सूफी काव्य की विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

सूफी प्रेमाख्यानक काव्य 
कबीर आदि संत कवियों ने निर्गुण परंपरा को स्वीकार किया था। सूफी कवि भी निर्गुण को मानते थे। अंतर केवल उपासना पद्धति में था। संतो ने ज्ञान का आश्रय लिया और सूफियों ने प्रेम का। इसीलिए रामचंद्र शुक्ल ने निर्गुण भक्ति धारा को दो शाखाओं में विभक्त किया था। ज्ञानाश्रयी भक्ति शाखा और प्रेमाश्रयी भक्ति शाखा। संत कवियों के संदर्भ में ज्ञानाश्रयी भक्ति शाखा की चर्चा हम पीछे कर आए हैं। यहां हम सूफी प्रेमाश्रयी शाखा पर विचार करेंगे। 'सूफी' शब्द के मूल अर्थ के संबंध में विद्वानों में बड़े मतभेद है। कुछ विद्वान इसकी व्युत्पत्ति 'सूफ' (ऊन) शब्द से मानते हैं। ऊनी वस्त्र धारण करने के कारण संभवतः  साधक सूफी कहलाए। अलबरुनी के अनुसार सूफी वह व्यक्ति कहलाता था जो 'साफी' (पवित्र) हो। वस्तुतः सूफी वे महात्मा थे जो अरब और इराक देशों में मोटे ऊनी वस्त्र का चोंगा पहनते थे और विरक्तों का-सा पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। कुछ विद्वानों ने सूफी शब्द की उत्पत्ति सुफ्फा (चबूतरा) से मानी है। मदीना की मस्जिद के आगे एक चबूतरा है उस पर बैठने वाले सूफी कहलाए। सूफी शब्द सफ्फ (पंक्ति) से उत्पन्न भी माना गया है।
 सूफी प्रेमाख्यानक काव्य और कवि
1) चंदायन - मुल्ला दाऊद
 हिंदी में उपलब्ध प्रथम सूफी प्रेमाख्यान 'चंदायन' को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता मुल्ला दाऊद है।ये आमिर खुसरो के समकालीन थे। इसका रचनाकाल 1380 ई. के लगभग माना जाता है। इस दृष्टि से हम इसे मध्य काल के अंतर्गत भी ले सकते हैं किंतु बहुत से आलोचक इसे सूफ़ी आख्यानक नहीं मानते, क्योंकि इसमें सूफ़ी आख्यानक काव्यों के समान कोई रुपक अथवा अन्योक्ति नहीं है। यह सीधी-साधी प्रेम कथा है इस दृष्टि से कुतुबन प्रथम हिंदी सूफी कवि ठहरते हैं।
2) कुतुबन कृत मृगावती 
कुतुबन ने 'मृगावती' की रचना की। संभवतः मृगावती की कथा पहले से लोक में प्रचलित थी कुतुबन ने उस अलौकिक कथा में अलौकिक प्रेम का समावेश किया। इसमें कंचनपुर के राजा की पुत्री मृगावती चंद्रगिरी के राजकुमार की प्रेमकथा वर्णित है।
3) मंझन - मधुमालती
 सूफी प्रेमाख्यान परंपरा की दूसरी रचना मंझन कृत 'मधुमालती' है। कवि के शब्दों में इस कृति का रचनाकाल 951 हिजरी अर्थात 1445 ई. है।इस प्रकार यह जायसी के 'पद्मावत' के बाद की कृति सिद्ध होती है, किंतु पंडित राम चंद्र शुक्ला ने उसे 'मृगावती' और 'पद्मावत' के बीच की कृति माना है। इस काव्य में कनैगिरीगढ़ के राजकुमार मनोहर और महानगर की राजकन्या मधु-मालती के प्रेम स्फुरण, प्राप्ति के प्रयत्न, उपस्थित बाधा और फिर प्राप्ति की कथा कही गई है।
4) जायसी कृत पद्मावत
