अस्तित्व
अस्तित्व
हे दशरत सुत राम ओ देवकी नंदन कृष्ण
हे पवन सुत हनुमान ओ पार्वतीनंदन गणेश
हे देवों के देव ब्रम्हा, विष्णु, महेश कहाँ हो तुम?
इनके नाम किसी का पिता के साथ तो
किसी का माता के साथ जोड़ दिया है ।
कोई सूर्यपुत्र है तो कोई गंगा पुत्र है
कोई मुख, बाहू से पैदा हुआ है तो
कोई जंघाओं से और कोई पैरो से
आख़िर ये माजरा क्या है?
इसी उलझन में उलझता रहा कई दिनरात
सुलझने की कोशिश में और उलझता गया ।
यही कि राम दशरथ सुत है तो कृष्ण देवकी नंदन,
यशोदा का नंद लाला, वासुदेव का लाला क्यों नहीं?
बात इसी तरह उलझ गई, सुलझ न सकी हे देव !
मुख, बाहू और जंघा से पैदा होने वाले सारे देव
पैरों से पैदा होनेवाले की कहीं चर्चा नहीं
क्योंकि वे रक्षणकर्ता देव नहीं ।
असल में मुझे इन बातों में मतलब नहीं
मुझे मतलब है तुम्हारे काम से ।
क्योंकि जब-जब होई धर्म की हानि ...
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा... ।
प्रभु धरती पर मनुष्य से बढ़कर है धर्म?
देव ! तुम्हें पता भी हैं कि तुम कौन हो?
तुम्हें यह भी पता हैं कि तुम्हारे यहाँ मंदिर हैं ।
नहीं कहते कि कितने मंदिर हैं तुम्हारे
जहाँ ऊँचे पकवानों के साथ लगते हैं भोग
रुपये-पैसे हीरे-मोती पांचू जवाहरात
आप तो सर्वव्यापी सबसे अंतरज्ञानी हो ।
तुम भी ये सब पाकर बन गये हो ऐय्याश
मनुष्य ऐय्याश है तुम तो देव हो, हे देव !
तुम्हारे मंदिरों में लाखों का धन हो
तुम्हारे भक्ति से ग्रसित जनमन हो
उस धरती पर छल, कपट, प्रपंच हो ।
अनाचारी, अत्याचारी, बलात्कारी और महामारी हो
हे कृष्ण अब तुम्हारे हाथ में सुदर्शनचक्र हो ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम आप भी उठालो धनुष्य बाण
संहार करदो उन बलात्कारियों का ।
हे भोले कैलाशनाथ, धरती पर मृत्यु का तांडव छाया है
अपनी तीसरी आँख खोलो और विश्वास दिलावो ।
हनुमानजी आपके संजीवनी बूटी की जरूरत है
कई लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं इंतजार में ।
हे देवों ! काम में जुट जाओ अपनी शक्ति,
होगी कोई आपकी युक्ति, बस्स! हुनर दिखलाओ ।
क्योंकि ये तुम्हारे अस्तित्व की लड़ाई है।
नहीं कर सकते सब, हो जाते हो फेल तो
बंद करो पाखंड, कर्मकांड धर्म के नाम पर ।
समझादो अपने ढोंगी ठेकेदारों, लुटेरों को
करदो जमीन खाली मंदिरों की, है नाम पर तुम्हारे ।
धर्म जाति की दीवारों को तोड़कर बना दो घर
है जो बेघर, अस्पताल बनवा दो मानव बनकर ।
हे दशरत सुत राम ओ देवकी नंदन कृष्ण
हे पवन सुत हनुमान ओ पार्वतीनंदन गणेश
हे देवों के देव ब्रम्हा, विष्णु, महेश कहाँ हो तुम?
इनके नाम किसी का पिता के साथ तो
किसी का माता के साथ जोड़ दिया है ।
कोई सूर्यपुत्र है तो कोई गंगा पुत्र है
कोई मुख, बाहू से पैदा हुआ है तो
कोई जंघाओं से और कोई पैरो से
आख़िर ये माजरा क्या है?
इसी उलझन में उलझता रहा कई दिनरात
सुलझने की कोशिश में और उलझता गया ।
यही कि राम दशरथ सुत है तो कृष्ण देवकी नंदन,
यशोदा का नंद लाला, वासुदेव का लाला क्यों नहीं?
बात इसी तरह उलझ गई, सुलझ न सकी हे देव !
मुख, बाहू और जंघा से पैदा होने वाले सारे देव
पैरों से पैदा होनेवाले की कहीं चर्चा नहीं
क्योंकि वे रक्षणकर्ता देव नहीं ।
असल में मुझे इन बातों में मतलब नहीं
मुझे मतलब है तुम्हारे काम से ।
क्योंकि जब-जब होई धर्म की हानि ...
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा... ।
प्रभु धरती पर मनुष्य से बढ़कर है धर्म?
देव ! तुम्हें पता भी हैं कि तुम कौन हो?
तुम्हें यह भी पता हैं कि तुम्हारे यहाँ मंदिर हैं ।
नहीं कहते कि कितने मंदिर हैं तुम्हारे
जहाँ ऊँचे पकवानों के साथ लगते हैं भोग
रुपये-पैसे हीरे-मोती पांचू जवाहरात
आप तो सर्वव्यापी सबसे अंतरज्ञानी हो ।
तुम भी ये सब पाकर बन गये हो ऐय्याश
मनुष्य ऐय्याश है तुम तो देव हो, हे देव !
तुम्हारे मंदिरों में लाखों का धन हो
तुम्हारे भक्ति से ग्रसित जनमन हो
उस धरती पर छल, कपट, प्रपंच हो ।
अनाचारी, अत्याचारी, बलात्कारी और महामारी हो
हे कृष्ण अब तुम्हारे हाथ में सुदर्शनचक्र हो ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम आप भी उठालो धनुष्य बाण
संहार करदो उन बलात्कारियों का ।
हे भोले कैलाशनाथ, धरती पर मृत्यु का तांडव छाया है
अपनी तीसरी आँख खोलो और विश्वास दिलावो ।
हनुमानजी आपके संजीवनी बूटी की जरूरत है
कई लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं इंतजार में ।
हे देवों ! काम में जुट जाओ अपनी शक्ति,
होगी कोई आपकी युक्ति, बस्स! हुनर दिखलाओ ।
क्योंकि ये तुम्हारे अस्तित्व की लड़ाई है।
नहीं कर सकते सब, हो जाते हो फेल तो
बंद करो पाखंड, कर्मकांड धर्म के नाम पर ।
समझादो अपने ढोंगी ठेकेदारों, लुटेरों को
करदो जमीन खाली मंदिरों की, है नाम पर तुम्हारे ।
धर्म जाति की दीवारों को तोड़कर बना दो घर
है जो बेघर, अस्पताल बनवा दो मानव बनकर ।
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