राम भक्ति काव्य की सामान्य विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

सगुण भक्ति काव्य 
राम भक्ति काव्य की सामान्य विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि परिचय
भक्ति काव्य का जो स्रोत दक्षिण में बहां उसने उत्तर भारत को सराबोर कर दिया । शंकराचार्य के मायावाद के विरोध में भक्ति का समर्थन करने वाले आचार्य में रामानुजाचार्य अपना विशिष्ट महत्व रखते हैं उन्होंने उत्तर में आकर भक्ति का प्रचार के लिए जो पीठ स्थापित किए उनमें काशी प्रमुख था । रामानुजाचार्य ने वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की। उस के प्रधान आचार्य काशी में राघव आनंद थे। रामानंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया रामानंद 14 वी शताब्दी में भक्ति के प्रचार का अद्भुत कार्य किया। इसीलिए यह बात प्रसिद्ध हो गई कि "भक्ति द्राविड़ी उपजे लाए रामानंद ।" भक्ति के विकास के बारमें 'पदम पुराण' के 'भक्ति समागम' खंड से एक श्लोक है "जिसे विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध धार्मिक एवं साहित्यिक परंपराओं को प्रदर्शित करने वाली सारवान रचना के रूप में ग्रहण किया जा सकता है । भक्ति एक स्री के रूप में अपने विकास के विभिन्न चरणों में भारत भर में विचरण करती है l वह कहती है :
"मैं द्रविड़ देश में जन्मी । मैं पाली-बढ़ी कर्नाटक में ।
व्यतीत किया मैंने कुछ समय महाराष्ट्र में,
गुजरात में भी, जहाँ दुबली हुई मैं ।
अंततः आ पहुँची वृंदावन, जहाँ पाया मैंने पूर्ण यौवन और सौंदर्य।
भक्ति अपने लिए कहती है : वह एक है, पर उसे विविध रूपिणी मान लिया गया है । भक्ति साहित्य भी - मध्यकालीन साहित्य की मुख्य धारा के रूप में- भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है, किंतु उसमें आंतरिक एकता है ।"
राम काव्य के प्रमुख कवि
1) गोस्वामी तुलसीदास
 गोस्वामी तुलसीदास राम काव्य परंपरा के सबसे महान कवि वाल्मीकि के बाद राम के संबंध में इतने अधिकार से लिखने वाले तुलसी ही है। उनका काव्य अनेक नूतन उद्भावनावों से पूर्ण है उन्होंने जो कुछ कहा है वह पहले भी कहा जा चुका था पर उन्होंने प्राचीन बातों को राम की विश्रुत कथा को नूतन संदर्भों में देखा है। वाल्मीकि ने जिस नर राम की कथा का दान किया था तुलसी ने उसी नारायण की कथा के रुप में बदल दिया उनसे प्रभाव ग्रहण करके उन के बाद के रामकाव्य कारो ने कोई महत्व की विशेष स्थापना नहीं की । तुलसीदास की जीवनी विवादास्पद है उसका संक्षेप में अवश्यक आत्म परिचय यहां प्रस्तुत है । तुलसीदास ने अपनी जन्म तिथि के बारे में कुछ नहीं कहा विभिन्न विद्वानों ने तुलसीदास की जन्म तिथि सवंत 1554 1583, 1589 और सोलह सौ अपने-अपने मतानुसार मानी है। इनमें से सवंत सोलह सौ को इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि तुलसीदास ने 'रामाज्ञा प्रश्न' 1621 में और 'रामचरितमानस' 1631 में लिखा था इतनी अल्प आयु में ऐसी रचनाएं संभव नहीं है 1556 और 1560 को भी आनेक   आपत्तियों के कारण मानना संभव नहीं है। शिव सिंह सेंगर ने 1583 के लगभग माना है अधिकतर विद्वान सवंत 1589 को तुलसीदास की जन्म तिथि मानते हैं।