  सूफी कवियों में मलिक मुहम्मद जायसी सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। वे जायस के रहने वाले थे और शेरशाह के समकालीन थे।उनक जन्म सन् 1448 में और मृत्यु 1498 में मानी जाती है। उनके ग्रंथों में 'पद्मावत' और 'अखरावट' 'आखिरी कलाम' प्रसिद्ध है। 'पद्मावत' की कथा का परिचय जायसी ने स्वयं दिया है। 'पद्मावती' की मुख्य कथा रत्नसेन और पद्मावती के प्रेम से संबंध है ।इस रचना में बारहमासा का वर्णन हुआ है।
5) उसमान कृत चित्रावली
उसमान ने 'चित्रावली' की रचना की। यह जहाँगीर के समय की रचना है। इसमें नेपाल के राजा धरणीधर के पुत्र और चित्रसेन की कन्या चित्रावली की प्रणय-कथा वर्णित है।
6) नूरमुहम्मद कृत इंद्रावती
इसी परंपरा में एक उल्लेखनीय प्रेमाख्यानक काव्य 'इंद्रावती' है जिसके रचयिता नुरमुहम्मद है। नई खोजों के आधार पर दक्खिनी हिंदी की प्रेमाख्यानक रचनाएँ भी प्रकाश में आई हैं।ये रचनाएँ उत्तरी भारत के प्रेमाख्यानक काव्यों से सभी दृष्टियों में भिन्न हैं। 
सूफी प्रेम काव्य की सामान्य प्रवृत्तियां 
निर्गुण संत कबीर आदि ने धार्मिक क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम जनता में एकता के लिए प्रयत्न किया किंतु प्रेममार्गी सूफी कवियों ने हिंदू मुस्लिम दोनों में सांस्कृतिक एकता का स्तुत्य प्रयत्न किया और इन कवियों को इस कार्य में अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिली। विद्वानों के एक वर्ग के मतानुसार दोनों जातियों में एकता के ध्येय के प्रचार का श्रेय सूफी संप्रदाय को अधिक है 
मध्यकाल के सूफी कवियों के अनेक प्रेमाख्यान काव्यो में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो एक सी मिलती है इस परंपरा के काव्य कारों की एक खास पद्धति थी। उनके वर्णन करने की कुछ सामान्य बातें ऐसी हैं जो प्रायः सभी कवियों में न्यूनाधिक मात्रा में देखने में आती है। इसमें संदेह नहीं की उन में बहुत सी प्रवृतिया ऐसी है, जिन पर फारस और इरान का प्रभाव है और बहुत सी प्रवृतियां ऐसी है जो भारतीयता के रंग में रंगी हुई है। उन प्रवृतियों का संक्षिप्त परिचय यहां पर दिया जा रहा है। 
1) प्रबंध काव्य की रचना
 सूफी कवि प्रेममार्गी कवि कहलाते हैं ।इन कवियों ने प्रेम गाथाओं को लेकर अपने सिद्धांतों की बात कही है। इनका सिद्धांत सूफी प्रेम का आदर्श और सूफी काव्य मूल से हैं परंतु उसको इन्होंने भारतीय कहानियों के माध्यम से व्यक्त किया है। उसमें ऐसी कहानियों की योजना की जो भारतीय मन में सदैव  से रमि रही। कुछ ऐसी भी कथाओं का निर्माण किया है जो विदेशी प्रभाव को लिए हुए हैं। इस तरह के काव्य उनकी एक विशिष्ट पद्धति में निर्मित हुए हैं और वह अधिकतर प्रबंध काव्य है।
