नेता और जनता

नेता और जनता
इनके सोच कि मैं दाद देता हूं
यह जो आजकल सोचते हैं और बोलते हैं
केवल बोलते ही नहीं, भाषण उगलते हैं
वह सब हवा में फेंकते हैं
वह बातें हवा में उड़ जाती हैं
वही सब वायरस की तरह
प्रसार माध्यमों के जरिए समाज में फैलती हैं
जिनके वादे झूठे, इरादे झूठे
ऐसे नेता ही सत्ता, धन, मान पाते हैं
हर कोई अपना-अपना जाल बुनता है
जो जितना झूठ बोलने में माहिर
वह चुना जाता है ।
चुनाव में नेता चुनकर आने तक
करते हैं खुशामद जनता की
जनता वह है जो शिक्षित हुई पर संस्कार नहीं छूटे
आज भी पुराने बंधनों में बंधी धर्म और जाति के
सभी गरीब, मजदूर, किसान चपेट आते हैं
इनकी सोच रोटी, कपड़ा, मकान तक
जो पूरी नहीं हुई आज तक
पाखंडी नेता उनके घोषणा पत्र,
भाषण उगलते दोगले मुख पर
विश्वास भरकर मन में आशा करते हैं
मतदान कर खुद को धोखे में रखते हैं
सोचते हैं कि अब भ्रष्टाचार मिटेगा,
गरीबी हटेगी, हाथ को काम रात को थोड़ा आराम मिलेगा
 योजनाएं बनेगी देश में सुख शांति आएगी
अन्याय, अत्याचार नहीं होगा देखते हैं सपने
हर पाँच साल बाद और ठग लेते हैं नेता जनता को

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