संत तुलसी साहिब का कथन भी इसी को स्पष्ट करता है। भिन्न-भिन्न आधारों पर विद्वानों ने सोरों और राजापुर को उनके जन्म भूमि सिद्ध करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपने ग्रंथ में कुछ आत्मा उल्लेख किए हैं । जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि वह ब्राह्मण थे। उनकी मां का नाम हुलसी था और स्वयं वह बचपन में राम बोला कहलाते थे। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता पिता ने उन्हें त्याग दिया था। जीवन के अंतिम दिनों में वे बाहू पीड़ा से पीड़ित रहे, जिस से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने 'हनुमान बाहुक' की रचना की थी।
 तुलसीदास के ग्रंथों की संख्या 12 मानी जाती है। रामचंद्र शुक्ल ने भी इन्हीं को प्रमाणित माना है।' तुलसी सतसई', 'रामलला नहछू',  'वैराग्य संदीपनी',' बरवै रामायण',  'रामचरितमानस', 'पार्वती मंगल', 'जानकी की मंगल', 'रामाज्ञा प्रश्न', 'दोहावली', 'कवितावली', 'गीतावली', 'श्रीकृष्ण गीतावली', 'विनय पत्रिका' आदि ग्रंथ है।
2) केशवदास 
केशवदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं 'सूर- सूर तुलसी शशि उडगन केशवदास' जैसी पंक्तियां उनके महत्ता की परिचायक है। यों तो केशव दास के काव्य को रीति काव्य मान कर उस की आलोचना हुई है पर वह वास्तव में तुलसीदास के समय में थे। ऐसी किवदंती है कि इन की तुलसीदास से भेंट हुई थी। केशव दास द्वारा रचित ग्रंथ है- 'विज्ञानगीता' 'रतन बावनी',' जहांगीर जस चंद्रिका, वीरसिंह देव चरित, रसिक प्रिया, कविप्रिया और रामचंद्रिका इनमें से इनके कविप्रिया रसिकप्रिया आदि लक्षण ग्रंथ है वह साहित्य शास्त्र के आचार्य थे।
3) नाभादास
 यह अग्रदास के शिष्य थे। उनका जन्म सन 1650 में हुआ था उन्होंने भक्तमाल की रचना की थी। जिसमें 200 भक्त कवियों का परिचय हैं तथा रामानंद के द्वारा शिष्यों का वृतांत दिया गया है यह 12 शिष्य है अनंतानंद, सर्वानंद, नरहर्यानंद, भवानंद, दीपा, कबीर, सेन, धन्ना, रैदास, पद्मावती और सुरसरा यह राम के उपासक थे।
4) ह्रदय राम 
इनका रचनाकाल सवंत 1632 के लगभग माना जाता है। उन्होंने संस्कृत के हनुमान नाटक के आधार पर हिंदी में 'एक भाषा हनुमान नाटक' लिखा था यह कवित्त और सवैयों में रचित नाटक है राम काव्य की परंपरा में हनुमान का विशेष महत्व है। उन पर लिखे गए ग्रंथ भी उसी परंपरा में आते हैं। 
5)  प्राण चंद चौहान
प्राण चंद चौहान जहांगीर के समय में थे। उनका जन्म सवंत 1666 में माना जाता है। इनकी राम से संबंध रखने वाली एक ही रचना मिलती है। इसमें राम की कथा संवाद रुप में चलती है। इसका नाम 'रामायण महा नाटक' है। काव्य तत्व की दृष्टि से उनकी रचना का कोई बड़ा मूल्य नहीं है पर राम काव्य परंपरा में इनका भी स्थान है।
