प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ / प्रवृतियाँ
प्रयोगवद (1943 से 1950) प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ प्रस्तावना बीसवी शताब्दी के उत्थान-काल में मानव-जीवन के मूल्यों में विशेष परिवर्तन दिखाई देता है। युद्ध की विभीषिकाओं से त्रस्त समाज था। उसकी मान्यताएं उस मानव की मान्यताओं से भिन्न हुई जिसने ऐसे त्रास को नहीं देखा, जिसने ऐसी वैज्ञानिकता को नहीं देखा, जिसने ऐसे नग्न यथार्थ को नही देखा । सामाजिक, राजनैतिक परिस्थिति के उहापोह में साहित्यकार भी बदला । उसके दृष्टिकोण में नयापन आया। वैसे तो कोई कविता त भी वास्तविक कविता कहलाती है ज ब वह नई हो, पर आजकल नई कविता का विशेषण एक खास सामाजिक परिवेश के मानव की खास तरह की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करनेवाला स्वर है। आरम्भ में अज्ञेय ने 'तारसप्तक' के सात कवियों को नये कवियों के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयत्न किया और उसे प्रयोगवाद की संज्ञा दी। अपने को ' रा हो का अन्वेषी' कहा और नए प्रयोग करने पर प्रयत्नशील हआ। कुछ विद्वान प्रयोगवाद और नयी कविता को एक ही मानते हैं। और कुछ लोग अति आधुनिक कविता को नयी कविता का नाम देते हैं। इस सम्बन्ध में एक बात ध्यान देने योग्...