मजदूरों भागों मत
कहाँ भाग रहे हो
कहाँ जा रहे हो
जा रहे हो जहाँ तुम
जाकर वहाँ भी
क्या पाओगे ?
वहाँ नहीं था कुछ
नहीं था आसरा
नहीं था सहारा
जीने का ।
खेत तुम्हारे नहीं
खेतों में मजदूरी नहीं
जमीनदार खून चूसेगा
गाँव में तुम फिर से
गुलाम बन जाओगे
जाति व्यवस्था के
गाँव भी तुम्हारे नहीं ।
गाँव में आज भी
जुल्म करने वाले जमींदार
बहु-बेटी की इज्जत
लूटने वाले ठेकेदार,
गिरवी रखवाने वाले साहूकार
धर्म के आड़ में कांड करनेवाले
पाखंडी, पुरोहित आज भी है।
मजदूरों जरा सोचो
क्यों छोडा था गाँव?
याद करो वो दिन
माँ-बाप की निर्बलता
बिन ब्याही बहन थी
दुर्बल परिवार था ।
नहीं ले सके शिक्षा
सरकारी स्कूल में भी
रोजी-रोटी के वांदे थे ।
नहीं था किसी का सहारा ।
यही तो कारण था न !
तुम्हारे गाँव छोड़ने का ।
और शहर में आकर
दो जून की रोटी पाने का ।
अब क्यों भाग रहे हो ?
क्या गाँव में मिलेगा?
जो तुम जा रहे हो गाँव
इस भीषण परिस्थिति में ।
लड़ना होगा तुम्हें
संघर्ष करना होगा
भूख और कोरोना से
सरकार और अमीरों से
जिसने छीना हैं
तुम्हारे मुँह का निवाला ।
लड़ना होगा तुम्हें
चाहे यहाँ रहकर
चाहे वहाँ रहकर ।
जान जोखिम में न डालो
इसका जिम्मेदार कौन हैं?
उसे पूछो तुम सवाल ।
उसकी कुर्सी जोखिम में डालो
जिसने किये तुम्हारे ये हाल ।
मजदूरों भागों मत
बहुजनों, आदिवासियों
दलितों मुकाबला करो ।
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