, विवर्त, 'जयवर्धन, आदि उल्लेखनीय हैं l अज्ञेय के 'शेखर एक जीवनी, नदी दे द्वीप, अपने-अपने अजनबी इलाचंद्र जोशी के 'सन्यासी, पर्दे की रानी, प्रेत और छाया, निर्वासित, जहाज का पंछी, 'ऋतुचक्र इनके अतिरिक्त डॉ. देवराज, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती आदि उल्लेखनीय हैं l

3) साम्यवादी उपन्यास : राहुल साकृत्यायन के सिंह-सेनापति, वोल्गा से गंगा तक, यशपाल का दादा कामरेड, देशद्रोही, पार्टी कामरेड

4) एतिहासिक उपन्यास : चतुरसेन शास्त्री का 'वैशाली की नगर वधू, 'रक्त की प्यास, मंदिर की नर्तकी वृन्दावन लाल वर्मा का गढ़ कुंडार, 'विराट की पद्मिनी, 'झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, और 'मृगनयनी, आदि l हजारीप्रसाद द्विवेदी का 'बानभट्ट की आत्मकथा, चारू चन्द्र लेख, पुनर्नवा, अमृतलाल नगर का शतरंज के मोहरे, 'सुहाग के नुपुर, मानस के हंस यशपाल का दिव्या, अमिता आदि l उदयशंकर भट्ट का 'सागर लहरे और मनुष्य विशेष चर्चित है l

आंचलिक उपन्यास : फणीश्वरनाथ रेणु का मैला अंचल, परतिपरिकथा, आंचलिक उपन्यासकारों में देवेन्द्र अवस्थी, बलभद्र ठाकुर, रामदरश मिश्र, शैलेश मटियानी, देवेंद्र सत्यार्थी, श्रीलाल शुक्ल, नागार्जुन, आदि महत्वपूर्ण लेखक हैं l श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी एक उल्लेखनीय उपन्यास है l कस्बे का जीवन व्यंग्यात्मक शैली में चित्रित किया है ।

स्वातंत्र्योत्तर युगीन हिंदी उपन्यास

 हिंदी उपन्यास साहित्य के इस युग में विविध आयामी नवीन प्रवृत्तियों का विकास हुआ तथा शिल्प की दृष्टि से प्रयोग निश्चित हुए l धार्मिक सामाजिक सांप्रदायिक राजनीतिक समस्या सामने आयी lसे ही अपने लेखनी का विषय बनाया है l  इसी युग में हास्य व्यंग्य की भी परंपरा और आंचलिकता की भी परंपरा निर्माण हुई l आंचलिक उपन्यास लिखने वालों में फणीश्वर नाथ रेणु का 'मैला आंचल', 'परती परिकथा' यह सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है l इस समय हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने बा भट्ट की आत्मकथा तथा चारुचंद्र लेख लिखा l द्विवेदी जी के उपन्यासों की यह विशेषता है कि उन्होंने तत्कालीन सांस्कृतिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की है और नवीन स्वरूप का बोध कराया है l विंध्याचल प्रसाद गुप्त ने चांदी का जूता’, गांव के देवता’, नया जमाना आदि उपन्यास लिखे हैं l इसके बाद प्रमुख उपन्यासकार है अन्नपूर्णा नंद ने महाकवि चर्चा और मेरी हजामत लिखा है l स्वातंत्र्योत्तर काल में यज्ञदत्त शर्मा का अपना स्थान है l  इन्होंने हिंसा अंतिम चरण और विश्वासघात रचनाएं लिखी l मन्मथ नाथ गुप्त ने बहता पानी’, रात अंधेरी’, दिशाहीन और रंगमंच में साम्यवादी विचारधारा का प्रतिबिंब दिखाई देता है l स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासकारों में मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण करने वाले उपेंद्रनाथ अश्क है l  अमृतलाल नागर, फणीश्वर नाथ रेणु, प्रभाकर माचवे, देव राय, अमृत राय, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, शांतिप्रिय द्विवेदी आदि उपन्यासकारों का उल्लेख किया जाता है l संक्षेप में हिंदी उपन्यास का क्षेत्र बड़ा प्रभावशाली है l उपन्यास के विषय वस्तु को केंद्र में रखकर विचार करें तो हिंदी के सामाजिक उपन्यास आंचलिक उपन्यास हमारे सामने आते हैं l

नया उपन्यास :

मोहन राकेश का 'अँधेरे बंद कमरे, मन्नू भंडारी का आप का बंटी, कमलेश्वेर का एक सड़क सत्तावन गलियां, भीष्म सहानी का तमस, कड़ियाँ, शानी का काला जलइसी प्रकार राजेंद्र यादव, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, महेंद्र भल्ल, श्रीकांत वर्मा, नरेश मेहता, कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, महीप सिंह आदि अनेक उपन्यासकारों ने आधुनिक भावबोध से संपन्न उपन्यास लिखे हैं l

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