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सोचा न था

सोचा न था हश्र मेरा ऐसा होगा जिंदगी में बिन तुम्हारे जीना होगा चाह न था सनम दूं तुझे पल भर भी गम लगता है गम को गले लगाना होगा जिंदगी तुम्हारे बिन कटती है ऐसी जीवित हूं पर लाश हूँ जैसी तेरे बिन, उत्साह, उमंग और ये हाँसी बिखर गई है कहीं,  इन हवाओं में कहीं जिंदगी में खुशी, प्यार मिले तुम्हें मेरे यार जनम-जनम इंतजार करते रहेंगे चांद के पार तुम्हारा इंतजार, मेरे यार ।

मिलावट

रेशन दुकान में सरकारी, ग़ैरसरकारी कार्यालय में बाजारों में होटलों में कोर्ट कचहरीयों में प्यार और रिश्तो में इंसान की नजर में दूध की गागर में तेल और घी में दाल, चावल, और नमक में फल-सब्जी खान-पान में मां और बेटे के रिश्ते में पति और पत्नी के प्यार में प्रेमी प्रेमिका के इकरार में हर एक के संबंधों में गली मोहल्ले में हर कोई मिलावट करता है सरकारी विकास पैदा नहीं होता जिससे सड़कें गल जाती है पुल गिर जाते है रिश्ते, नाले ऊंची इमारतें गिर जाती हैं सरकारी वादों में मिलावटी ही मिलावट है

शहरनामा

ऊँची बहुमंजिला इमारतें बड़ी-बड़ी सड़कें ट्रैफिक जाम रास्ता नहीं ना आगे न पीछे चलना मुश्किल, रुकना मना है रुकोगे तो धक्का खाओगे इधर-उधर ताकना सुंदरियों को देखना मना है । क्रम से हटकर कतार से छूटकर बच नहीं पाओगे शहर के घर दरवाजा बंद जिंदगी मिलते नहीं पड़ोसी सालोंसाल पड़ोसी है भी पता नहीं जीवित है या मर गया है मरने के बाद होता है पता बदबू से सड़ जाती है लाश महीनों अकेले की  तब तक आयी पुलिस दागी सवालों पर सवाल मौत इंसान की जानवर से भी बदतर होती है शहर में फिर भी हैरानी की बात नहीं पढ़े लिखे हैं हम, प्रगतिशील है पड़ोसी धर्म निभाने में फैल है हम

अकेला

घर बाहर गली मोहल्ला चौराहें पर नगर के रेस्तरां, कॉफी हाउस, भीड़ में रिश्ते नातों के बीच में जाने पहचाने के साथ पास पड़ोसियों के होकर भी अपनों के बीच रहकर भी लगता है नहीं लगता जी कभी-कभी क्यों अकेलापन मौजूदगी शरीर की ही भटकता है मन रिश्ता, हंसी और बातों भी मर्यादित इनमें भी दिखता है स्वार्थ ह्रदय, दिल या मन की चाहत कहां है  लगता है यह किस चिड़िया का नाम है इन शब्दों के मतलब क्या है? इन पर सब हंसते हैं बदलते हैं शरीर भी कपड़े की तरह इन रिश्तों के बीच पाता हूं खुद को अपरिचित संबंधहीन दुनिया से कटा हुआ बेबस जीवित लाश बेरहम मशीनों के बीच पाता हूं खुद को अकेला

एहसास

 जिम्मेदारियों का एहसास तुझे है न मुझे है मैं अपनी मदहोशी में नहीं खबर दुनिया की स्वार्थांदो की जिन्होंने बढ़ाई है लाचारी बेकारी, भूखमरी भ्रष्टाचारी  यही है व्यभिचारी कहते हैं खुद को ब्रह्मचारी तिलक और चेंडी धारी चाहे जैसे रहो जिओ बलबूते पर अपने ठगों नहीं निर्बल दीन दलितों को करो कुछ कीमत उस जान की भी जो पड़ी है फुटपाथ पर इंसानियत जरूरी है जान सबकी जान होते हैं बिल्कुल एक समान होती है एहसास तुझे और मुझे भी हो

नेता और जनता

नेता और जनता इनके सोच कि मैं दाद देता हूं यह जो आजकल सोचते हैं और बोलते हैं केवल बोलते ही नहीं, भाषण उगलते हैं वह सब हवा में फेंकते हैं वह बातें हवा में उड़ जाती हैं वही सब वायरस की तरह प्रसार माध्यमों के जरिए समाज में फैलती हैं जिनके वादे झूठे, इरादे झूठे ऐसे नेता ही सत्ता, धन, मान पाते हैं हर कोई अपना-अपना जाल बुनता है जो जितना झूठ बोलने में माहिर वह चुना जाता है । चुनाव में नेता चुनकर आने तक करते हैं खुशामद जनता की जनता वह है जो शिक्षित हुई पर संस्कार नहीं छूटे आज भी पुराने बंधनों में बंधी धर्म और जाति के सभी गरीब, मजदूर, किसान चपेट आते हैं इनकी सोच रोटी, कपड़ा, मकान तक जो पूरी नहीं हुई आज तक पाखंडी नेता उनके घोषणा पत्र, भाषण उगलते दोगले मुख पर विश्वास भरकर मन में आशा करते हैं मतदान कर खुद को धोखे में रखते हैं सोचते हैं कि अब भ्रष्टाचार मिटेगा, गरीबी हटेगी, हाथ को काम रात को थोड़ा आराम मिलेगा  योजनाएं बनेगी देश में सुख शांति आएगी अन्याय, अत्याचार नहीं होगा देखते हैं सपने हर पाँच साल बाद और ठग लेते हैं नेता जनता को

फ़रियाद

जकड़ों जुल्फों को छू लेने दो घटाओं को बनो न कातिल भरने दो एषणाओं को मुस्कुरा दो खिल-खुलकर झड़ने दो फूलों को भीतर की कामना कहने दो अधरों को देखो न ऐसे कि  निशाना बन जाए चिलमन भी ऐसी कि दीवाना बन जाए रूठो न ऐसे कि मनाया ना जाए मिलो भी ऐसे कि भुलाया न जाए !!