Posts

Showing posts from May, 2020

सब कुछ तुम्हारा

खेती  फसल  जमीन  गाँव भी स्कूल  कॉलेज  कंपनी  बैंक भी सांसद  मंत्री  संतरी  प्रधानमंत्री कार्यालय अफसर  नियम कानून भी वकील जज कोर्ट  मीडिया भी युगों से  सत्ता पर हैं अनपढ़  मंदिर में है  दो अक्षर पढ़ा सत्ता में  यही है  चरित्र तुम्हारा सब तुम्हारा है तुम्ही बताओं हमारा क्या है? राज में तुम्हारे।

नाम का दम

इतना ज्ञान इतनी ताकत इतनी शक्ति इतना महान इतना गर्व इतना जोश इतना प्यारा इतना सहारा इतना प्यार इतना मान इतना सम्मान है जयभीम इतनी नफरत इतना गुस्सा इतना खौफ इतनी आग भीम नाम से तिलमिलाता तड़फड़ाता  रहेगा सवर्ण  

भारत में कोरोना

कोरोना के चपेट में चायना और इटली आया ईरान और इराक आया स्पेन और जापान आया बलाढ्य अमरीका आया सारा विश्व चपेट में आया  उस में भारत भी आया राजा और रंक भी आया बताओं माँ-बाप सरकार किस देश के मजदूर घर हजारों मील चलके गया । लॉक डाऊन के समय में कौन-से देश के मनुष्य कई दिन-रात भूखें सोये । आपके आदेश का पालन देश में सभी मनुष्य ने किया आपने घंटी बजाने का कहा हमने बजाई घंटी, थाली भी आपने दिये जलाने को कहा हमने दिये, टार्च भी जलाये आपने कहा वो सब किया फिर भी माई-बाप सरकार कोरोना भारत से क्यों न गया । हजोरों मजदुर रोड पर क्यों हैं? हजोरों लोग भूखे क्यों हैं? कोरोना को भारत किसने लाया? सरकार से जवाब कुछ न आया ।

आत्मनिर्भरता का पाठ

भारत की भूमि पर सदियों से निर्भर  कौन हैं, किस पर? जाँच लो मियाँ सबक किसको दिया? जिसने तुम्हारी  टट्टी साफ की मैला ढोया घर आंगन की जमीन बुहारी बैल जोते,  फसल उगाई कपड़े धोये,  जूते बनवाये. तुम्हारी डोली और अर्थी को कंधा भी हमने दिया । आज भी तुम्हारे आलीशान महल प्रशस्त बँगले, फ्लैट सड़के शहर आखिर बसाता कौन हैं? सोचा है कभी? हम लोग भूखे रहे पर मांगी नहीं भीख नहीं खाया  बिना मेहनत का तोड़ी नहीं  मुफ्त की रोटी मंदिर में बैठकर झूठे भगवान का  दिखाकर डर  झूठे ग्रंथों का वास्ता देकर नहीं उलझाया कभी रस्मों रिवाजों में रोटी के लिए नहीं रचे षड्यंत्र हमने नहीं बनाये वर्ण और जाति नहीं रचे झूठे ग्रंथ यह उपज है तुम्हारी गंदी सोच की  किसे पढ़ा रहे हो तुम पाठ आत्मनिर्भरता का

कुछ फर्क हुआ

क्या लगता है इतने दिनों में तालाबंदी से फर्क पड़ा कुछ मुझ पर तो नहीं तुझ पर भी नहीं क्यों कि तुम और मैं छुटियाँ मना रहे थे पकोड़े खा रहे थे रोज सुबह उठकर चाय की चुस्की के साथ सुन रहे थे न्यूज़  कोरोना की । अच्छा क्या तुम मानवीय या बहुत संवेदनशील हुये? मुझमें कहाँ इतनी जागी कहाँ बदलता है मनुष्य तुम्हारे और मेरे जैसा बस्स थोड़ा डर लगता है ऐसे में मृत्यु का और  कोशिश करते हैं  संवेदनशील होने की । फ़र्क उस पर पडा होगा  जिसे पानी नहीं मिला रोटी नहीं मिली जो भूख से तड़पा होगा जो हजोरों मिल पैदल चलकर गया होगा तपती गर्मी की धूप में चलने से छाले पड़े होंगे पैरों में जो बेबस, बेसहारा  असहाय , दुर्बल है । जिनकी आवाज नहीं पहुँचती कानों तक सरकार के वही सरकार  जिनके सामने चुनाव में दो टुकड़े डालकर  चुनकर आती है । जब तुम बोलते हो तो गूंगी और बाहरी  हो जाती है सरकार । नहीं होता असर तुम्हारे बोलने का । सरकार दुम हिलाती है घुटनों के बल रेंगती है अमीरों के सामने । फर्क पड़ता है उसपर जिसने यह हालत देखें उन्हें सोचना होगा कि इस हालात की वजह  कोरोना नहीं ।

