उलझन
सृष्टि बदलती है
दिन प्रतिदिन
बारहमास
रोज नये रंग रूप
धरती है
कही छांव तो कही धूप
यू सूरज का उगना
चाँद, सितारों का चमकना
हवा का बहना
समंदर की गहराई
कठीन है समझना
सृष्टि के रहस्य को
मन और सृष्टि एक है?
मुश्किल है समझना
अंदाज नहीं गहराई का
समंदर और मन की
बेपनाह तमन्नाएँ हैं
लहरों से उठती उमंगे हैं
कसमसाहट भरी है
उतरना चाहा मन में
जानना चाहा मनको
समंदर सी गहरी
आंखों में डूबकर
उतरना था दिल में
मन ने कुछ कहा
दिमाग ने कुछ कहा
समझ न सका
रहस्यमय मन को
मन को समझना
उलझनों में उलझना है
आख़िर तुम और सृष्टि
समझ से परे हो
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