 सूफी कवियों के प्रबंध काव्य की शैली मसनवी है।मसनवी फारस का एक छंद है और ग्रंथ रचना की एक पद्धति है। इस रचना के प्रारंभ में ईश्वर की स्तुति होती है, चार खलीफा की स्तुति होती है और शाहे वक्त की स्तुति होती है। इस तरह के ग्रंथ का आरंभ कुतुबन की मृगावती में और जायसी के पद्मावत में एक सा मिलता है। इन काव्य की कथा प्रायः सभी काव्य में एक जैसी ही लगती है यानी इनके कथानक बहुत मायनों में रूढ़ है। जैसे नायिका का वर्णन सुन कर या देख कर उसकी ओर आकर्षित होना, पशु पक्षियों से बात करना, उड़नेवाली स्त्रियों का होना, प्रेमियों का मिलना, बिछड़ना, कष्ट उठाना, तरह-तरह के व्यवधान होना और फिर मिल जाना। इस संबंध में सूफी प्रेम कथा काव्यों के अमर चितेरे मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने पद्मावत में बड़े स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया है कि मनुष्य प्रेम के द्वारा ही वैकुंठी बनता है यानी दिव्य बनता है। और प्रेम के बिना मनुष्य के शरीर में है ही क्या? वह तो एक मुट्ठी धूल है।
 "मानुष पेम भवऊ वैकुंठि
 नाहि त का छार इक मूठी।"
2) लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम की प्राप्ति 
प्रेममार्गी सूफी कवियों की एक महति विशेषता लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम की प्राप्ति की भावना है। सूफी कवि मुसलमान थे वे भारत में आए और उन्होंने भारतीय कहानियों को सिद्धांत निदर्शन के लिए आधार बनाया। चंदायन में मुल्ला दाऊद ने लोरिक चंदा की लोककथा को लिया। मृगावती में कुतुबन ने  राजकुंवर की कथा को चुना। पद्मावत में जायसी ने रत्नसेन पद्मावती से संबंधित कथा चुनी। इसमें लौकिक वर्णन के साथ-साथ अलौकिकता भी आ गई है। कहने को तो कवि प्रेम की बात कह रहा है, भौतिक प्रेम की बात कह रहा है। स्थूल श्रंगार का वर्णन कर रहा है परंतु अधिकांश ने उसका अर्थ अलौकिक सत्ता की ओर भी लगाया है। लौकिक प्रेम की तल्लीनता को कुतुबन ने मृगावती नामक रचना में बड़े कड़े शब्दों में कहा है कि यह तो संसार है, यह उस चित्रकार का चित्र है। इस चित्र को देखकर इसके बनाने वाले को खोज लेना चाहिए। अगर कोई उसकी खोज करेगा तो उसको वह जल्दी ही प्राप्त कर लेगा। उनके यह भाव निम्नलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत होते हैं।
"चित्र देखि के खोजि चितेरा।
 खोज करहि तो मिलहि सबेरा।"
3) भारतीय अभारतीय तत्वों का मेल 
भारत में सूफी संतों के आगमन का आरंभ सन 1192 से मोहम्मद गौरी के समय से माना जाता है। इससे पूर्व फारस और इरान में सातवीं आठवीं शताब्दी से ही अनेक सूफी होते रहे थे। भारत में सूफी धर्म के प्रवेश के साथ विदेश के सूफियों के विचारों का आना स्वाभाविक हो गया। उनके द्वारा जो काव्य रचना हुई उसमें बहुत सी बातें भारतीय हैं और बहुत सी अभारतीय हैं। जैसे इन कवियों ने उस परम तत्व को करतार, निरंजन, ज्योति स्वरूप कहां है। उसे न स्त्री न पुरूष बताया है। वह अकेला है। उसके साथ दूसरा नहीं है। ईश्वर संबंधी यह विचार कुरान सम्मत हैं। संत संप्रदाय में ब्राह्म को निरंजन कहा गया है। उपनिषदों में उसे न स्त्री न पुरुष कहां है। ये बातें भारतीय हैं। इस तरह सूफी कवियों में भारतीय अभारतीय तत्व मिले हुए दिखाई देते हैं। सूफी कवियों के काव्य में बहुत सी बातें भारत की दिखाई देती है - जैसे मंदिर का निर्माण, धर्मशाला बनाना, साधु संत सेवा, योग साधना ये सब भारतीय हैं।