असली नकली

राम भी नकली सीता भी नकली  कृष्ण भी नकली राधा भी नकली ब्रम्हा विष्णु महेश की  उत्पति भी नकली दुर्गा भी नकली सभी देवी देवता भी नकली वेद भी नकली उपनिषद भी नकली रामायण भी नकली महाभारत भी नकली भगवान भी नकली आशीर्वाद भी नकली इनके नाम पर लूटा माल मात्र असली भारत भूमि बुद्ध की नष्ट कर बुद्ध को रोजी रोटी के लिए कर्मकांड किया आर्योंने नहीं मिटेंगे बुद्ध भारत भूमि से विश्व भर फैलेंगे नहीं मिटेंगे विदेशी  आर्यों के मिटाने से।

उलझन

सृष्टि बदलती है दिन प्रतिदिन बारहमास रोज नये रंग रूप धरती है कही छांव तो कही धूप यू सूरज का उगना चाँद, सितारों का चमकना हवा का बहना समंदर की गहराई कठीन है समझना सृष्टि के रहस्य को मन और सृष्टि एक है? मुश्किल है समझना अंदाज नहीं गहराई का समंदर और मन की बेपनाह तमन्नाएँ हैं लहरों से उठती उमंगे हैं कसमसाहट भरी है उतरना चाहा मन में जानना चाहा मनको समंदर सी गहरी आंखों में डूबकर उतरना था दिल में मन ने कुछ कहा दिमाग ने कुछ कहा समझ न सका  रहस्यमय मन को मन को समझना  उलझनों में उलझना है आख़िर तुम और सृष्टि समझ से परे हो

जवानी

मुझसे कहती है वह छोड़ जाऊँगी तुझे जी भर के मिल ले आज मुझसे  रहूँगी न कल तेरे साथ आज का पल मत कर बर्बाद कल न होगी आज की बात आज कल करते बैठना मत हाथ मलते कर दूंगी कमजोर दुर्बल, निर्बल दिल, दिमाग, शरीर दिन प्रति दिन कर ले लाख हिफाजत न रहूँगी तेरे साथ मत पछता जाने पर आज थाम ले मेरा हाथ बस्स! आज हूँ तेरे साथ कल किसी और कि रहूँगी हमेशा समय के साथ रहती हूं अक्सर कहती है मुझसे मेरी जवानी ।

खुशी मिलती हो

दोस्तों से दोस्ती बढ़ाकर दोस्तों के करीब आकर करना चाहते हो विरोध  खुशी मिलती हो शायद डालकर डोरे मित्र पर  भर कर कान मित्र के   बढ़ाकर दोस्ती मित्र से चाहते नजदीक जाना  चाहते हो अपने करीब चाहते हो दूर हो मित्र  भड़काकर विरोध में  मन होता हो तृप्त...शायद देते रहे तुम्हारा साथ  की नाकाम कोशिश  करने की दूर दोस्तों से  ठहराते रहे गलत  इस तरह जलना  अपमान करते रहना   कभी न था गवारा मित्र के ही सामने  करना चाहते हो  विरोध में खड़े मुझसे मेरे मित्र  खुशी मिलती हो...शायद  ।

सुनो ब्राम्हण

सुनो ब्राम्हण कैसा लग रहा है अब अछूत बनकर छूता नहीं अब कोई पैर भी तुम्हारे ।  कहता नहीं होगा पैर लागो पंडित जी । कैसा लग रहा है ? भगवान के लिए भी अब तुम अछूत हो भगवान से भी बड़ा बताया था तुमने  सब की कुंडली बनाते थे न तुम तुम्हारी कुंडली नहीं थी  क्या पता? तुम भी एक शुद्र हो तुम्हारी और मेरी जन्म क्रिया एक है । मुख से पैदा नहीं हुये झूठ थे तुम जो अब तक  पढ़ाते रहे पाठ गलत जन्म क्रिया का  और बनाया हमें शुद्र जन्म के आधार पर झूठ को फैलाते रहे  हजारों वर्षों से बनाकर अछूत  कहकर शुद्र  आधार पर जन्म के । वंचित रखा था रोटी, पानी, घर से हमारे स्पर्श से  होते थे तुम अपवित्र अब तुम्हारा स्पर्श भी कोई नहीं करेगा । तुम भी अछूत ही हो । तुम्हें छू ने से बीमारी फैलेगी पता चला तुम्हें भगवान नहीं हो तुम भी अब हमारी तरह  अछूत, शुद्र बनकर कैसा लग रहा है ? अछूत की पीड़ा छूने भर की भी नहीं कुछ अधिकार भी पढ़ना न लिखना घर न द्वार थे खाना न पीना था कैसे जिये होंगे  पूर्वज हमारे अब करो अनुभव अछूत होने का और बोलो कैसा लग रहा है?

