वजह तुम हो भीम
वजह तुम हो भीम...!
ये रोटी.. ये पानी.. ये जिंदगानी
ये शिक्षा.. ये दीक्षा.. ये कॉलेज
ये पुस्तक.. ये डिग्री.. ये सम्मान
इस जीवन का अभिमान
की वजह तुम हो भीम !
ये कपड़े.. ये ऊँचा सूट.. और ये टाय
ये नौकरी.. ये रुतबा.. ये ऐशो आराम
ये पैसा.. ये बंगाल.. और महंगी गाड़ी
ये गहने.. ये बीवी की महँगी साड़ी
की वजह तुम हो भीम... !
ये बच्चों के अंग्रेजी स्कूल.. ये कलम
ये उनकी शिक्षा.. ये वे बहुजन लोग
ये बलुटेदार... ये अलुटेदार... थे कभी
ये सभी जातियां... ये आदिवासी.. ये वनवासी
ये रोटी.. ये पानी.. ये जिंदगानी
ये शिक्षा.. ये दीक्षा.. ये कॉलेज
ये पुस्तक.. ये डिग्री.. ये सम्मान
इस जीवन का अभिमान
की वजह तुम हो भीम !
ये कपड़े.. ये ऊँचा सूट.. और ये टाय
ये नौकरी.. ये रुतबा.. ये ऐशो आराम
ये पैसा.. ये बंगाल.. और महंगी गाड़ी
ये गहने.. ये बीवी की महँगी साड़ी
की वजह तुम हो भीम... !
ये बच्चों के अंग्रेजी स्कूल.. ये कलम
ये उनकी शिक्षा.. ये वे बहुजन लोग
ये बलुटेदार... ये अलुटेदार... थे कभी
ये सभी जातियां... ये आदिवासी.. ये वनवासी
के उद्धार की वजह तुम हो भीम...!
ये देकर न्याय.. ये देकर संरक्षण.. किया उपकार
ये दरिद्रता.. ये घोर घृणित जीवन से की मुक्ति
हे मुक्तिदाता.. हे मार्गदता.. हे परोपकारी, कैवारी
हे पुस्तकों के पुजारी, कलम के अधिकारी
दी आजादी मनुस्मृति से इसकी भी वजह तुम हो भीम.. ।
इस कदर देकर मान किया संरक्षण
ये अखिल भारत की स्री का उद्धार..
ये दीनों... ये दलितों की... ये माँ भारती
ये नौकर मजदूर.. ये किसान के
उद्धार की वजह तुम हो भीम... !
ये नौकरी... ये धन... ये दौलत पाकर
ये दलित... ये घृणित ब्राम्हण बन बैठे...!
ये कुत्ते ठहरे... ये इस घाट के न उस घाट के..
ये कुत्ते दुम हिलाते... ये तलवे है चाटते
इन गद्दारों की वजह भी तुम हो भीम... !
मेरे बंधु... मेरे सखा... मेरे पिता... मेरी माता..
मेरा जीवन... मेरी लेखनी... मेरी ऊर्जा का स्रोत...
मेरी ये शक्ति... ये विश्वास लड़ने मिली जो आस...
आपने डूबते को ये तिनका ही नहीं दिया...
बल्कि तैरना सीखा दिया... इसकी भी वजह
तुम हो भीम...!
ये अहसास... ये उपकार... ये संविधान
ये दलित... ये पीड़ित... ये प्रताड़ित जन..
ये डरे.. हुये... ये मरे हुये... ये ब्राम्हण बने हुये..
ये गाढ़ मनु को... ये चलेंगे बुद्ध मार्ग पर
ये सब एक दिन कहेंगे... जयभीम इसकी वजह भी तुम हो भीम... !
डॉ. पी.महालिंगे
रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय , माटुंगा, मुम्बई 19
ये देकर न्याय.. ये देकर संरक्षण.. किया उपकार
ये दरिद्रता.. ये घोर घृणित जीवन से की मुक्ति
हे मुक्तिदाता.. हे मार्गदता.. हे परोपकारी, कैवारी
हे पुस्तकों के पुजारी, कलम के अधिकारी
दी आजादी मनुस्मृति से इसकी भी वजह तुम हो भीम.. ।
इस कदर देकर मान किया संरक्षण
ये अखिल भारत की स्री का उद्धार..
ये दीनों... ये दलितों की... ये माँ भारती
ये नौकर मजदूर.. ये किसान के
उद्धार की वजह तुम हो भीम... !
ये नौकरी... ये धन... ये दौलत पाकर
ये दलित... ये घृणित ब्राम्हण बन बैठे...!
ये कुत्ते ठहरे... ये इस घाट के न उस घाट के..
ये कुत्ते दुम हिलाते... ये तलवे है चाटते
इन गद्दारों की वजह भी तुम हो भीम... !
मेरे बंधु... मेरे सखा... मेरे पिता... मेरी माता..
मेरा जीवन... मेरी लेखनी... मेरी ऊर्जा का स्रोत...
मेरी ये शक्ति... ये विश्वास लड़ने मिली जो आस...
आपने डूबते को ये तिनका ही नहीं दिया...
बल्कि तैरना सीखा दिया... इसकी भी वजह
तुम हो भीम...!
ये अहसास... ये उपकार... ये संविधान
ये दलित... ये पीड़ित... ये प्रताड़ित जन..
ये डरे.. हुये... ये मरे हुये... ये ब्राम्हण बने हुये..
ये गाढ़ मनु को... ये चलेंगे बुद्ध मार्ग पर
ये सब एक दिन कहेंगे... जयभीम इसकी वजह भी तुम हो भीम... !
डॉ. पी.महालिंगे
रामनारायण रुइया स्वायत्त महाविद्यालय , माटुंगा, मुम्बई 19
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