प्रेम के प्रसंग में भारत के अनेक कथा संकेत जैसे पिंगला भरतरी का, नल दमयंती का, शिव - पार्वती का प्रेम, ये भारतीयता से पूर्ण है।विरह में सूफियों ने कष्ट की अक्षम्य सहनशीलता दिखाई है। उसके वर्णन में उन्होंने रक्त के आंसू,  मांस जलना, जलकर कोयला होना, होठ से खून पीना, ये सब वर्णन किये हैं।ये सब भारतीय हैं। इसी प्रकार सूफी कवियों के काव्य में भारतीय और अभारतीय तत्वों का मेल दिखाई देता है।
4) रस योजना
 सूफी कवियों का मुख्य रस श्रृंगार वर्णन है। ये प्रेम काव्य है। नायक नायिकाओं के प्रेम का इनमें चित्रण है। श्रंगार की दोनों दशाओं संयोग और वियोग का वर्णन ह्रदय को छू लेने वाला है। नायिका का नखशिख वर्णन उसके अंग प्रत्यंग की शोभा का मांसल वर्णन कवि का प्रिय विषय रहा है। इनका विरह वर्णन अधिक मार्मिक है। पूर्व राग, मान और प्रवास के अनेक हृदय को छूने वाले वर्णन इन काव्य में मिलते हैं।इस प्रसंग में बारह महीनों प्रकृति से उद्दीप्त होने वाले वर्णन सूफी कवियों ने बड़ी सफलता के साथ किया है। यहां जायसी के काव्य का उदाहरण दृष्टव्य है-
 "पिय सौ कहेहु संदेसड़ा ऐ भंवरा ऐ काग। 
सो धनि बिरहै जरि गई तेहिक धुआ हम लाग।"
 श्रंगार वर्णन के अतिरिक्त इन के काव्य में रौद्र, वीर और शांत रस की अभिव्यक्ति परिस्थिति के अनुसार की गई है।
 5) वर्णन कला / भाव व्यंजना
 सूफी कवियों का मन वर्णन करने की ओर बहुत रमा है। इनमें से अधिकतर कवि जीवन और जगत का सूक्ष्म अध्ययन करने वाले थे। उनकी दृष्टि अनुभव सिद्ध और सूक्ष्म थी। उन्होंने जो कुछ देखा उसको बारीकी के साथ देखा और विस्तार के साथ उसका आख्यान किया। इन वर्णनों में नगर वर्णन, वहां के बाजारों का वर्णन, बाजारों में बिकने वाली बहुमूल्य वस्तुओं के वर्णन, नदी, वन, समुद्र का वर्णन, पर्वत का वर्णन प्रकृति के एक-एक चीज़ का वर्णन बड़े विस्तार के साथ किया है। बारह महीनों का वर्णन, बारह महीनों में होने वाली ऋतु का वर्णन, इस तरह हम देखते हैं कि प्रेमाख्यान काव्य में कवियों ने अतिशयोक्ती का प्रयोग किया है। 
6) अन्योक्ति और समासोक्ति का प्रयोग 
प्रेम कथा का वर्णन करने वाले इन कवियों में मुख्य कथा के साथ-साथ अलौकिक संकेत भी दिए जा रहे हैं। ऐसे स्थानों पर माना जाता है कि कवियों ने समासोक्ति का प्रयोग किया है। समासोक्ति अलंकार है और जहां पर वर्णन तो प्रस्तुत का हो रहा है परंतु उससे अप्रस्तुत का भी संकेत हो रहा है। जैसे जायसी ने वर्णन किया है, उन्होंने सिंहलद्वीप को गढ़ का वर्णन किया है। उस गढ़ का वर्णन करते समय कवि ने हठयोग के अनुसार पिंड में ही ब्रह्मांड की बात को भी संकेतिक कर दिया है। इस तरह प्रस्तुत वर्णन के साथ अप्रस्तुत वर्णन जुड़ गया है। इसी तरह वह कहते हैं -