6) सेनापति 
सेनापति का जन्म सवंत 1646 में हुआ था। यह अनूपशहर, जिला बुलंदशहर के रहने वाले थे। अनूपशहर गंगा के किनारे पर बसा हुआ छोटा कस्बा है। सेनापति ने अपने पितामह का नाम परशुराम, पिता का नाम गंगाधर गुरु का नाम हीरामणि बताया है ।
राम भक्ति काव्य की विशेषताएं
1) राम की भक्ति 
राम भक्ति शाखा की सबसे सामान्य प्रवृत्ति यह है कि इस धारा के कवि राम भक्त हैं। उनके राम संस्कृत के कवि वाल्मीकि के राम की तरह के नर नहीं है। राम भक्ति में नरत्व से देवत्व को पहुंचे हुए भगवान है। राम को विष्णु के अवतार के रूप में माना गया है। राम ही वस्तुत: ब्रह्म है तुलसीदास ने उसी राम का वर्णन किया है जिसको वेदों में नेति- नेति कहते हैं और जिसका अंत शिव को भी मालूम नहीं है- 'निगम नेति शिव अंत न पावा'। भक्तों के ह्रदय में राम की बहुत ऊंची स्थिति है। वे भक्तवत्सल है, गणिका, अजामिल, गज, गीध, शबरी, आदि के अनेक उदाहरण राम भक्तों ने सामने रखे हैं ।जिनको भगवान ने, भक्ति से प्रसन्न हो कर, तारा दिया था।
2) भक्ति का स्वरूप
राम काव्य में वैष्णव धर्म के आदर्शों की पूर्ण प्रतिष्ठा की गई है। राम भक्त कवि राम के शील शक्ति और सौंदर्य पर मुग्ध है यही कारण है कि राम भक्ति में कवि ने अपने औ 'राम के बीच 'सेवक सेव्य भाव' को स्वीकार किया है। तुलसीदास का कहना है 'सेवक सेव्य भाव बिनु भवंतरिय उरगारी' राम भक्त कवियों की भक्ति प्रवृत्ति वैदिक कोठी में आती है जो नवधा भक्ति के अंतर्गत है। इसके लिए जीव भी सत्य है। क्योंकि वह ब्रह्म का अंश है। राम काव्य में ज्ञान कर्म और भक्ति की महत्ता अलग-अलग स्पष्ट करके भी भक्ति को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है राम भक्ति का ही तुलसी संपूर्ण जीवन परिधि का केंद्र बिंदु मानकर चलते हैं। सब प्रकार की सफलता प्राप्त करने के लिए भक्ति ही सुलभ साधन है। जोग जगाये जोग भक्ति भगाएं भोग' ऐसा माना हैं।
3) मर्यादा पूर्ण वर्णन
 राम काव्य में मर्यादा की भावना का प्रसार देखने में आता है। रामकथा की संयोजना ही इस प्रकार हुई है, जिसमें सभी श्रेष्ठ पात्र मर्यादा की भावना से ओत-प्रोत है। तुलसीदास आदि कवियों ने उसी मर्यादा का आख्यान किया है। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए कहा गया है। एक पुत्र की मर्यादा यह है की वह माता पिता की आज्ञा का पालन करें।राज्य अभिषेक के समय पर ही जब राम को वनवास की आज्ञा मिलती है तो वह उसका सहज पालन करते हैं। वह पिता की इच्छा को आज्ञा समझते हैै। माता से आज्ञा लेते हैं, पत्नी और भाई-बंधुओं के प्रति भी समयोचित मर्यादा का पालन करते हैं। इतना ही नहीं एक राजा की हैसियत से सीता को त्याग कर भी लोक-मर्यादा को ही निभाने लगते हैं। राम काव्य में ऐसे बहुत से प्रसंग है जहां राम की मर्यादा देख कर मन मुग्ध हो जाता है । जनक वाटिका में जाते हैं तो ऋषि से आज्ञा लेकर जाते हैं।सीताजी दिखलाई दे जाती है तो लक्ष्मण से बड़े मर्यादित ढंग से कहते हैं -
