तालाबंदी के काले दिन
तालाबंदी के दिन काले
नसीब न हुई दो जून की रोटी
छीन लिए मुँह से निवाले
इंतजार किया रोटी का
करते रहे प्रबंध भूख का
हालात अनार्य मनुज का
देश के भूमि पुत्रों का
हुआ है बेहाल उसके ही घर में
आर्यों की गुलामी करता
बहुजन,आदिवासी समाज
अपने अधिकारों से वंचित
अपनी हक़ की रोटी से
बंदिस्त बनाकर आर्यों ने
गुलाम बनाया अनार्यों को
जानकर इतिहास लड़ो तुम
देश के मूल नागरिक हो तुम
अधिकारों के लिए लड़ो तुम
मित्रों गुलामी के कारण देखो
दुश्मन से ही थोड़ा कुछ सिखों
इस हालात के जिम्मेदार कौन?
किसने छीना है मुँह का निवाला
यह सरकार तुम्हारे लिए नहीं
यह न्यायालय तुम्हारे लिए नहीं
यह कार्यपालिका तुम्हारी नहीं
मीडिया भी तुम्हारा नहीं हैं
तुम्हारे लिये योजनाएं कौन बनाएगा?
तुम्हारे देश में तुम्हारा कुछ नहीं
तुम्हारे जितना लाचार कोई नहीं
हे बहुजन अनार्यों इतने क्यों गिर गये
घिन आती है मुझे तुम पर
रोटी, पद, प्रतिष्ठा के लिये लाचार हुये
कर दिये अपने ही समाज को गुलाम ।
हे बहुजनों उठो संघर्ष करो
जिसने छीनी है तुम्हारी रोटी
तुम्हारे बच्चों का भविष्य
ठोकर खाने को किया है जिसने मजबूर
उस अधिकार के लिए लड़ो तुम
आज के काले दिन के जिम्मेदार तुम हो
तुम हो...
तुम हो...
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