 "गढ़ पर नीर-खीर दूई नदी, पानी भरहि जैसे दुरूपदि।"
 इसी तरह उन के काव्य में अन्योक्ति के उदाहरण देखने में मिलते हैं।अन्योक्ति वहां पर होती है जहां पर किसी और पर घटाकर बात कही जाती है।
7) कथानक रूढियां 
प्रेममार्गी सूफी कवियों की एक प्रवृत्ति एक ही कथानक रूढ़ियाँ है। सूफी कवियों ने जिन कथाओं की निर्मिति की है, उनके विन्यास को कथा के गठन को बहुत कुछ सामान्य रेखाओं के मध्य में अंकित किया है। उनके कथानक एक खास बंधी हुई लीक पर चलते हैं।इस तरह उनके कथानक संबंधी रूढ़ियां देखी जा सकती है। एक पारंपारिकता देखी जाती है, एक समानता देखी जा सकती है। इसे ही दूसरे शब्दों में कथानक रूढियां कहा जा सकता है। सूफी काव्य की अनेक कथा रूढ़ियां है। उनके नायिकाओं के नाम के साथ 'वती' प्रत्यय लगाया जाता है। जायसी ने जो उल्लेख किया है वे रचनाएं है, सपनावती, मुग्धवती, मृगावती, मधुमालती, प्रभावती, खंडरावती आदि है। इन कथानक रूढ़ियों में कुछ भारतीय है और कुछ ईरान से आई है। जैसे प्रेम के मार्ग में परियों का सहयोग, उड़ने वाली स्त्रियां, दानव, राक्षस और अलौकिक चमत्कार आदि।
8) रहस्यवाद की अभिव्यक्ति 
सूफी कवि प्रेममार्गी थे उनके काव्यों में प्रेम की बड़ी तीव्र अनुभूति देखने को मिलती है। यह प्रेम अलौकिकता के धरातल पर उतारकर प्रस्तुत किया गया है परंतु कवियों की दृष्टि आध्यात्मिक रही है, ईश्वर उन्मुख रही है। इसीलिए सूफी कवियों के काव्य उज्जवल बन गए हैं और महान बन गए हैं। सूफी कवियों की आध्यात्मिक भावना रहस्यवादी विचारों के रूप में देखने में आती है। आत्मा का परमात्मा के साथ जो पहले से संबंध है उसको इन कवियों ने अपने काव्य में अभिव्यक्त किया है। सूफी कवियों की यह दृष्टि रही है कि वह परमात्मा को स्त्री के रूप में लेते हैं और साधक को पुरुष के रूप में लेते हैं।जिस तरह कोई पुरुष स्त्री को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है, उसी तरह आत्मा परमात्मा को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करती हैं।सूफी कवियों के काव्य कथाओं में नायक द्वारा नायिकाओं को प्राप्त करने के लिए उत्कट अभिलाषा, असीम प्रेम, दर्द, वेदना, छटपटाहट और कष्ट सहन करने की शक्ति वर्णित की गई है। इन सब के द्वारा इनका साधक रूप सहज ही उभर कर आ जाता है। यह अनुभूतियां रहस्यवाद की है। 
9) चरित्र चित्रण
 इन प्रेम काव्य में नायक नायिकाओं के जीवन के उतने ही अंशों को ग्रहण किया गया है जिन से प्रेम के विविध प्रसंगों और व्यापारों की अभिव्यक्ति संभव थी। प्रबंध काव्योचित जीवन के विभिन्न दृश्य इन काव्य में नहीं है। इन काव्यों की नायिकाए ह्रासोन्मुख - संस्कृत साहित्य की नायिकाओं के समान ही सांचे में ढली हुई है। उनमें जीवन के विविध घात -प्रति घातों का आभाव है। नायक का स्वरुप भी प्रायः पूर्व से निश्चित दृष्टिगोचर होता है।इन्होंने कहीं-कहीं काल्पनिक और ऐतिहासिक पात्र निर्माण किए हुए देखने में आते हैं।
