सुनो ब्राम्हण

सुनो ब्राम्हण
कैसा लग रहा है
अब अछूत बनकर
छूता नहीं अब कोई
पैर भी तुम्हारे । 
कहता नहीं होगा
पैर लागो पंडित जी ।
कैसा लग रहा है ?

भगवान के लिए भी
अब तुम अछूत हो
भगवान से भी बड़ा
बताया था तुमने 
सब की कुंडली
बनाते थे न तुम
तुम्हारी कुंडली
नहीं थी  क्या पता?

तुम भी एक शुद्र हो
तुम्हारी और मेरी
जन्म क्रिया एक है ।
मुख से पैदा नहीं हुये
झूठ थे तुम
जो अब तक 
पढ़ाते रहे पाठ गलत
जन्म क्रिया का 
और
बनाया हमें शुद्र
जन्म के आधार पर
झूठ को फैलाते रहे 
हजारों वर्षों से
बनाकर अछूत 
कहकर शुद्र 
आधार पर जन्म के ।

वंचित रखा था
रोटी, पानी, घर से
हमारे स्पर्श से 
होते थे तुम अपवित्र
अब तुम्हारा स्पर्श भी
कोई नहीं करेगा ।
तुम भी अछूत ही हो ।

तुम्हें छू ने से बीमारी फैलेगी
पता चला तुम्हें
भगवान नहीं हो तुम भी
अब हमारी तरह 
अछूत, शुद्र बनकर
कैसा लग रहा है ?

अछूत की पीड़ा
छूने भर की भी नहीं
कुछ अधिकार भी
पढ़ना न लिखना
घर न द्वार थे
खाना न पीना था
कैसे जिये होंगे 
पूर्वज हमारे
अब करो अनुभव
अछूत होने का
और बोलो
कैसा लग रहा है?




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