''तात जनक तनया यह सोई। ।
धनुष जग्य जेहि कारन होइ।।"
4) समन्वय की भावना
 रामभक्ति शाखा की एक प्रवृत्ति है समन्वय आत्मक दृष्टि, जो उनके काव्य में सर्वत्र मिलती है। उनके कार्यों का अध्ययन करने पर उनकी समन्वय भावना भली-भांति प्रकट हो जाती हैं। पहले तो उन्होंने भगवान के निर्गुण निराकार रूप और सगुण साकार रूप का समन्वय किया। उनके राम अनादि अनंत अव्यक्त निर्गुण भी है और शरीर धारण करके वन वन सीता की खोज करते हुए घूमने वाले साकार भी हैं। तुलसीदास ने कहीं तो 'जय सगुन निर्गुण रूप' कह कर और कहीं 'अगुन सगुन दोऊ ब्रह्म सरूपा' कहकर निर्गुण और सगुण ब्रह्म को एक रूप में लिया है।इस तरह दोनों प्रकार की आस्था रखनेवालों को तुलसीदास ने एक साथ बिठा दिया।
5) दास्य भक्ति की प्रधानता 
राम भक्ति काव्य धारा में दास्य भक्ति की प्रधानता है। तुलसीदास ने अपने काव्य में भगवान का दास होने का बार-बार कथन किया है। राम के महत्व और उनके अपने लघु त्व के भावों की अभिव्यंजना में दस्यभक्ति है। तुलसीदास ने 'विनय पत्रिका' में जो भगवान के दरबार में विनाय की पत्रिका प्रस्तुत की है उसमें दास्य भक्ती सबसे अधिक है।
" तू दयालु दीन हो तु दानी हौं भिखारी।
" हो प्रसिद्ध पातकी तू पप-पुंज हरी।
अथवा
"राम सो बड़ो है कौन मो सो कौन छोटो
"राम सों खरों है कौन मो सो कौन खोटो।" 
6) साहित्य का व्यापक क्षेत्र 
राम भक्ति शाखा में कवियों ने जो काव्य निर्मित किए हैं उनका क्षेत्र बहुत व्यापक है। तुलसीदास के समय तक ही प्रचलित सभी वर्णन शैलियाँ तुलसीदास के काव्य में ही आ गई है। इसके अतिरिक्त विचार करें तो राम काव्य में महाकाव्य लिखे गए। रामचरितमानस, रामचंद्रिका, राम स्वयंवर, इसी परंपरा के महाकाव्य है। तुलसीदास ने जानकी मंगल लिखा जो खंडकाव्य कहा जा सकता है। विनय पत्रिका स्त्रोत रचना और स्तुति का ग्रंथ है । 'गीतावली' गीत पद्धति की रचना है। कवितावली में कवित्त सवैया छप्पय आदि चारण काल की पद्धति से निर्मित है ।'रामलला नहछू' लोकगीत शैली की रचना हैं।
7) विभिन्न रसों की अभिव्यक्ति 
राम काव्य कथा प्रसंगों में विचार और वैविध्य है। रामकाव्यकारों ने तरह तरह से उसे नवीन उद्भावनाओं  से युक्त किया है। उसमें प्रासंगिक कथाएं हेतु कथाएं और उपाख्यान भी समाविष्ट कर दिए गए हैं। इस दृष्टि से तुलसीदास का रामचरितमानस और बारहट नरहर दास कृत 'पौरुषेय रामायण' उल्लेखनीय है। राम के जीवन की व्यापकता के वर्णन में इस प्रकार प्रसंगत: अनेक रसों की अभिव्यक्ति हो गई है।जैसे वात्सल्य रास, हास्य रस, शृंगार रास, आदि।
8) भारतीय संस्कृति का सरल आख्यान
 राम काव्य की एक विशेषता यह रही है कि उसमें भारतीय संस्कृति के मूलभूत तथ्यों को किसी न किसी बहाने से व्यक्त किया गया है। कम से कम गोस्वामी तुलसीदास ने तो इस दिशा में कोई कसर नहीं रखी। उन्होंने अपने 'रामचरितमानस' को नानापुरान्निगमागंसम्मत' बतलाया है। अर्थात रामचरितमानस की बातें पुराना वेद और आगम शास्त्रों से प्रभाव लेकर कही गई है। इतना ही नहीं इस से भी आगे जहां कहीं से और अच्छी बातें भारतीय संस्कृति की मिली है उन्हें तुलसीदास ने अपने काव्य में व्यक्त कर दिया है।