10) लोक पक्ष और हिंदू संस्कृति
 सूफियों का प्रेम संतो के प्रेम से कुछ भिन्न है। कबीर आदि संतो के प्रेम में वैयक्तिकता  अधिक है। जबकि उनके प्रेम के परिवेश में नैतिकता के साथ-साथ समष्टिगतता अधिक है। यही कारण है कि इनके प्रेम काव्य में लोक जीवन का भी चित्रण है। जैसे सर्वसाधारण का अंधविश्वास, मनौतियां, यंत्र-तंत्र प्रयोग, जादू टोना, डायनों की करतूतें, विभिन्न लोकोत्सव, लोक व्यवहार, तीर्थ कथा, रुढ़ियां, तत्कालीन जीवन को समझने के लिए और भी सहायक सिद्ध होती है।
 इन प्रेम काव्यों के रचीयताओं ने हिंदु घरानों की प्रेम कहानियां लेकर उन का तदनुरूप  वर्णन किया है। उस युग में संस्कृति समन्वय और संग्राहक की भावना जागृत हो चुकी थी। इन सूफी कवियों को हिंदू सांस्कृतिक एवं धर्म का सामान्य परिचय था। इन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों, रहन-सहन और आचार विचार का सुंदर वर्णन किया है। हिंदू पात्रों में हिंदू आदर्शों की प्रतिष्ठा की गई है। षट ऋतुओं और बारहमासा का वर्णन भारतीय पद्धति पर है।
11) शैतान का महत्व
 सूफी प्रेम काव्य में शैतान को माया के समान साधक के प्रेम के साधना मार्ग से भ्रष्ट करने वाला माना गया है। एक साधक पीर गुरु की कृपा से शैतान के पंजे से मुक्त हो सकता है। पद्मावत काव्य में राघव चेतन शैतान के रूप में चित्रित है। संत कवियों ने माया को हेय सिद्ध किया है। किंतु सूफियों ने शैतान को त्यागने योग्य नहीं माना है। क्योंकि शैतान के द्वारा ही उपस्थित व्यवधानों से साधक की अग्निपरीक्षा होती है और उसके प्रेम में दृढ़ता तथा उज्ज्वलता आती है।
12) मंडनात्मकता
 वैसे तो निराकारवादी संतो ने भक्ति के सामान्य मार्ग की प्रतिष्ठा से हिंदू मुस्लिम जातियों में धार्मिक एकता का श्रीगणेश कर दिया था किंतु उन्हें अपने उद्देश्य में पूर्ण रुप से सफलता नहीं मिली, कारण उन के स्वर में खंडनात्मकता की चुभनेवाली कर्कश का थी ।जिससे हिंदू मुसलमान दोनों चिढ़े, किंतु इन मुलायम स्वभाव के सूफियों ने किसी संप्रदाय विशेष का खंडन नहीं किया बल्कि दोनों जातियों की एकता के उद्देश में इन्हें अधिक सफलता प्राप्त हुई। आचार्य शुक्ल इस संबंध में लिखते हैं "प्रेम स्वरुप ईश्वर को सामने लाकर सूफी कवियों ने हिंदू और मुस्लिम दोनों को मनुष्य के सामान्य रुप में दिखाया और भेदभाव के दृश्यों को हटाकर पीछे कर दिया।" 
13) नारी चित्रण 