प्राचार्य

शायद आप जानते हो प्राचार्य नामक पद को उस व्यक्ति के कार्य को जानते हो शायद आप  नाम पद के जो भी हो वहाँ बैठा कौन हैं? आपको मतलब उससे होगा मुझे उसके काम से होगा विविध धर्मिता देश में  विविध जातियों में फैले  लोगों के शायद मतलब अनेक होंगे । प्राचार्य इस जीव की जान संस्था चालक के हाथ होती है संस्था चालक वही है जो गाँव में जमींदार थे ठाकुर, ठेकेदार थे ये लोग गाँव में कौन थे? शायद आप जानते हो कठीन नहीं प्राचार्य को जानना भी ये वहीं जीव है अधिकतर  जो मंदिरों में पूजा-पाठ करता है सभी धार्मिक कर्मकांड करता है तुम्हारे जन्म से लेकर मृत्यु तक शिक्षा से लेकर अवकाश प्राप्ति तक तुम्हारे जीवन में सर्वदा मौजूद है खोकला कर रहा है घुन की तरह योगों-युगों से तुम्हारे बच्चों को तुम्हारे बच्चों के भविष्य को खड़ा है तुम्हारे बच्चों के सामने द्रोणाचार्य के अनेक रूपों में छीन रहा है हक रूप बदलकर आधुनिकता में अग्रेस यही है मैनेजर, सचिव, न्यायाधीश,  मंत्री, संतरी, सांसद  सब यही लोग तो हैं  शायद आप जानते हो । शिक्षक यह वह जीव है  जिसने कठिन पढ़ाई की आपने को काबिल बनाया काबिल ह...

मजदूरों भागों मत

Image
मजदूरों भागों मत कहाँ भाग रहे हो कहाँ जा रहे हो जा रहे हो जहाँ तुम जाकर वहाँ भी  क्या पाओगे ? वहाँ नहीं था कुछ नहीं था आसरा नहीं था सहारा  जीने का । खेत तुम्हारे नहीं खेतों में मजदूरी नहीं जमीनदार खून चूसेगा गाँव में तुम फिर से गुलाम बन जाओगे जाति व्यवस्था के  गाँव भी तुम्हारे नहीं । गाँव में आज भी  जुल्म करने वाले जमींदार बहु-बेटी की इज्जत  लूटने वाले ठेकेदार,  गिरवी रखवाने वाले साहूकार  धर्म के आड़ में कांड करनेवाले पाखंडी, पुरोहित आज भी है। मजदूरों जरा सोचो क्यों छोडा था गाँव? याद करो वो दिन माँ-बाप की निर्बलता बिन ब्याही बहन थी दुर्बल परिवार था । नहीं ले सके शिक्षा सरकारी स्कूल में भी रोजी-रोटी के वांदे थे । नहीं था किसी का सहारा । यही तो कारण था न ! तुम्हारे गाँव छोड़ने का । और शहर में आकर दो जून की रोटी पाने का । अब क्यों भाग रहे हो ? क्या गाँव में मिलेगा? जो तुम जा रहे हो गाँव इस भीषण परिस्थिति में । लड़ना होगा तुम्हें संघर्ष करना होगा भूख और कोरोना से सरकार और अमीरों से जिसने छीना हैं  तुम्हारे मुँह का निवाला । लड़ना होगा तुम्हें च...

तुम

मेरे निंद के  मेरे जाग ने के  मेरे यादों के  झरों के में तुम हो मेरे लबों की  मिठास में तुम ही हो मेरे हमनवा प्यासा ये मन  प्यासा ये दिल प्यासी ये रात रहना मेरे साथ कण-कण में  अनु-अनु में रेणू-रेणू में नस-नस में तुम हो निभाना साथ सजना ये तुमको है समझाना चाहे रहो दूर या पास मेरे दिल में ही रहना ।

तालाबंदी के दिन सुनहरे

जो लोग नौकरी पेशा है जिन का बड़ा व्यापार है जो लोग बिल्डर है जो लोग सधन है  जिनकी कंपनियाँ है  जो सेठ साहूकार है । वे सभी लोग...। जो अपने गाँव मे सुरक्षित है । जो अपने परिवार के साथ है । जिसे दो जून की रोटी नसीब है । जिसे आवश्यक सुविधा प्राप्त है । जिसे कोई बड़ी समस्या नहीं है । ऐसे सभी लोग । जिन पत्नियों को शिकायत थी उनके पति समय नहीं देते जिन बच्चों को शिकायत थी पापा बिज़ी रहते है काम में  समय नहीं बच्चों के साथ  समय बिताने को । पहली बार ममी पापा  बच्चों के साथ है । पहली बार पत्नियों की  शिकायत पूरी हुई है । ऐसे सभी लोग । वर्ष दो हजार बीस तारीख सतरह, माह मार्च  हो गई छुट्टियाँ स्कूल कॉलेज को मुक्त हो गये बच्चे परीक्षा से । कुछ हद तक तनाव मुक्त हो गये शिक्षक, प्राध्यापक और अन्य सभी, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नौकर । धीरे-धीरे सभी कार्यालयीन कर्मचारी । यहाँ तक कि छोटे-मोटे व्यापारी,  किसान, मजदूर, सभी तरह के व्यवसायी । तालाबंदी के चलते घर रहकर काम किया । सरकार के आदेश का पालन किया । घर रहकर आनंद सभी लोगों ने भोगा । ये सभी लोग ...। सृष्टि ने भी मुक्त द...