9) पात्र तथा चरित्र चित्रण
 राम काव्य के पात्र लोग मर्यादा के आदर्श को सामने रखते हैं उनका चरित्र महान एवं अनुकरणीय है। सूरदास के काव्य राम में नाना रूप में लीला करते हुए भी पूर्ण ब्रह्म है। हर प्रकार के पात्रों का चित्रण करते हुए अंत में सत्य की असत्य पर विजय दिखाई गई है।
10) प्रकृति वर्णन 
राम काव्य के वर्णन के आयाम विस्तृत है। उसकी परिधि में जीवन और जगत के बहुत से दृश्य समाए हुए हैं। इस काव्य में राम की कथा का एक अंश वन की घटना से युक्त होने के कारण उस में प्रकृति वर्णन को पर्याप्त अवसर मिलता है। इनके काव्य में प्रकृति अनेक स्थलों पर उपदेशात्मक रूप में वर्णित हुई है। तुलसीदास कहना चाहते हैं कि अगस्त नक्षत्र के उदित होने पर रास्तों का जल सूख गया, साथ ही उपदेश भी जोड़ देते हैं जैसे लोग संतोष को सोख लेता है।
" उदित अगस्त पंथ जल सोखा।
 जिमि लोभहि सोखहि  संतोषा।"
11) वासना के कालुष्य का अभाव
राम भक्ति शाखा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह कृष्ण भक्ति साहित्य की तरह परवर्ती काल में कालुष्य को प्राप्त नहीं हो सकी। कृष्ण भक्ति शाखा के कवियों की परंपरा में आगे चलकर कृष्ण को भक्ति का आलंबन मात्र न रहने दिया गया। रीतिकाल में आकर तो कृष्ण और राधा का मतलब एक साधारण नायक-नायिका से अधिक कुछ नहीं प्रतीत होता। कवि के मन की जो वासना थी जो दमित श्रृंगारिक प्रवृत्ति थी, वह कृष्ण और राधा का नाम लेकर व्यक्त हुई। कवियों को मानो अपने कालूष्य को व्यक्त करने की एक छूट-सी मिल गई।
 राम का चरित्र इस रुप में चित्रित करने की गुंजाइश नहीं थी। राम के चरित्र की गंभीरता, मर्यादा भावना, आदर्श-स्थापना और लोक रक्षक गुरुता ने एक ऐसी दृढ़ता बनाए रखी जिसको ही लाना आसान काम नहीं था। कुछ इने गिने कवियों ने 'लेखन के बीर' कहकर अश्लील श्रृंगार की तुकबंदियाँ रचीं हैं।
12)  माधुर्य भावना का राम काव्य
हिंदी साहित्य में ऐसी काव्य कृतियां भी मिलती है जिनमें राम के चरित्र को श्रृंगारी भावनाओं से युक्त चित्रित किया गया है। यह प्रवृत्ति तुलसी के समय भी थी पर उनके काव्य की उच्चता के आगे दबी रही। इस प्रकार के कवियों में नाभादास अग्रगण्य है। इनका समय सवंत 1657 के आसपास माना गया है । नाभादास की सबसे प्रसिद्ध कृति भक्तमाल है भक्तमाल में माधुर्य भक्ति के उपासक राम भक्तों के चरित्र चित्रित किए गए हैं। उनमें चार प्रमुख है -मानदास, मुरारी दास, खयाल रतन राठौर, प्रयाग दास। मान दास की उज्ज्वल रस की लीलाओं का गायक कहा गया है। मुरारीदास पैरों में घुँघरू बांधकर कीर्तन करते थे।खैयाल रतन दासधभक्ति के साधक थे। प्रयागदास रासरचते थे और स्वयं भी उसमें भाग लेते थे।
13) भाषा प्रयोग