सूफी कवियों की यह बड़ी विशेषता है कि उनमें प्रेम का प्रमुख स्थान नारी पात्र को ठहराया है। वह परमात्मा का प्रतीक है। नारी एक वह नूर है, जिसके बिना विश्व सुना है। परशुराम चतुर्वेदी के शब्दों में "सूफी कवियों ने नारी को यहां अपनी प्रेम साधना के साध्य रूप में स्वीकार किया है, जिसके करण वह इनके किसी प्रेमी के लौकिक जीवन की निरी भोग्य वस्तु मात्र नहीं रह जाती। वह उस प्रकार की साधन सामग्री भी नहीं कहला सकती जिसमें उसे बौद्ध सहजयानियो ने 'मुद्रा' नाम देकर सहज साधना के लिए अपनाया था। वह उन साधकों की दृष्टि में स्वयं एक सिद्धि बन कर आती है और इसी कारण इन प्रेम काव्य में उसे प्रायः अलौकिक गुणों से युक्त भी बताया जाता है ।
14) प्रेम कहानियों की मूल प्रेरणा
 प्रेम कहानियों की मूल प्रेरणा के संबंध में परशुराम चतुर्वेदी के विचार प्रस्तुत है "इन कवियों ने अपनी रचनाओं में इसकी ओर कभी कोई संकेत नहीं किया और इनके कथानकों से लेकर उनके क्रम विकास अथवा अंत तक भी कोई ऐसा प्रसंग छेड़ा जिससे उनका कोई सांप्रदायिक अर्थ लगाया जा सके यह अवश्य है कि जहां तक घटनाओं की क्रम योजना का प्रश्न है, उसे इस प्रकार निभाया गया है, जिससे सूफी प्रेम साधना का भी मेल बैठ जाए परंतु फिर भी ऐसी बातें अधिक से अधिक केवल दृष्टांतों के रूप में पाई जाती है। 
15) रस योजना 
इन प्रेमाख्यानों में प्रधान रस श्रंगार रस की व्यंजना हुई है। सर्वप्रथम नायक नायिकाओं के प्रति आकर्षित होते हैं। उनकी प्राप्ति के लिए विरह वेदना तथा नाना अन्य संकटों को झेलना पड़ता है। संयोग श्रृंगार के वर्णन में इन्होंने इतनी रुचि नहीं दिखाई जितने कि विप्रलंभ श्रृंगार के वर्णन में दिखाई है। इन्होंने नायक एवं नायिकाओं के भेदों की उद्धारणी प्रस्तुत की है। इनके शृंगार वर्णन में कामशास्त्र का भी प्रभाव है। श्रंगार रस के अतिरिक्त अन्य रसों का कम प्रभाव देखने में आता है। जैसे शांत, करूण, विभत्स रस की किंचित अभिव्यक्ति हुई है।
16) प्रतीक विधान 
सूफी कवियों का उद्देश लौकिक प्रेम कहानियों द्वारा अलौकिक प्रेम की व्यंजना करते हुए अव्यक्त सत्ता का आभास देना था। इस रहस्यात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए सांकेतिक विधान या प्रतिक का उपयोग करना अनिवार्य हो जाता है। जैसे जायसी ने पद्मावत में 'तन चितउर मन राउर कीन्हा' अर्थात तन चित्तौड़ है, मन ही राजा है इस तरह के प्रयोग सूफी कवियों के काव्य में मिलते हैं।
17) विविध प्रभाव
 सूफी काव्य पर चार प्रभाव विशेष रूप से पढ़े हैं। आर्यों का अद्वैतवाद तथा विशिष्ट अद्वैतवाद इस्लाम की गुह्य विद्या, नव अफलातूनी मत तथा विचार स्वातंत्र्य इन पर भारतीय प्रभाव तो स्पष्ट है।सूफियों ने वैष्णवों की अहिंसा को क्रियात्मक रूप में अपनाया है। कुछ विद्वानों का यह विश्वास है कि भारतीय सूफी कवियों की प्रणय भावना पर फारसी साहित्य का अत्याधिक प्रभाव है किंतु यह विचार समीचीन नहीं है।सूफी कवियों की प्रणय भावना भारतीय श्रंगार रस की परंपरा में आती है।
18) काव्य प्रकार

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