अकेला

घर बाहर
गली मोहल्ला चौराहें पर
नगर के रेस्तरां, कॉफी हाउस, भीड़ में
रिश्ते नातों के बीच में
जाने पहचाने के साथ
पास पड़ोसियों के होकर भी
अपनों के बीच रहकर भी लगता है
नहीं लगता जी कभी-कभी क्यों अकेलापन
मौजूदगी शरीर की ही भटकता है मन
रिश्ता, हंसी और बातों भी मर्यादित
इनमें भी दिखता है स्वार्थ
ह्रदय, दिल या मन की चाहत कहां है
 लगता है यह किस चिड़िया का नाम है
इन शब्दों के मतलब क्या है? इन पर सब हंसते हैं
बदलते हैं शरीर भी कपड़े की तरह
इन रिश्तों के बीच पाता हूं खुद को अपरिचित
संबंधहीन दुनिया से कटा हुआ बेबस जीवित लाश
बेरहम मशीनों के बीच पाता हूं खुद को अकेला

Comments

Popular posts from this blog

रस का अर्थ परिभाषा एवं स्वरूप

संत काव्य के प्रमुख कवियों का परिचय एवं विशेषताएँ

प्रगतिवादी कविता की विशेषताएँ ( प्रगतिवाद 1936 -38 से 1943)