राम भक्ति शाखा के कवियों के भाषा प्रयोग में विविधता मिलती है। ब्रज भाषा अपने काव्य चित्र विशेषता के कारण प्रसिद्ध हो चुकी थी कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका आदि की रचना ब्रजभाषा में तुलसीदास ने की। उसके साथी रामचरितमानस की भाषा विशुद्ध अवधी है। रामललानहछू में भी अवधी का प्रयोग हुआ है। रामप्रसाद निरंजनी का भाषा प्रयोग वशिष्ठ खड़ी बोली में है। केशवदास की रामचंद्रिका ब्रज भाषा में रची गई है पर उसमें बुंदेलखंडी शब्दों के प्रयोग हुए हैं। तुलसीदास की रचनाओं में भोजपुरी अरबी फारसी आदि के शब्दों का प्रयोग हुआ है।
14) अलंकार
रामभक्त कवि पंडित थे अतः अलंकार शास्त्र के प्रति अवहेलना नहीं करते थे। तुलसीदास ने अलंकारों का प्रयोग बड़ी कुशलता से किया है। काव्य में प्रचलित सभी अलंकारों और अर्थालंकार उनके उदाहरण राम काव्य में से दिए जा सकते हैं। केशव की बात दूसरी है जिनको अलंकारों के प्रयोग का आग्रह बहुत था, अन्यथा अन्य कवियों ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। तुलसीदास की दृष्टि से योग्यता बहुत अधिक है। यूं तो तुलसीदास के काव्य में अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीक, व्यतिरेक, संदेश, भ्रांतिमान, विभावना, विशेषोक्ति, अर्थांतरन्यास, परिकर आदि अनेक अलंकार मिलते हैं । पर उपमा और रूपक अलंकार के प्रयोग में वे बहुत सिद्धहस्त है।
15) छंद प्रयोग
छंद प्रयोग की दृष्टि से राम काव्य में विविद छंदों के प्रयोग मिलते हैं। तुलसीदास ने रामचरित मानस में चोपाई, दोहा, छंद का प्रयोग तो किया ही है साथ ही हरिगीतिका और संस्कृत के वर्ण-वृत्तो का भी प्रयोग किया है। कवित्त, सवैया, छप्पय, सोहर, बर्वे आदि छंद तथा अनेक राग रागनियों के पद भी इन्होंने प्रयोग किए हैं। केशवदास की रामचंद्रिका में तो छंदों की बहुत बड़ी संख्या है और उसमें बहुत विविधता है।
निष्कर्ष:- आचार्य राम चंद्र शुक्ला ने स्वीकार किया है कि गोस्वामी जी के पश्चात भी कई लोगों ने रामायण लिखी परंतु वह गोस्वामी जी की रचनाओं के समान प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सकी संक्षेप में हम कह सकते हैं कि तुलसी काव्य में कला पक्ष और भाव पक्ष आपने अत्यंत रोड रूप में है उनकी रचना स्वांत सुखाय होते हुए भी सर्वांत सुखाय है यद्यपि साध्य उनकी भक्ति थे फिर भी उसने कलागत सभी उपकरण प्रचुर प्रमाण में मिलते हैं भाव भाषा शैली अलंकार रस पद लालित्य कथा वस्तु विन्यास यह सारी वस्तुएं अपने इतने ऊंचे स्थान पर है कि इस विषय में शायद ही हिंदी का कोई अन्य कवि इनकी प्रतिद्वंद्विता कर सके डॉक्टर विजयेंद्र स्नातक के शब्दों में तुलसी हिंदी कविता के काव्य से बड़ा वृक्ष है इस वृक्ष की शाखा प्रशाखा उनके काव्य कौशल की चारुता और रमणीयता चारों ओर बिखरी पड़ी है राम काव्य शिल्प सौंदर्य जन जन तक पहुंचाने में तुलसी का योगदान निसंदेह महत्वपूर्ण है राम काव्य के महान संदेश ने जन जीवन को आलोकित किया है।

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